#गांवपरधानी की रहचह

भगवानदास साफ नीले रंग के कुरते और झक्क सफेद पायजामे में खड़े थे, उमेश पण्डित की दुकान के पास। गले में साफ गमछा। एकबारगी लगा कि वह भी तो परधानी में उम्मीदवार नहीं हो गये?! पर वैसा नहीं था। परधानी ओबीसी के लिये आरक्षित हो गयी है; उनकी जात बिरादरी उसमें नहीं आती। वह बोल रहे थे – “एतना जने खड़ा होत हयें। सब बोटई मांगत हयें। केऊ बाटी चोखा खियावई क नाम नाहींं लेत बा। (इतने लोग खड़े हो रहे हैं प्रधानी के लिये; सभी वोट ही मांग रहे हैं। कोई बाटी-चोखा खिलाने के लिये हामी नहीं भर रहा।)”

उमेश दुबे (बांंये) और भगवानदास सरोज

मैंने फोटो लेने के लिये अपना फीचर फोन निकाला तो भगवानदास अटेंशन की मुद्रा में आ गये। उन्हे लग गया कि फोटो खिंचवानी है।

भगवानदास मेरे सोशल मीडिया के क्लासिक पात्र हैंं। पहले वह अपने घर के पास दिखते थे; और सवेरे की साइकिल सैर के दौरान ही दिखते थे; तो तुरंत खड़े हो कर मुझे अंगरेजी में “गुड नाइट सर” कहते थे। कालांतर में किसी ने उन्हे गुड नाइट की बजाय गुड मॉर्निंग सिखाया होगा। वर्ना साल दो साल तक तो वह मुझे गुड नाइट ही करते रहे! अंग्रेजी में इस हिंदी पट्टी का हाथ बहुत ही तंग है! :lol:

आगे एक जगह परधानी के टटके (टटके=ताजा) पोस्टर लगे और फटे दोनो दिखे। प्रधानी ओबीसी महिला के लिये आरक्षित है। इसलिये महिला की फोटो पोस्टर में लगाना मजबूरी है। पर उसमें पति, श्वसुर या पुत्र का नाम जरूर लिखा जाता है। असल चुनाव तो पति/श्वसुर/पुत्र ही लड़ रहे होते हैं।

एक नोच कर फैंका गया पोस्टर

एक जमीन पर फैंका पोस्टर किसी निर्मला देवी का था। उनके श्वसुर स्वर्गीय लक्खन यादव और पति या पुत्र अनिल कुमार यादव का नाम था। यह पोस्टर कई और दीवारों पर लगा भी दिखा। लगता है कि रात में किसी ने लगाये होंगे और सवेरे सवेरे किसी अपोजिट पार्टी वाले ने नोच दिया होगा। बहरहाल पोस्टर लगने की शुरुआत हो गयी है। अब दर्जन भर उम्मीदवार गांव की सभी लावारिस और विज्ञापन के लिये उपयुक्त दीवारें एक दो दिन में पोस्टरों से पाट देंगे।

महिलायें खड़ी हैं परधानी चुनाव में पर प्रचार पुरुष ही कर रहे हैं। ढूंढ़ी यादव मुझे दिख गये लेवल क्रासिंग पर। चार दिन पहले उनसे मुलाकात हो चुकी थी।

ढूंढ़ी यादव के बारे में छ मार्च की ट्वीट

मैंने उन्हे कहा कि पहले वाली फोटो अच्छी नहीं आयी थी, एक बार और खींचनी है। वे तुरंत हाथ जोड़ने का पोज बना लिये। उन्होने बताया कि सूरज उगते ही प्रचार में निकल देते हैं और यही करते रात हो जाती है। उन्होने किरपा बनाये रखने का एक बार और अनुरोध किया। यह भी बताया कि अपनी जीत के लिये आश्वस्त हैं; बावजूद इसके कि उनकी बिरादरी से ही तीन चार और खड़े हो गये हैं। “आप का आसीर्बाद रहा तो सीट निकाल ले जायेंगे”।

ढूंढ़ी यादव

घर वापस लौटा तो सुंदर नाऊ पहले से आ चुके थे। मेरे बाल काटने का दिन था। पर सुंदर मुख्यत: परधानी के प्रचार के लिये आये थे। साथ में उस्तरा, कैंची, कंघी आदि लिये थे। सो बाल भी कटाये मैंने। पैसे देते समय सुंदर ने कहा – “पईसा चाहे जिनि द। वोटवा जरूर दई दिय्ह्य (पैसे की कोई खास बात नहीं, वोट जरूर दे दीजियेगा)।” खैर सुंदर नाऊ से बाल कटवाई के दौरान हुये संवाद अगली #गांवपरधानी पोस्ट के लिये। :-)

मेरे घर पर सुंदर नाऊ पहले ही आ चुके थे। वे भी परधानी लड़ रहे हैं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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