होलिका दहन की तैयारियां होने लगी हैं। पेड़ों की टहनियां काट कर इधर उधर उनका स्तूप बनने लगा है। लोगों के मन में भी होली की मस्ती आती जा रही है। सवेरे सात-आठ बजे तक एक चक्कर लगा लेता हूँ, गांव का। इतनी जल्दी भांग-ठण्डई छानने का कोई प्रावधान परम्परा में नहीं है; पर लोगों की हंसी-ठिठोली देख सुन कर लगता है कि विजया चढ़ गयी हो!

बुज्जू (श्रीनिवास दुबे), स्वर्गीय संत भाई जी के पुत्र – शायद सबसे बड़े पुत्र – अपने घर से बोलते हैं – “फूफा जी, प्रणाम।” उनके घर के कुंये को देख कर मेरे मन में उसे खनाये जाने का इतिहास जानने का कौतूहल मेरे मन में हाल ही में जगा है। उस बारे में पूछने के लिये उनके घर की ओर मुड़ गया। जानकारी उनके चाचाजी – कैलाश भाई से मिल सकती थी, पर वे घर पर नहीं थे। इधर उधर की कुछ बात कर मैं चलने को हुआ। तब यूंही पूछ लिया – “परधानी का क्या होने जा रहा है?”
“परधानी अब जनरल होने जा रही है और आपको उम्मीदवार बनना है; फुफ्फा। आप होंगे तो इस गांव का विकास होगा। बाकी लोग तो अपना अपना देखते हैं।” – बुज्जू ने कहा। फिर अपना हाथ अपने सीने पर रख कर जोड़ा – “आपका पर्चा मैं दाखिल करूंगा। आपके नाम से कोई और खड़ा नहीं होगा। आपका जीतना तय है। बस, आप मना मत करियेगा।”
मुझे पता नहीं कि बुज्जू भांग में रुचि रखते हैं या नहीं। पर उनकी सवेरे सवेरे कही बात मुझे कहीं गुदगुदा गयी! होली आने को है। ऐसे में यह जवान मुझे रेल के विभाग के शीर्ष से गांवपरधानी पर उतार रहा है और मुझे जिताने का जिम्मा ले रहा है। 😀
“परधानी जनरल होने जा रही है और आपको उम्मीदवार बनना है; फुफ्फा। आप होंगे तो इस गांव का विकास होगा। बाकी लोग तो अपना अपना देखते हैं।” – बुज्जू ने कहा। फिर जोड़ा – “आपका पर्चा मैं दाखिल करूंगा। आपका जीतना तय है।”
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गांव की बभनौटी। कुल मिला कर बीस घर होंगे। बीस घरों में बीस परधानी के पोटेंशियल कैण्डीडेट। सब साल दो साल से दण्ड-बैठक करते रहे। पूरी गम्भीरता से अपना अपना दांव-गणित बिठाते रहे। अब रोस्टर प्वॉइण्ट बदलने के साथ ब्राह्मणों के लिये पंचायत चुनाव गंवई राजनैतिक मल्लयुद्ध की बजाय होली के परिहास की बात भर रह गया है। और बुज्जू मुझे इस ‘घोर कर्म’ की कीचड़ में घसीटना चाहता है – होलियाना अंदाज में। 😆

बाभन साल-दो साल उछलकूद मचाये। समाजसेवा में बाजी मारने की होड़ लगती रही। किसी के घर कोई बीमार हो जाये तो उसे अस्पताल ले जाने के लिये चार चार पोटेंशियल केण्डीडेट अपनी चार चक्का गाड़ी ले कर दौड़ते थे। कोई मर जाये तो उस परिवार की बजाय ये परधानी प्रत्याशी ज्यादा मुंह लटकाये दिखते थे।
उसके बाद ओबीसी वाले उछले। उनके पोस्टर-बैनर लगे और फटे। वे भी ताजा बनते गुड़ के उफान की तरह उठे और बैठ गये। अब सुना है कि सीट शेड्यूल कास्ट महिला के खाते जा रही है। अब उनके मन में लड्डू फूटने का अवसर है।

और तो और; अब तक उमेश की किराना दुकान पर बैठा भगवानदास सरोज, जो अब तक मुझे यही बताता रहा कि चौदह परधानी के केण्डीडेट हैं, पर कोई बाटी चोखा नहीं खिला रहा; अब खुद अपना केण्डीडेचर घोषित कर हाथजोड़क मुद्रा में आ गया है!
भगवानदास ने कहा कि वह बाटी चोखा खिलायेगा। उमेश की किराना दुकान के पास ही आयोजन होगा और मुझे बाकायदा निमंत्रण देगा।

होली का मौसम है। वातावरण में बौर की गंध है। टिकोरे भी बड़े हो रहे हैं। साथ ही, इस साल एक महीने में परधानी के तीन तीन रंग देखने को मिल गये हैं। इस साल स्पेशल रहेगी होली।
श्रीधरनजी हाथ आज़मा रहे हैं, ८८ में। आप तो फिर भी ६५ के ही हैं।
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😊
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