पार्वती मांझी

यहां गांव से दस किलोमीटर दूर घर है उसका। नाम पार्वती। जाति की मल्लाह है। जातिसूचक नाम है मांझी। बरैनी की रहनेवाली है। लोगों के यहां छोटे समारोहों में भोजन बनाने का काम करती है। उसके बारे में मेरी लेखन-रुचि इस लिये हुई कि वह जीविका के लिये सामान्य से हट कर साधन-प्रयोग करती दिखी।

पार्वती ने पहल आज से पंद्रह साल पहले समारोहों के लिये भोजन बनाने की शुरुआत की थी। तब वह कछवां के एक हलवाई के साथ जुड़ी, बतौर हेल्पर। हलवाई को जहां काम मिलता, वह साथ जाती। काम सीखने पर उसने स्वतंत्र रूप से काम लेना शुरु किया। ग्राहक मिलने लगे और काम की गुणवत्ता को देख कर उन ग्राहकों ने औरों को भी पार्वती के बारे में बताया-सुझाया। अब पार्वती के पास करीब 30-35 नियमित ग्राहक हैं, जिनमें अधिकतर महिलायें हैं। लोग अपने घर 10-20 से लेकर 70-75 लोगों के भोजन बनवाने के लिये पार्वती ही बुलाते हैं।

पार्वती मांझी

पंद्रह साल में पार्वती ने बहुत प्रगति की है। अब उसे महीने में 20-25 दिन आसपास के इलाके में भोजन बनाने का काम मिलता है। यही नहीं, ग्राहक जो उसकी पाक-कला से संतुष्ट हैं, उसे अपने साथ अन्य शहरों में भी ले कर जाने लगे हैं। वह प्रयागराज, लखनऊ और अलीगढ़ भी हो आयी है।

अलीगढ़ कैसे जाना हुआ?

एक दारोगा जी थे। उनकी बिटिया की शादी अलीगढ़ में तय हुई थी। लड़के वालों ने अलीगढ़ में ही शादी की फरमाइश रखी। सो, दारोगा जी ने उससे अलीगढ़ में रिश्तेदारों की जमात के लिये इंतजाम करने को कहा। इस तरह वह अलीगढ़ भी हो आयी। जितने दिन वहां रुकना था, दारोगा जी ने उसका ठीक से रहने का इंतजाम किया था। उसके साथ उसकी टीम में 5-6 लोग (अधिकतर महिलायें) होती हैं। उनका भी प्रबंध किया।

गांवदेहात की पार्वती न केवल खुद अपने पैरों पर खड़ी है, वरन अपने साथ 5-6 अन्य को भी रोजगार दिला रही है। क्या खूब बात है! हेलो प्रधानमंत्री जी; आर यू लिसनिंग!

पार्वती के सात बेटियां और एक बेटा है। बेटा पंद्रह साल का है। मिस्त्री का काम जानता है और अपनी एम्प्लॉयेबिलिटी बेहतर करने के लिये गाड़ी चलाना भी सीख रहा है। उसका पति केटरिंग व्यवसाय में ही है। कभी वह पत्नी के साथ और कभी अलग ठेका लेता है भोजन बनाने का।

इन पंद्रह सालों में पार्वती और उसके पति ने अपनी दो लड़कियों की शादी की है। इसके अलावा उसकी ननद की शादी भी की है। सारा खर्च उन्होने ही किया है। घर चलाया है, बच्चे पाले हैं, तीन शादियां की हैं और तब भी पार्वती को संतोष है कि उसपर कोई कर्जा नहीं है। एक पैसे का भी नहीं। लॉकडाउन में काम कम मिला। तंगी रही, पर फिर भी सब चल ही गया। अब सामान्य काम मिलने लगा है।

तुम्हारा या तुम्हारे पति का कोई एब, कोई लत?

जी नहीं। कोई एब नहीं उसमें या उसके पति में। केवल पान खाते हैं। और कुछ नहीं। यह भी एक कारण है कि गृहस्थी ठीक से चल रही है और परिवार बड़ा होने के बावजूद कोई कर्ज नहीं है।

कभी कभी इतना काम भी मिलता है जो तुम खुद अटेण्ड नहीं कर पाती?

हां। कभी कभी होता है। तब ग्राहक ही पूछते हैं कि कोई और का नाम सुझाओ। वह अपने हेल्पर में से किसी को भेजती है। लेकिन यह भी आगाह कर देती है कि खाने की क्वालिटी में उन्नीस-बीस हो सकता है। फिर भी हेल्परों के काम को लेकर कभी-कभी शिकायत आती है। इसी तरह से वे काम सीखते हैं।

पार्वती मांझी को पहले पहल मैंने पिछली कार्तिक पूर्णिमा को देखा था। उसे मेरे साले साहब की पत्नी जया ने पूर्णिमा के दिन ऑवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाने के लिये बुलाया था। आंवले के पेड़ के नीचे की जगह साफ की गयी थी और वहां मिट्टी की हंड़िया में दाल बनी थी। उस अवसर का चित्र मैंने खोज कर निकाला –

आंवले के वृक्ष के नीचे कार्तिक पूर्णिमा को भोजन बनाती पार्वती

तब मुझे पार्वती का नाम/परिचय नहीं मिला था। बीच में अन्य अवसरों पर वह जया के घर भोजन बनाने आती रही। अभी जया की बिटिया यशी के जन्मदिन पर उसे बुलाया था तो मेरी पत्नीजी से किसी बारे में बात करने वह हमारे घर आयी। उस समय मैंने उससे उसके बारे में पूछा।

और वह मुझे ब्लॉग के लिये एक सशक्त चरित्र नजर आयी। बातचीत करने में उसके जो आत्मविश्वास था, वह किसी में यूंही नहीं आ जाता। वह अपने मेहनत के बल पर सफलता की सीढ़ियां चढ़ने वाले में पाया जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा को हाण्डी में पकी दाल

गांवदेहात में अनेक महिलाओं को मैंने देखा है। सभी अपनी अपनी सीमाओं में बंधी पिस रही हैं। अधिकांश घर की दहलीज नहीं लांघ पातीं। अवर्णों की महिलायें घर से बाहर निकलती भी हैं तो उपले पाथने, खेतों में काम करने आदि से आगे नहीं बढ़तीं। यहां यह पार्वती है जो अपने हुनर के बल पर, अपने व्यसन-हीन जीवन की बदौलत और अपनी उद्यमी प्रवृत्ति के कारण न केवल अपना बड़ा परिवार पाल रही है वरन आधा दर्जन अन्य को नियमित रोजगार भी दिलवा रही है!

पार्वती की उद्यमिता की जय हो!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “पार्वती मांझी

  1. कुछ कुछ किस्से सुन-पढ़ कर एक ऐसा संतोष होता है जो कई दिनों तक दिल को खुश रखता है, पार्वती जी का किस्सा ऐसा ही है! सुनाने के लिए धन्यवाद और पार्वती जी को मेरी तरफ से जरूर बधाई दें !
    मेरे गाँव में भी एक सुरसती बुआ हैं. शादी के दो साल भर के भीतर विधवा हो गयी थीं, गोद में नन्ही सी बच्ची! मायके में जैसा तैसा आश्रय मिला। पाक कला के अलावा और कोई हुनर आता न था! उन्होंने भी ऐसे ही घरों में शादी ब्याह मुंडन जनेऊ आदि के अवसर पे खाना बनाने का काम करना शुरू किया। खाली समय में बड़ियाँ पापड़ अचार वगैरह भी बनाती थीं जिसकी मांग दूर दूर से आने लगी! मेरी शादी में माँ ने उन्हें गाँव से बुलवाया था और उन्होंने सारा काम काज बहुत अच्छे से संभाला! अब उम्र हो गयी है तो अपना काम भी आसान कर लिया है. अब वो गीत गाने के बुलौवे पे जाती हैं! गणपति-बन्ना-बन्नी-भात-विदाई-गाली सब तरह के गीतों का खजाना है उनके पास और है बुलंद मँजी हुई आवाज़! शादी के मौसम में शहरों से खूब बुलावे आते हैं जहाँ अभी भी कई लोग आधुनिक शादियों में भी परंपरागत गीत खूब पसंद करते हैं. सहज बुद्धि भी कम नहीं। एक बार जब मैंने पुछा की बेटी को १२वीं से आगे क्यों नहीं पढ़ाया, तो बोली बीए-एम्मे करवा के क्या करती, न उसके जोड़ का लड़का मिलता न बाहर नौकरी करने की आज़ादी! अब अपने सारे हुनर उसको सिखा दिए हैं जब जरूरत होगी काम आएंगे! और सच में बेटी का ब्याह खाते पीते घर में तो किया ही, अब बेटी खुद का केटरिंग बिज़नेस भी है!
    उसकी देखा देखी गाँव की और भी बहुत औरतें हुशियार हो गयी हैं! देख के अच्छा लगता है!

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    1. वाह! आनंद आ गया सुरसती बुआ के बारे में जानकर. क्या शानदार चरित्र के बारे में बताया आपने आरती जी. धन्यवाद.

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