आई.सी.यू. में गांव की पोखरी

कुछ साल पहले कहीं, किसी किताब में गंगा नदी की दशा दुर्दशा पर पढ़ा था – गंगा आई.सी.यू. में हैं। और लगता भी था। शिवकुटी, प्रयागराज में उनमें पानी बहुत कम होता था, रेत ज्यादा। पानी भी हद दर्जे का प्रदूषित। लाल रंग का दिखता था – लोग कहते थे कि कानपुर की टैनरियों की करतूत के कारण है। कालांतर में मैं यहां जिला भदोही के गांव में चला आया। गंगा यहां अस्वस्थ तो दिखती हैं, पर आई.सी.यू. में नहीं। यहां कोलाहलपुर या द्वारिकापुर के घाट पर कभी कभी सोंईस (मीठे जल की गांगेय डॉल्फिन) के भी दर्शन हो जाते हैं।

गंगा आई.सी.यू. में नहीं दिखतीं।

पर यहां गांव की पोखरी (जो मेरी शादी के समय में अच्छा बड़ा पोखर हुआ करता था) जरूर आई.सी.यू. में दिखा मुझे। चार दशक में वह क्या से क्या हो गया। गांव के हर व्यक्ति ने उसको अपने अपने स्वार्थ के लिये उसे उत्तरोत्तर रुग्ण बनाया है। और उसका खामियाजा अब गांव ही भुगत रहा है।

जलकुम्भी से अंटी हुई है गांव की पोखरी

मैंने गांव के आसपास 10-15 किलोमीटर के दायरे में खूब साइकिल-भ्रमण किया है। कई ताल-तलैय्ये-पोखर-गड़ही देखे हैं। बहुत से उनमें से अभी स्वस्थ और जीवंत हैं पर कई रुग्ण हैं। वे जल क्षेत्र जो गांव की आबादी के बीच हैं; उनकी दशा ज्यादा खराब है। उनमें से इस गांव – विक्रमपुर की पोखरी तो आई.सी.यू. में ही है। ज्यादा जीने की उम्मीद नहीं लगती। और आजकल उसे ले कर गांव के स्तर की राजनीति भी खूब हो रही है। अतिक्रमण और दबंगई – दोनो व्यापक दिखते हैं उसे ले कर। अतिक्रमण तो लगभग हर एक ने किया है; पर दबंगई तो उन्हीं ने दिखाई है, जिनके पास गांव की प्रभुता रहती आयी है। और पोखरी को प्रदूषित करने में सभी ने अपना (भरपूर) योगदान किया है। अत: कोई “होलियर देन दाऊ” वाला भाव रखने का अधिकारी नहीं!

उस पोखरी पर; और उसके माध्यम से जल संरक्षण की व्यापक समस्या पर मैंने और मेरी पत्नीजी ने एक पॉडकास्टिकी की है। उसमें “मेम साहब” मेरी पत्नीजी हैं। यह सम्बोधन उन्हें मेरी रेल की अफसरी के दौरान मेरे कर्मचारी और घर के भृत्य करते थे। अब तो वह फेज खत्म हो गया है। अब तो वे इस गांव की सार्वजनिक दीदिया या फुआ (बुआ) हैं!

बहरहाल वह पॉडकास्ट सुनने का आग्रह है आप से। उसे आप गूगल पॉडकास्ट, स्पोटीफाई या अन्य पॉडकास्ट माध्यमों पर सुन सकते हैं या फिर इसी पोस्ट में ही क्लिक कर श्रवण कर सकते हैं –

ICU में गांव की पोखरी – रीता पाण्डेय के साथ मानसिक हलचल की बैठकी

फेसबुक पर टिप्पणियाँ

  • लालसा दुबे – hr jagah ka whi hal hai jija ji. hmara to niji talab hai aur usi me pure gaw ka nabdan, kchda jata h. ab kre kya.aam jnta se ldai aasan nhi hai. rhna bhi h isi gaw me. kya kre. (हर जगह का वही हाल है जीजा जी। हमारा तो निजी तालाब है और उसमें पूरे गांव का नाबदान, कचरा जाता है। आम जनता से लड़ाई आसान नहीं है। रहना भी इसी गांव में है। क्या करें।)
  • ज्ञानदत्त (प्रत्युत्तर) – हाँ, यह दुखद है। यह भी है कि निजी स्तर पर आप कुछ खास कर नहीं सकते और समाज का नेतृत्व जिनके पास है, उन्हे पर्यावरण से लेना देना तब तक नहीं, जब तक उनकी राजनीति पर आंच न आये।जब जनता ही ऐसी है तो कुछ होना सम्भव नहीं।प्रधानमंत्री जी ने स्वच्छ भारत खूब कहा, पर फर्क रुपया में एक दो आना भर पड़ा है।
  • आशीष पाण्डेय – सभी गांव का लगभग यही हाल है हर जगह अवैध अतिक्रमण कर कब्जा किया जा रहा है।
  • अमित कुमार – sir har jagah logo ne ye haal kar diya hai. kahi bhi khali jamin, ya talab, pokhar dikhi to uspe kabza (सर, हर जगह लोगों ने ये हाल कर दिया है। कहीं भी खाली जमीन, या तालाब, पोखर दिखी तो उसपे कब्जा।)
  • डा. अशोक कुमार सिंह – Beautiful conversation.
  • साधना शुक्ल – Bahut badhiya.
  • रवींद्रनाथ दुबे – बहुत सुंदर वार्तालाप।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “आई.सी.यू. में गांव की पोखरी

  1. Happy to see the effort that we are making to save the Pokhri manifested in your podcast.
    But sad to hear your subjective opinion which is full of contradictions and also reflects your lack of information on the issue.
    Also, there is a difference between doers and virtue callers.

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  2. Happy to see the effort that we are making to save the Pokhri manifested in your podcast.
    But sad to hear your subjective opinion which is full of contradictions and also reflects your lack of information on the issue.
    Also, there is a difference between doers and virtue callers.

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    1. सही क्या है? रोचक होगा वह जानना। और ब्लॉगिंग/पॉडकास्टिन्ग का एक ध्येय वही होता है। यह कोई पत्रकारिता तो होती नहीं।
      और विचार तो सब्जेक्टिव ही हैं – उसमें तो कोई विवाद है ही नहीं। ब्लॉग तो व्यक्तिगत विचारों का मंच है।

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