ढूंढी बोले – बहनोई, मानसम्मान ही बड़ी चीज है, #गांवपरधानी का क्या!

परधानी चुनाव में पहले तय हुआ कि गांव की सीट ओबीसी-महिला की होगी। चौदह उम्मीदवार अपना प्रचार करने लगे। सबसे पहले मिले थे मुझे ढूंढी यादव। छ मार्च की उनपर ट्वीट है –

उसके बाद एक ब्लॉग पोस्ट का हेडर भी ढूंढी के नाम गया। मेरे हिसाब से ढूंढी एक स्टार उम्मीदवार थे। पर तभी लोग हाईकोर्ट पंहुच गये और वहां से परधानी-पंचायती का रोस्टर बदलवाने का आदेश झटक लाये। अब यह सीट ओबीसी की बजाय शिडूल कास्ट महिला के नाम हो गयी।

ढूंढी और अन्य लटक गये। अब नये नये उम्मीदवार सामने हैं। नये समीकरण। अभी सवेरे छठ्ठन घर पर आये थे। उनकी पतोहू को कोट का चुनावचिन्ह मिला है। अभी पेम्फलेट छपा नहीं पर प्रिण्टिंग प्रेस वाले से कोट का चुनाव-चित्र ले कर ही प्रचार के लिये निकल पड़े छठ्ठन। पंद्रह अप्रेल को वोट पड़ेंगे। एक एक दिन महत्वपूर्ण है!

छ्ठ्ठन बिना उम्मीदवार के नाम का पर्ची ले कर प्रचार करने निकल लिये।

छठ्ठन रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग में गेट मैन थे। हण्डिया में पोस्ट थे। वीआरएस ले कर अपने लड़के को नौकरी दिलवाई। लड़के की पत्नी उम्मीदवार है। रेलवे की गेटमैनी-गैंगमैनी में भी ताकत है प्रधानी का चुनाव लड़ने की! जब पहले ओबीसी के नाम थी यह सीट तो मेरे पुराने बंगलो-पियुन भरतलाल की पत्नी भी चुनाव में खड़ी थी। कुल मिला कर रेलवे का जलवा है! :lol:

खैर, ढूंढी पर लौटा जाये। वे अपने घर पर अक्सर दिख जाते हैं। घर हाईवे की सर्विस लेन से सटा है। चलते हुये उन्हे देखता हूं तो वे ऊंची आवाज में कहते हैं – जीजा परनाम!

ढूंढी यादव

आज उन्होने मुझे रोका। पास आ कर चरण छुये। मैंने हाल चाल पूछा तो बोले – “अब ऊ (परधानी का चक्कर) त नाहीं रहा। अब तो अपने बात व्यवहार की ही बात है। और बहनोई परधानी का क्या? आज कोई है, कल कोई। अपना मान सम्मान बड़ी चीज है। वही बना रहे। आप लोगन की किरपा बनी रहे। बस यही चाहिये।” ढूंढी प्रधानी के व्युह से अलग हो दार्शनिक टाइप हो गये थे। हर आदमी हो जाता है! पर अच्छा लगा ढूंढी का आ कर मिलना और बोलना बतियाना। अन्यथा पुराने परधानी के केण्डीडेट तो अब नजर ही नहीं आते।

उन्होने जोर से बोला – अरे, गमछवा लियाउ रे! फिर गमछा पहन कर हाथ जोड़ते पोज में एक चित्र खिंचवाया।

मैं उनका चित्र लेने लगा तो उन्हे अपने मेक-अप का ध्यान हो आया। अपने नाती को उन्होने जोर से बोला – अरे, गमछवा लियाउ रे! फिर गमछा पहन कर हाथ जोड़ते पोज में एक चित्र खिंचवाया।

इस मुलाकात से यह मन बना – अगली बारी अगर ओबीसी की सीट बनी प्रधानी की तो वोट ढूंढी को दे दूंगा!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “ढूंढी बोले – बहनोई, मानसम्मान ही बड़ी चीज है, #गांवपरधानी का क्या!

  1. बड़ी ही व्यवहार संगत बात कही है ढूढ़ी यादव जी ने। परधानी तो मान के लिये की जा रही है और प्रक्रिया में ही मान छिन्न भिन्न हो जाये तो क्या लाभ?

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  2. आपके गाँव में अभी तक किसी प्रत्याशी ने ऐसा पराक्रम नहीं दिखाया? 🙂https://twitter.com/ANINewsUP/status/1380970050320928768?s=20

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    1. गांव छोटा है, इसलिये अनुपात में वह स्केल नहीं हो सकता। पर समोसा जलेबी की दुकानों की बिक्री बढ़ गयी है। बर्फी के डिब्बे घर घर पन्हुचाये गये हैं।
      जैसे धर्मांतरण में टर्गेटिंग होती है, वैसे चिन्हित कर 100-200 रुपये की पहली किश्त दी गयी है। बाकी, आगे और देने का आश्वासन दिया गया है।
      और नैतिकता, इंसानियत, सबकी भलाई छाप बातें साइडलाइन में की ही जा रही हैं।
      महाभारत में दो पक्ष थे, यहां दर्जन भर पक्ष हैं। महा-महाभारत है यह! :-)

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