बैठकी – धीरेंद्र दुबे जी से रिटायरमेण्ट @ 45 पर बातचीत

पिछली रिटायरमेण्ट @ 45 वाली पोस्ट के अंत में मैंने लिखा था –

इस मुद्दे पर मैंने धीरेंद्र कुमार दुबे, अपने बड़े साले साहब को भी सोचने और अपने निष्कर्ष बताने को कहा है। धीरेंद्र मेरी तरह अपने को गांव की सीमाओं में ‘कूर्मोंगानीव’ समेटे नहीं हैं। वे बेंगलुरु में रहते हैं और उन्हे देश परदेश के लोगों को ऑब्जर्व करने का व्यापक अनुभव है। वे जैसा बतायेंगे, उसके अनुसार मैं इस पोस्ट का दूसरा भाग प्रस्तुत करूंगा। आशा है, वे जल्दी ही अपने विचार प्रकटित करेंगे! 

धीरेंद्र कुमार दुबे

धीरेंद्र कुमार दुबे लीन मैनेजमेण्ट इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया के चीफ एग्जीक्युटिव अफसर रह चुके हैं और Lean Transformation Consultancy Pvt. Ltd. नामक संस्थान के लीन कोच हैं। मैंने उनसे कभी पूछा नहीं; पर लगता है कि यह कंसल्टेंसी उपक्रम उनका अपना है। इस तरह वे अपने तय किये पेस पर काम करते हुये रिटायरमेण्ट का भी मजा ले रहे हैं और व्यवसाय का भी। उनके बेटवा-बिटिया अपनी अपनी तरह सेटल हैं, सो उनकी चिंतायें भी विकट नहीं होंगी।

धीरेंद्र जी का ठिकाना बैंगलुरु शहर में है – मेरी तरह गांव में नहीं।

धीरेंद्र सामान्य मुद्दों पर भी मनन-मंथन कर कुछ नया नजरिया प्रस्तुत करने की विधा के माहिर हैं। इसीलिये मैंने सोचा कि रिटायरमेण्ट @ 45 वाले मुद्दे पर वे कुछ बेहतर बता सकेंगे, तभी यह विषय मैंने उनके समक्ष रखा।

आजकल पॉडकास्ट का खुमार चढ़ने लगा है मुझ पर, सो मैंने उन्हे सुझाया कि हम लोग फोन पर बात कर उनके (और मेरे अपने भी) विचार रिकार्ड कर प्रस्तुत कर सकते हैं। हमने वैसा ही किया।

रिटायरमेण्ट @ 45 पर पॉडकास्ट

पॉडकास्ट के बारे में मैं अभी अनाड़ी हूं; सो प्रयोग बहुत बढ़िया नहीं हो पाया है; पर धीरेंद्र का कहना है कि पहले अटेम्प्ट के हिसाब से अच्छा ही है। भविष्य में अगर हम यह आदान-प्रदान जारी रखते हैं तो और भी बेहतर कर सकते हैं – प्रस्तुति में भी और पॉडकास्ट के कण्टेण्ट में भी।

हमने करीब आधे घण्टे की बातचीत की। उसकी रिकार्डिंग में कुछ ग्लिचेज हैं, पर तब भी वह सुनेबल (सुनने लायक) है – ऐसा मेरी पत्नीजी और धीरेंद्र का मानना है। उसमें धीरेंद्र ने पैतालीस की रिटायरमेण्ट के आर्थिक से इतर व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों की बात भी की है, जिनपर नौजवान अपनी रिटायरमेण्ट प्लानिंग के दौरान ध्यान नहीं देता और जो पैंतालीस-पचास की उम्र जब उसे ‘हस्तामलकवत’ सामने दिखती हैं तो उसके कदम ठिठकने लगते हैं।

आप पूरी बातचीत सुनने के लिये ऊपर दिये पॉडकास्ट पर जायें; जो सामान्यत: किसी भी पॉडकास्ट माध्यम – स्पोटीफाई, गूगल पॉडकास्ट या वेब पर उपलब्ध है। वैसे आप इसी पोस्ट में भी प्ले के आइकॉन को क्लिक कर सुन सकते हैं।

पॉडकास्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “बैठकी – धीरेंद्र दुबे जी से रिटायरमेण्ट @ 45 पर बातचीत

  1. जीडी सर, आप जैसा सोचते है, जैसा आपने खुद को ढाल लिया है ग्रामीण परिवेश में वैसी (अच्छी) सोच रखने वाले भी आज की दुनिया मे ढूंढने पड़ेंगे🙏,पहले के जमाने मे हमारे इधर राजस्थान(मारवाड़) में मान लीजिये की 5 भाइयों का परिवार होता था और उनमें से अगर एक भाई सरकारी नौकरी में होता था तो उस परिवार को बड़ा ही सम्मान की नजरों से देखा जाता था, और पुरे परिवार के बच्चो तक के रिश्ते अच्छे घरों में हो जाते थे,आज हालात ये है की उस सरकारी करर्मचारी को खुद को सामाजिक/वर्तमान माहौल में एडजस्ट रखने हेतु अलग से उद्यम करता है।😀

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    1. सरकारी नौकरी का अवमूल्यन जरूर हुआ है. कई प्रांतों में ऐसा पाया है मैंने. गुजरात में तो ज्यादा ही पाया.
      पर उत्तर प्रदेश और बिहार में अभी भी जलवा बरकरार है 😊

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  2. जुगलबन्दी बहुत अच्छी है, बनाये रखें। आपकी देखा देखी और बिटिया की सलाह पर हमने भी पोडकास्ट प्रारम्भ कर दिया है। एकल है अभी पर बतियाने का भी विचार है।

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  3. सुनकर अच्छा लगा । आंखे भी खोली कि मान लो पैसे की सामर्थ्य आ भी गई तो भी कहां मन लगाओगे। कुछ सुझाव भी मिले। धन्यवाद

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    1. टिप्पणी के लिए धन्यवाद सूरज जी. जान कर अच्छा लगा कि पॉडकास्ट आपको काम का लगा.
      आप को शुभकामनाएं.

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  4. बढ़िया विषय है, शुरुवात भी सही है, जारी रखिये। पॉडभारती के मंच के लिये कुछ बनाना चाहें तो खुशी होगी।

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    1. धन्यवाद देबाशीष जी, वास्तव में मजा आ रहा है. बहुत कुछ ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर जैसा. 😊

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  5. मैं खुद 350 – 400 दिनों से इस विषय पर सोच रहा हूं किंतु किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा । खास कर बच्चों का स्थायित्व पा लेना इस 50वें वर्ष के बाद ही होना है भारतीय समाज के कामकाजी वर्ग में तो यह कुछ रैला फैला देता है । बहरहाल बढ़ती उम्र के संदर्भ में भी भविष्य खर्च और उस समय के कमाऊ समाज की आय से तुलना विचारणीय है । यह वार्ता बहुत कुछ समेटते हुए सार्थक दिशा में विचार को धकेलती है । सुनना अच्छा रहा । वह बहुत कुछ दोनो मुखों से सुना जो भीतर विगत वर्ष से दौड़ रहा है । बात यह भी उचित है कि पद के अतिरिक्त व्यक्तित्व विकास और सामंजस्य महत्वपूर्ण है । ढेर सारे पहलू , बहुत सारे विचार….किंतु जितना समेट पाए हैं इसमें वह भी बहुत बेहतर है

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    1. जी शेखर जी, विषय वास्तव में और विस्तार और भी पहलुओं पर चर्चा मांगता है. हम लोग खुद इस असमंजस में रहे कि कितना कहें, कितना छोडें. कई अन्य पहलू अनछुए रह गए.
      हमें यह भी असमंजस था कि पॉडकास्ट सुनने वाले कितना सुनेंगे और उकता तो नहीं जाएंगे.

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  6. पॉडकास्ट तो अच्छा रिकार्ड हुआ है, आवाज भी ठीक है, पर विषय इतना वृहद है और भारत के संदर्भ में में बहुत कुछ समीचीन भी नही है कि इस पर आधे घंटे में सभी दृष्टिकोण से परिचर्चा की जा सके।
    फिर भी आपका प्रयास सराहनीय है।

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