गांवदेहात का ढाबा और महिलाओं का ध्यान

अप्रेल में लॉकडाउन का समय था और यह हाईवे के किनारे, सर्विसलेन से जुड़ा चाय-समोसा-जलेबी आउटलेट पूरी बंदी के बावजूद खुला रहता था। नया नया खुला था और लॉकडाउन की गिरफ्त में आ गया। फिर भी लॉकडाउन कानून को धतियाते हुये अपना काम चला ले रहा था। मेन हाईवे पर प्रयाग की ओर से आती बसें रुकती थीं। उसमें से कुछ मास्कवादी, कुछ अमास्किये और कुछ गमछा धर्मी उतर कर समोसा चाय आदि का सेवन करते थे। जब सब बाजार दुकान बंद थे तो इसका चलना मुझे अजीब भी लगता था और ढीठपना भी।

बहरहाल अब लॉकडाउन खुल गया है और इस ढाबे का रूपांतरण भी चल रहा है। आगे काउण्टर और भट्ठी का स्पेस सड़क की ओर बढ़ाया जा रहा है। नाम भी लिख गया है और उसपर नये नये चाईनीज व्यंजनों के चित्रों वाली फ्लैक्सी शीट भी टंग गयी है। हाथ धोने के लिये वाशबेसिन लग गया है और पेय जल की बोतलें भी प्रॉमिनेटली दिख रही हैं।

जिस बात ने मेरा ध्यान खींचा, वह एक तीर लगा कर महिला शौचालय दिखाया जाना। इस यूपोरियन पितृसत्तात्मक समाज में इस तरह की चीज अजूबा टाइप है। आदमी तो ढाबे के पास पूरी बेशर्मियत से जिप खोल कर द्रव विसर्जन कर लेते हैं। छोटा बच्चा हुआ तो माँयें उसकी नेकर निपुचा कर ठोस द्रव दोनो का विसर्जन करवा लेती हैं और धोने के लिये बिसलेरी का पानी भी किफायत से इस्तेमाल हो जाता है। पर उसी अनुपात में महिलाओं को भी जरूरत होती होगी। वे शर्म के मारे इधर उधर बैठ ही नहीं सकतीं! उन्हें लम्बी दूरी तक यात्रा में ब्लैडर भरा होने पर भी, अपने को रोकना पड़ता है।

मैंने देखा तो महिला शौचालय का पल्ला खुला था और अंदर सफाई भी नजर आ रही थी। वाश बेसिन में नल था और उसमें पानी भी आ रहा था। उसके साथ एक दर्पण लगा होना चाहिये था, वह शायद अगले विस्तार में लगे। महिलाओं के लिये दर्पण की व्यवस्था तो होनी ही चाहिये।

बावजूद इसके कि यह ढाबे वाला लॉकडाउन नियम का धड़ल्ले से उलंघन कर चुका था, उसका अब महिला शौचालय बनवाना मुझे भा गया। ढाबों में या इसी तरक के अन्य उपक्रमों में महिला शौचालय की व्यवस्था का कानून बनना चाहिये। यह अलग बात है कि उत्तर प्रदेश के लोग कानून को अपने ठेंगे पर (काशीनाथ सिंह की भाषा में कहें तो ल*& पर) रखते हैं। पर कुछ तो सुधार होगा।

मेरे साले साहेब लोग हाईवे के उरली तरफ एक पेट्रोल पम्प और उससे जुड़ा ढाबा बनाने-चलाने की योजना रखते हैं। मुझे आशा है कि वे मेहरारू-मरसेधू (महिला – पुरुष) दोनों के लिये टॉयलेट जरूर बनवायेंगे अपने ढाबा काम्प्लेक्स में और उसकी साफ सफाई के लिये एक कर्मचारी की व्यवस्था भी करेंगे जो दो घण्टे के अंतराल पर उनकी सफाई के स्तर को बनाये रखे। वर्ना यह खतरा तो रहता ही है कि ऐसी जगह विसर्जन करने के बाद ब्लैडर तो हल्का हो जायेगा पर यूरीनरी ट्रेक्ट इनफेक्शन होने का खतरा भी हो जायेगा।

अपनी साइकिल रोक कर मैं उस ढाबे के मालिक से जानना चाहता था कि उन्हे महिला प्रसाधन बनाने का आईडिया कैसे आया। पर वे मोटे-बहुत मोटे सज्जन अपने कर्मचारियों को किसी बात पर डांटने में व्यस्त थे। जब उस डांट में लाउडनेस और बढ़ गयी और उसमें माँ-बहन के पारिवारिक सम्बंधों वाले शब्द भी धाराप्रवाह आने लगे तो मैं केवल एक चित्र खींच कर चला आया।

बहरहाल उनका महिला शौचालय बनवाने और उसे साफ रखने का उनका प्रयास मुझे बहुत भाया।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “गांवदेहात का ढाबा और महिलाओं का ध्यान

  1. १९७४ में कश्मीर जाना हुआ था. स्कूल में पढ़ती थी तब. जम्मू से श्रीनगर की १२ घंटे की बस यात्रा में जहाँ भी बस रूकती थी, ढाबे वाले टूट पड़ते थे, अधिकतर पुरुषों पर, और सस्वर मेनू-पाठ करने लगते थे. पर उन सब के बीच में एक-दो चतुर ढाबा मालिक पुरुषों की बजाय महिलाओं के पास जा कर धीमी आवाज़ में कहते, “बिब्बियों, भैणों, टॉयलेट है, साफ़ सुथरा!!” कहना ना होगा अधिकाँश महिलाएं आगा पीछा देखे बगैर उनके पीछे चल पड़तीं और फिर खाना भी उसी ढाबे में संपन्न होता ! इस नए मार्केटिंग तकनीक से (उस समय तो नया ही था) हम सभी प्रभावित हुए थे! आज कल तो राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, हरयाणा, पंजाब में जब भी सड़क से यात्रा की है, टॉइलेट की समस्या कभी नहीं आई है. हर पेट्रोल पंप और ढाबे में साफ़ सुथरे महिला टॉयलेट कक्ष मिलते हैं जिनमें आम तौर पे सफाई कर्मचारी भी मौजूद होती है और आपसे tip की अपेक्षा भी रखती है. उसे टिप देना बुरा भी नहीं लगता!

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  2. यहाँ राजस्थान में हाइवे के किनारे वाले करीब करीब सभी ढाबों में में महिला शौचालय मिलेगा और पेट्रोल पम्प पर तो हर हालत में।

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    1. राजस्थान सुसंस्कृत राज्य है. उत्तर प्रदेश, बिहार या झारखंड की तरह अराजक नहीं.

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  3. चलती गाड़ियों को जब ज्ञात रहता है कि यहाँ पर यह विशेष सुविधा भी है तो वे यहीं रुक जाते हैं। कानून न भी हो, होटल चलाने के लिये यह आवश्यक हो जायेगा।

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