यह भी किसान हैं, इनको भी सुना जाये

उसके पास अपनी जमीन नहीं है। इतनी भी शायद नहीं उनके एक कमरे के मकान के आगे एक शौचालय बन सके। अगर कुछ खेती की जमीन है भी तो इतनी नहीं कि उसकी खेती से वह परिवार के भरण-पोषण लायक अन्न उपजा सके। वह अधिया पर किसी और का खेत जोतता है। असल में किसान वही है। उसी के श्रम से अन्न उपज रहा है। पर उसकी पंहुच मण्डी तक नहीं है। जो कुछ उसके हिस्से का होता है वह उसके घर में ही खप जाता है। कुछ बेचने लायक हुआ तो आसपास में किसी को बेच देता है।

अधिया पर खेत जोतता किसान दम्पति

उसके पास एक दो बकरियां हैं – वे उसका गाढ़े समय के लिये बीमा जैसी हैं। अगर फसल नहीं हुई तो बकरी बेच कर काम चलता है। कुछ मुर्गियां होती हैं। बिस्तर के लिये गद्दे नहीं हैं, सर्दी की गलन से बचने को वह पुआल बिछाता है। औरतें दिन में दो तीन घण्टे सूखी घास और पत्तियां बीनती हैं , जिससे अलाव जलता है और खाना बनता है। आधे पर खेत जोतने के लिये हल बैल या ट्रेक्टर वह किराये पर लेता है। उसके अपने घर में एक फावड़ा भी शायद न हो। खुरपी मिले, बस। फटक गिरधारी है वह। न लोटा न थारी!

उसके पास एक दो बकरियां हैं – वे उसका गाढ़े समय के लिये बीमा जैसी हैं।

उसकी खेती हेक्टेयर में नहीं, एकड़ में नहीं, बीघे में नहीं, बिस्वे में होती है। शहरी मानस के लिये यह बता दिया जाये कि एक हेक्टेयर में चार बीघे होते हैं और एक बीघे में बीस बिस्वा। यह किसान (अगर आप उसे किसान मानते हों) बहुतायत में है। किसानी के आइसबर्ग का टिप है जो अपने ट्रेक्टर ले कर दिल्ली दलन को पंहुचा है और घमण्ड से कहता है कि छ महीने का गल्ला लेकर धरना देने आया है। यह गांव वाला बेचारा तो छ महीने क्या, छ दिन भी दिल्ली नहीं रह पायेगा।


अगर आपको ब्लॉग पसंद आ रहा है तो कृपया फॉलो करें –


इसी के भाई बंद दिल्ली घेरने वालों की किसानी चमका रहे हैं! वर्ना यहां के तथाकथित बड़े किसान भी (अब का पता नहीं, कुछ साल पहले तक) बीपीएल कार्ड लेने का जुगत बनाते हैं।

गेंहूं के बीज बिखेरता किसान

रोज आसपास आठ दस किलोमीटर की दूरी में घूमता हूं और मुझे इसी तरह के किसान ही नजर आते हैं। इनकी जिंदगी बेहतर करने की जुगत क्या है? इसके लिये कौन से कानून हैं? कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग इस अंतिम छोर के किसान को रोजगार देगी या अनुपयोगी मान कर धकिया कर बाहर कर देगी? सरकार मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर जो भी स्टैण्ड ले; उससे इसको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। अभी लॉकडाउन के दौरान उसे राशन मिल रहा है, खाते में कुछ पैसे आ रहे हैं – उससे वह प्रसन्न है। उसकी जरूरत तो उसी तरह की मदद की है। सरकार कृषि अर्थव्यवस्था को खोले और किसानी में आर्थिक इनपुट्स मिलें तो उत्पादकता बढ़ सकती है। पर उस बढ़ी उत्पादकता में अगर इसका रोजगार छिन जाये और सरकार उसे सीधे सहायता देना जारी न रखे, तब क्राइसिस होगी।

औरतें दिन में दो तीन घण्टे सूखी घास और पत्तियां बीनती हैं , जिससे अलाव जलता है और खाना बनता है।

सरकार कृषि अर्थव्यवस्था को खोले और किसानी में आर्थिक इनपुट्स मिलें तो उत्पादकता बढ़ सकती है। पर उस बढ़ी उत्पादकता में अगर इस गरीब का रोजगार छिन जाये और सरकार उसे सीधे सहायता देना जारी न रखे, तब क्राइसिस होगी।

सरकार उन दिल्ली घेरने वाले तथाकथित किसानों को चाहे थका कर, चाहे पुचकार कर, चाहे नरम दस्ताने पहन घूंसा मार कर लाइन पर लाये; पर पचानवे परसेण्ट ऐसे किसानों की गरीबी को जरूर एड्रेस करे। ये लोग फ्रूगल हैं, सहिष्णु हैं और मेहनत अगर किसानी में कोई करता है तो ये ही लोग करते हैं। इनकी आवाज नहीं है। पर इन मूक लोगों की सुनी जानी चाहिये। सूखे मेवे खाते दिल्ली घेरते किसानों की बजाय इस आदमी की फिक्र की जानी चाहिये।

सवेरे का अलाव और भोजन की तैयारी

सरकार वही है, जो दबाव में सुनने की बजाय अंतिम आदमी का भला करे। कम से कम मोदी सरकार से यही अपेक्षा करते हैं ये लोग।

बिस्तर के लिये गद्दे नहीं हैं, सर्दी की गलन से बचने को वह पुआल बिछाता है।

अगर आप फेसबुक पर सक्रिय हैं तो कृपया मेरे फेसबुक पेज –

https://www.facebook.com/gyanfb/

को लाइक/फॉलो करने का कष्ट करें। उसके माध्यम से मेरे ब्लॉग की न्यूज-फीड आप तक सीधे मिलती रहेगी। अन्यथा वर्डप्रेस फेसबुक प्रोफाइल पर फीड नहीं भेजता।

धन्यवाद।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “यह भी किसान हैं, इनको भी सुना जाये

  1. यह बात सही है कि जिन खेतिहर मजदूरों की बात आप कर रहे हैं, वो दरअसल किसान की परिभाषा में जब तक नही शामिल किए जा सकते हैं, जबतक कि उनके पास इतनी खेती की जमीन हो जिससे जो उपज हो वो उनके खुद के परिवार के खाने पीने रहन सहन, परिवार के पालन-पोषण से अधिक हो जिसे वो बाजार में बेचने के लिए ले जा सकें, और इसी तरह की स्थिति जो अधिया बटाई में उनके हिस्से की उपज उन्हें मिलती हो उसकी भी हो, साथ ही उनके पास इतनी जमीन हो जिसे वो कांट्रेक्ट फार्मिंग के लिए दे सकते हों।
    फिर भी इनके हितों को उन किसानों के हितों से बिल्कुल अलग नही किए जा सकते हैं, जिनके खेतों में ये खेतिहर मजदूर/ किसान बन कर कांट्रेक्ट खेती करते हैं, नये कानून के तहत अगर ये बड़े किसान कांट्रेक्ट फार्मिंग के लिए किसी कार्पोरेट कम्पनी को दे देंगे, तो गांव में रह कर कांट्रेक्ट खेती/अधिया बटाई पर खेती, खेतिहर मजदूर काम करने वालों का परंपरागत रोजगार बिल्कुल ही छिन जाएगा।
    मेरे विचार से कांट्रेक्ट फार्मिंग को कार्पोरेट कम्पनियों के एग्रो-व्यापार हितों को पोषण करने के लिए इस नए कानून से परम्परागत अधिया बटाई खेती/खेतिहर कर रहे लोगों का ज्यादा ही नुकसान होगा, बनस्पति बड़े जोत वाले किसानों के।

    Like

  2. अभी कुच्छ घंटा पहले ही ग्रामीण इलाकों से लौटा हू / आज से उत्तर प्रदेश आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बी बोर्ड लखनऊ की आयुर्वेद परिचारिका बी 0 यस सी 0 नर्सिंग (आयुर्वेद)और आयुर्वेद फारमासिस्ट डी 0 फार्मा (आयुर्वेद) की परीक्षाये शुरू हयी है / नर्सिंग और फार्मसी कालेज घोर ग्रामीण इलाके मे है और प्रीनसिपाल होंने के नाते परीक्षाये कराने के लिए मुझे कानपुर से 70 किलोमीटर दूर जाना और इतना ही वापस कानपुर आना पड़ता है / परीक्षयाए दिसमबर 19 तारीख तक चलेंगे / आपने जिस किसान की हालत का वर्णन किया है ऐसे ही हालात मुझे यहा भी बहुतायत मे देखने को मिले है / आपका अनकलंन सही है / लेकिन सिस्टर कंसर्न इंजीनियरिंग कालेज मे काम करने वाले 60 प्रतिशत इसी कैटागरी से आते है और मै उनसे मोदी जी द्वारा किसानों के लिए किये जा रहे कामों के बारे मे पूछता रहता हू / यह सही है कि सबको बैंक खाते मे पैसा मिल रहा है सब खुश है लेकिन अभी भी जैसा मैंने देखा है , इस श्रेणी के किसानों के लिए करने की जरूरत है , लेकिन राज्य का विषय होने के नाते क्या केंद्र सरकार सीधे सीधे कुच्छ कर सकती है ??? आप क्या सुझाव देना चाहेंगे ??? मानरेगा किसके लिए है ???? कुच्छ इस पर भी चर्चा करे / वैसे मै कल जाऊंगा तो वहा के किसानों से चर्चा करूंगा

    Liked by 1 person

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started