जून के प्रारम्भ के दिन थे। कोरोना संक्रमण का दूसरा वेव थोड़ा थमा था। मैंने साइकिल ले कर दस किलोमीटर तक घूमना प्रारम्भ किया था। तब वह उमरहाँ गांव में दिखा था। एक पान गुटखा की गुमटी के पास खटिया बिछा कर लेटे हुये जियो के फीचर फोन पर कोई न्यूज चैनल देखते सुनते हुये।
दृष्य बड़ा आकर्षक लगा था। पर वह व्यक्ति बहुत कम्यूनिकेटिव नहीं था। उसने मेरी ओर देखा था और हूं हाँ करते हुये जवाब दिया था। वैसा जवाब जिसका कोई खास अर्थ नहीं होता और अपने बारे में न कोई सूचना होती थी।

खैर, मेरा ध्येय फोटो खींचना भर था। और मैंने यह निष्कर्ष निकाला कि एक जियो का फीचर फोन भी न केवल समाचार का टीवी चैनल दिखा सकता है, वरन अकेले बैठे आदमी का मनोरंजन भी कर सकता है। कुछ लोगों ने टिप्पणी भी की थी कि मैं फ्री में जियो टेलीकॉम का विज्ञापन कर रहा हूं।
चित्र यद्यपि बहुत साफ नहीं था, पर मैंने उसे कई दिनों तक ब्लॉग हेडर बनाये रखा। वह आदमी मुझे कुछ अपने जैसा लगा था। अकेला।

अभी कल मैं फिर उमरहाँ की उसी गुमटी से गुजरा। वह व्यक्ति फिर वहीं था। उसकी गुमटी खुली थी। वह खटिया पर बैठा था। हाथ में चुनौटी थी। सामने जियो का वही फीचर फोन था। उस फीचर फोन को तन्मयता से देख रहा था। शायद कोई वीडियो।
उसने मेरी ओर देखा और फिर मेरी ओर से विरक्त हो कर पुन: मोबाइल देखने लगा।
मैंने उससे यूंही बात करने के लिये पूछा – न्यूज देख रहे हैं?
“हूं, वैसा कुछ।”

“फोन जियो का है न? काफी चीजें दिखाता है?”
“ऐसे ही है।” उसने संक्षिप्त उत्तर दिया और चुनौटी कस कर पकड़ कर फोन को और तन्मयता से देखने लगा। मानो मेरी ओर कोई ध्यान नहीं देना चाहता।
फिर भी एक जिद्दी की तरह मैंने बात छोड़ी नहीं। “जियो का प्लान सस्ता होगा न? कितना लगता है महीने में?”
उसने बिल्कुल उखड़ा सा जवाब दिया – “होगा। मुझे मालुम नहीं।”
उसी बंदे का फोन है। अकेला बैठा उसी के सहारे समय काटता है। पर उसी चीज के बारे में बोलना-बतियाना नहीं चाहता। मुझे लगा कि एक सामान्य से आदमी ने मुझ (रिटायर्ड ही सही) ठीकठाक से दिखने वाले व्यक्ति को बड़े जबरदस्त तरीके से स्नब किया! कभी कभी ही तुम्हें नहले पर दहला मिलता है। नौकरी-अफसरी के दौरान नहीं मिला; यहाँ गांवदेहात में मिला; जीडी! 😆
एकाकी पर नामिलनसार आदमी। डेढ़ हजार के पुराने जियो के फीचर फोन में डूबा। यहां मेरे पास भले ही किताबें घर में ठुंसी हों। सुनने को भले ही बहुत सी सामग्री हो। देखने के लिये टीवी के अलावा दो तीन ओटीटी चैनल हों। मन में यह गहरे से बैठा हो कि मैं अंतर्मुखी व्यक्ति हूं। पर कोई घर पर आता है तो मैं पूरी तवज्जो से उससे मिलता हूं। घर में कच्छा बनियान में होता हूं तो बाकायदा प्रेजेण्टेबल ड्रेस पहन कर और सिर पर (भले ही थोड़े से बाल हों) कंघी फेर कर उनके पास जाने का प्रयास करता हूं। और आगंतुक व्यक्ति को अपनी ओर से जाने के लिये नहीं कहता, अगर कोई बहुत जरूरी काम आसन्न न हो। उसके उलट यह रुक्ष व्यक्ति ग्राहकी तलाशता गुमटी खोल कर बैठा है। कोई आश्चर्य नहीं कि उसे कोई ग्राहक न मिलता हो। दुकान चलती ही न हो।

कोई नमिलनसार दुकान कैसे चला सकता है? मैं समझ नहीं सकता। मैं अपने को भीषण अंतर्मुखी व्यक्ति मानता हूं। पर यह रूखा आदमी तो अंतर्मुखत्व का शीर्ष निकला। और चिड़चिड़ा भी। जियो के चुटपुटिया फोन की बजाय रामचरित मानस का गुटका लिये होता तो मैं उसे सिद्धता की सीढ़ियाँ चढ़ता व्यक्ति मानता। लेकिन, कुल मिला कर वह मुझे अव्यवहारिक, एकाकी और असफल जीव लगा।
तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग। सबसे हँस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥
[तुलसीदास जी कहते हैं, इस संसार में तरह-तरह के लोग रहते हैं. आप सबसे हंस कर मिलो और बोलो। जैसे नाव नदी से संयोग कर के पार लगती है वैसे आप भी इस भव सागर को पार कर लो।]
तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग। सबसे हँस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥
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वो इंसान नहीं खंभा है, बस आप उससे टकरा गए। जैसा कि स्टीफन आर कवि कहते हैं कि हर इंसान का ओरियंटेशन होता है, कोई परिवार, समाज, देश, कॅरियर या धन के प्रति ऑरियंटेड होता है, इस बंदे का भी कुछ होगा, जहां यह सक्रिय और सजग और प्रजेंटेबल होता होगा, बस आपके प्रति या अपनी ग्राहकी के प्रति नहीं होगा।
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सही कह रहे हैं आप. उसका व्यक्तित्व कौतुहल भी उपजाता है और चैलेंज भी!
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हा हा हा, डेढ़ हजार के फोन में ही प्रसन्न है। न केवल प्रसन्न है वरन स्नाब भी हो गया है। अम्बानी ने तो पूरा परिदृश्य बदल दिया।
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हाँ! मुझे snub किया, बहुत मजे से. 😁
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