पिछला साल प्रसन्नता के लिये कैसा रहा?

देशों की प्रसन्नता की रैंकिंग का समय है। आप 2021 की रिपोर्ट यहां से डाउनलोड कर सकते हैं।

प्रसन्नता जीवन का अनिवार्य घटक है। शायद समृद्धि से अधिक चाह प्रसन्नता की होती है। एक सीमा तक समृद्धि प्रसन्नता को बढ़ाती है या विपन्नता मनुष्य को अप्रसन्न करती है; पर उससे आगे, समृद्धि और प्रसन्नता में सीधा समीकरण नहीं रहता। पिछले एक साल में बहुत उथल-पुथल रही। शायद ज्ञात इतिहास में सबसे अलग रहा यह साल। कोरोना संक्रमण की व्यापकता और उससे निपटने के नये तरीकों से अर्थव्यवस्था, समाज और व्यक्ति बहुत प्रभावित हुये। इस दौरान कई देश बुरी तरह लड़खड़ाये। कई – या सभी – अर्थव्यवस्थायें सिकुड़ीं। कई देशों में लोग दुखी हुये और कई में प्रसन्नता का स्तर बढ़ा भी।

प्रसन्नता की इस रिपोर्ट के आधार पर द इकॉनॉमिस्ट में एक लेख है – इट माइट सीम क्रेजी। उसमें यह बताया गया है कि आंकड़े बताते हैं विश्व कोरोना काल में भी लगभग उतना ही प्रसन्न रहा, जितना पहले था। 0-10 के स्केल में प्रसन्नता का स्तर विश्व में 2017-19 में 5.81 था जो मामूली सा बढ़ कर 5.85 बन गया 2020 में। कोरोना काल में उम्रदराज लोग ज्यादा सुखी बने और कुछ राष्ट्रों में प्रसन्नता कम हुयी पर कुछ अन्य में बढ़ी।

द इकॉनॉमिस्ट का एक अंश का स्क्रींशॉट
प्रसन्नता और अप्रसन्नता वाले देश

आंकड़ों में डेनमार्क, स्वीडन, ब्रिटेन, मैक्सिको, दक्षिण कोरिया, कोलम्बिया, रूस, जिम्बाब्वे और ब्राजील में प्रसन्नता 2017-19 की तुलना में 2020 वर्ष में कम हुई। फिनलैण्ड, आईसलैण्ड, जर्मनी, अमेरिका, ताईवान, स्पेन, जापान, चीन, दक्षिण अफ्रीका, भारत और तंजानिया में प्रसन्नता में वृद्धि दर्ज हुई।

अधिक प्रसन्न देशों में प्रसन्नता इस बात से रही कि वहां कोरोना संक्रमण अपेक्षाकृत कम प्रभाव डाल पाया या कोरोना के कम प्रभाव में प्रसन्नता भी एक कारक है? यह किसी अध्ययन का हिस्सा नहीं रहा। पर मोटे तौर पर यह तो माना ही जा सकता है कि कम तनाव वाले लोग, अधिक प्रसन्न रहने वाले लोग किसी भी आपदा, किसी भी संक्रमण से कहीं अधिक सफलता से निपट सकते हैं।

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उस दिन मेरे अलावा चार लोग एक कमरे में बैठे थे। मेरी पत्नी (61वर्ष), बिटिया (37वर्ष), नाती (12 वर्ष) और मेरी सलहज (48वर्ष)। क्रमश: रीता पाण्डेय, वाणी पाण्डेय, विवस्वान पाण्डेय और निधि दुबे। मैंने उन चारों से लॉकडाउन के दौरान उनकी प्रसन्नता को ले कर सवाल किये। उत्तर विविध प्रकार के मिले –

निधि दुबे
निधि दुबे

लॉकडाउन में हमारी प्रसन्नता तो बहुत ज्यादा बढ़ी। सब एक साथ रहे। घर पर रहे। घर में अच्छा बनाये और अच्छा (स्वास्थ्यवर्धक, सुस्वादु) खाये। बाहर के खाने से जो रुग्णता (पेट में दर्द, अपच आदि) होती थी, वह नहीं रही। खर्चा कम हुआ। भागमभाग नहीं थी जिंदगी में। घर के हर एक मेम्बर में साफसफाई की आदत पड़ी। “मेरा तो मानना है कि हर साल कम से कम दस दिन का लॉकडाउन घोषित होना ही चाहिये।”

विवस्वान पाण्डेय
विवस्वान पाण्डेय

विवस्वान ने कहा कि वह बहुत दुखी रहा। बाहर निकल ही नहीं पाया। घर में बंद बंद। न मॉल जा पाया, न किसी रेस्तराँ में। यह अच्छा था कि स्कूल बंद थे। घर पर ऑनलाइन पढ़ाई बेहतर है स्कूल की क्लास में बैठने की बजाय। पर बाहर निकलने पर मनाही बहुत खराब बात रही।

वाणी पाण्डेय
रीता पाण्डेय (बांये) और वाणी पाण्डेय

वाणी पाण्डेय के अनुसार यह बहुत शानदार अनुभव था। कोई ‘बंद-बंद’ जैसा अहसास नहीं। पानी जब स्थिर हो जाता है तो उसकी तलहटी तक सब साफ साफ दिखता है। वैसी स्वच्छता का अहसास मिला लॉकडाउन काल में। अपनी सिचयुयेशन, अपनी क्षमता, अपनी औकात समझ आयी। फालतू की भागमभाग से निजात मिली। गरीबों को, जरूरतमंदों को खूब खिलाया और खूब बांटा। यह समझ में आ गया है कि जिंदगी की प्राथमिकतायें बदलनी चाहियें!

अच्छा-बुरा दोनो रहा यह काल। कई अनुभव हुये। “रानी (नौकरानी) हमारी सब तरह की मदद के बावजूद छोड़ कर चली गयी, जब हमें बहुत जरूरत थी। और बाद में अपने से वापस भी आयी।” यह महसूस हुआ कि लोगों को समझने परखने में सावधानी बरतनी चाहिये और जरूरी लोगों के साथ समय व्यतीत करना चाहिये।

रीता पाण्डेय

अभूतपूर्व रहा यह समय। याद रहेगा। कोई प्रदूषण नहीं था। हवा साफ थी। धूल का नामनिशान नहीं था। गंगाजी का पानी निर्मल हो गया था। रुटीन सेट हो गया था। घर में नये नये प्रयोग किये। अपनी बगिया को व्यवस्थित किया। नयी नयी हॉबी बनाई और उनपर समय दिया। मन की व्यग्रता कम हुई। गांव में थे तो कोरोना के प्रति सतर्कता जरूर थी; पर उतना भय नहीं था जितना शहरों में था। गांव की जिंदगी तो लगभग सामान्य चली।


इस प्रकार की प्रतिक्रियायें हर व्यक्ति, हर परिवार से मिल सकती हैं। मुझे तो निधि की बात सबसे अच्छी लगी – हर साल में दस दिन का कम्पल्सरी लॉकडाउन तो होना ही चाहिये। यह लॉकडाउन जरूरी नहीं कि सरकार व्यापक तौर पर जारी करे। व्यक्ति या परिवार अपने स्तर पर एकांतवास या अरण्य में समय व्यतीत करने का अनुभव तो कर ही सकता है। अपने आप को ‘एनुअल रीचार्ज’ करने के लिये वैयक्तिक लॉकडाउन का प्रयोग बहुत उपयोगी साबित हो सकता है।

Photo by Jonathan Borba on Pexels.com

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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