कमीज और लुंगी पहने वह व्यक्ति लेवल क्रासिंग बंद होने पर भी रेल पटरी पर चल रहा था। मेरे पास तक आया। मैं फाटक बंद होने के कारण साथी (साइकिल) के साथ किनारे खड़ा था। उसने मुझे चरण छू कर प्रणाम किया और बताने लगा।
“तीन दिन पहले अहाता में कैम्प लगा रहा कोरोना क टीका लगवाये क (कोरोना का टीका लगाने का कैम्प लगा था)। उसके बाद से बुखार आ रहा है। दो गोली उन्होने दिया था कि अगर बुखार आये तो खा लेना। पर आज तीन दिन हो गये। बुखार गया नहीं। चल रहा हूं, और कोई गोली लेने।”

मुझे असहजता महसूस हुई। कोरोना तेजी से बढ़ रहा है। मेरे आसपास 500 मीटर में भी आरोग्यसेतु दो मरीज बता रहा है। दस किलोमीटर परिधि में पंद्रह मरीज। कल यह संख्या क्रमश: 1 और दस थी। और यह आदमी छुट्टा घूमता चरण छू रहा है। मैंने अपने को थोड़ा और पीछे किया।
मेरे ड्राइवर अशोक ने बताया कि अहाता में टीका लगने के बाद फलाने, फलाने और फलाने को बुखार आ रहा है। वे इसे सामान्य मौसमी बुखार मान रहे हैं। साथ ही टीका लगाने की रियेक्शन भी। मीडिया इतना बता चुका है, इसलिये पैनिक नहीं है। पर इस बात से भी लोग सचेत नहीं हैं कि तेजी से बढ़ते कोरोना के कारण एहतियाद बरतें।

ट्रेन गुजर जाने के बाद वह वापस मुड़ कर चला गया। “चली, कौनो और गोली लेई।”
टीका कोई रामबाण दवा नहीं है, यह भी लोगों को स्पष्ट नहीं है। आशा की जानी चाहिये कि यह फेज भी जल्दी पटा जाये। फिलहाल हालत पहले से ज्यादा भयावह है और लोग पहले से कहीं ज्यादा अचेत। गांव में पांच सौ मीटर परिधि में जो दो कोरोना केस हैं, उसका कोई हल्ला नहीं है। पिछले साल तो कोई सामान्य बीमार भी होता था तो सनसनी फैल जाती थी। क्वारेण्टाइन करा दिये जाते थे लोग। बास बल्ली गड़ने लगती थी। अब तो प्रशासन टीका भर लगाने में व्यस्त है।