प्रेम पाण्डेय, विलक्षण काँवरिया

उन सज्जन के प्रति, भगवान शिव के प्रति और हिंदुत्व के प्रति गहन श्रद्धा उमड़ आयी! इतने सारे सेकुलर विद्वता ठेलते बुद्धिजीवियों को ठेंगे पर रखने का मन हो आया। मैंने साइकिल किनारे खड़ी कर प्रेम पाण्डेय को स्नेह और श्रद्धा से गले लगा लिया!

श्रावण बीत गया है। भादौं लगे एक सप्ताह हो गया है। इस साल कांवरिये इक्का दुक्का ही दिखे। पर आज जो कांवरिया दिखे, वे तो विलक्षण ही कहे जायेंगे!

मैं सवेरे साइकिल भ्रमण पर निकला था। लसमणा की सड़क जहां हाईवे की सर्विस लेन से मिलती है, वहां हाईवे पर जाते वे मिले। एक डण्डे में ली हुयी कांवर थी। साधारण सी कांवर। उसमें प्लास्टिक के जरीकेन और एक स्टील का बर्तन लटके थे। एक मोटी रुद्राक्ष की माला डण्डे में लिपटी थी। दूसरी ओर चारखाने वाले गमछे नुमा कपड़े में एक पोटली थी। शायद उसमें भोजन सामग्री, कपड़े आदि हों।

मैने अपनी साइकिल उनके सामने रोक कर उनसे पूछा – श्रावण मास तो बीत गया। अब कैसे कांवर ले कर निकले हैं आप?

प्रेम पाण्डेय

“बारहों महीने जल चढ़ाते हैं। जब अवसर मिले। साल भर में दस बारह बार कांवर यात्रा कर चुका हूं।”

उन्होने अपना नाम बताया प्रेम पाण्डेय। देवरिया जिला के रामपुर के हैं। देवरिया से चौरीचौरा पकड़ कर प्रयाग राज पंहुचे और वहां से संगम का जल ले कर बाबा विश्वनाथ के लिये रवाना हुये हैं। अकेले। अब उनका ध्येय बारहों ज्योतिर्लिंग की यात्रा करना है।

बारहों, ज्योतिर्लिंग की यात्रा?! कैसे करेंगे? ट्रेन से?

“नहीं पैदल – पैदल जायेंगे। बारहों ज्योतिर्लिंग की यात्रा की शुरुआत बाबा विश्वनाथ से होगी। वहीं के लिये जा रहा हूं।”; पाण्डेय जी ने बड़े सहज भाव से कहा। और यह सुन कार एकबारगी मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।

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द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची

मुझे कहीं की भी यात्रा करनी हो तो इतनी प्लानिंग होती है – कैसे जायेंगे। कहां रुकेंगे। वहां इण्टरनेट कनेक्शन कैसा होगा। गर्मी का मौसम हो तो वातानुकूलित कमरा मिलेगा या नहीं। ट्रेन का रिजर्वेशन कंफर्म हो गया है या नहीं। कंफर्म हो गया है तो इनसाइड लोअर बर्थ है या उसके लिये किसी को बोलना होगा… इतनी इफ्स-एण्ड-बट्स हैं यात्रा शुरू करने में कि कोई यात्रा ड्राइंग-बोर्ड से आगे बढ़ ही नहीं पाती। पिछले चार साल से रेलवे का कोई फ्री-पास इसलिये निकाला ही नहीं। यात्रा सिर्फ साइकिल से या प्रयागराज-बनारस तक ही हो रही है। और ये सज्जन हैं, जो एक बांस की कांवर ले कर निकल लिये हैं; नंगे पैर। बनियान और लुंगी की तरह लपेटी धोती में!

उन सज्जन के प्रति, भगवान शिव के प्रति और हिंदुत्व के प्रति गहन श्रद्धा उमड़ आयी! इतने सारे सेकुलर विद्वता ठेलते बुद्धिजीवियों को ठेंगे पर रखने का मन हो आया। मैंने साइकिल किनारे खड़ी कर प्रेम पाण्डेय को स्नेह और श्रद्धा से गले लगा लिया! उनका मोबाइल नम्बर ले लिया। उनके मोबाइल पर ह्वाट्सएप्प है। मैंने उन्हे उस माध्यम से अपनी सूचना देते रहने का भी अनुरोध किया।

प्रेम पाण्डेय जी ने कांवर बांये से दांये कांधे पर कर ली थी। आप दोनो चित्रों के माध्यम से पूरी कांवर देख सकते हैं।

प्रेम जी ने बताया कि उनकी उम्र 47 साल की है। लड़की की शादी कर चुके हैं। एक लड़का है जो काम पर लग गया है। वे पारिवारिक तौर पर बेफिक्र हो गये हैं। तभी बारहों ज्योतिर्लिंग की यात्रा की सोच पाये हैं। बहुत से ज्योतिर्लिंगों की वाहनों से यात्रा पहले कर चुके हैं। अब पदयात्रा करनी है।

उनके भाई जी ने यह लाठी दे दी है। जिसको कांवर की तरह प्रयोग कर रहे हैं। वाराणसी में वे बाबा विश्वनाथ को जल चढ़ाने के बाद अच्छी कांवर खरीदेंगे आगे की यात्रा के लिये।

उनसे मिलने के बाद घर लौटा और पत्नीजी को प्रेम पाण्डेय जी के बारे में बताया। मेरी पत्नीजी ने मुझसे कहा कि मैंने और कुछ क्यों नहीं जाना उनके बारे में। कितना सामान उनके साथ है? कहां रुकेंगे? भोजन खुद बनायेंगे या खरीद कर खायेंगे? यात्रा के लिये पर्याप्त पैसे उनके पास हैं या नहीं?

मैं प्रेम जी से इतना अभिभूत था कि ये सभी सवाल कर नहीं पाया। मैं उन्हे अपने घर पर नाश्ते/भोजन के लिये आमंत्रित कर सकता था; वह भी ध्यान नहीं आया। अब तो उनसे फोन पर ही सम्पर्क हो सकेगा। वह भी जब वे मुझसे निरंतर बातचीत करने को राजी हों। … पर मुझे उनके चरित्र पर, हिंदुत्व पर और मानवता के प्रति श्रद्धा को ले कर सनसनी होती रही। केवल तुम ही जुनून नहीं रखते हो जीडी। बहुत बहुत विलक्षण लोग हैं!

प्रेम पांड़े जी की जय हो!


ट्वीट में टिप्पणी –


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

17 thoughts on “प्रेम पाण्डेय, विलक्षण काँवरिया

  1. स्वयँ @kp6652 जी की ट्विटर पर टिप्पणी –
    एक होते है धर्म के ध्वजवाहक – ये उस ध्वज के डण्डे है जो वाहक/धर्म/ध्वज सबको एक किये हुए हैं।
    ये धर्म की जड़ जैसे है पर चलायमान है जड़ नही हुए हैं।

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  2. हे ईश्वर, कितना कुछ सोच रखा है पर यह सुविधाभोगी मन ले डूबेगा सारे स्वप्नों को। प्रेम पाण्डेयजी की दृढ़ता ने आँखें खोली हैं।

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  3. राजीव ओझा @rajivojha9 जी की ट्विटर पर टिप्पणी – जितने सहज योगी पांडे जी उतने सरल लेखक आप, पांडेजी का मर्म पांडेजी ही जाने। लेकिन जब भी पांडे जी का फोन आये तो जरूर लिखियेगा।

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  4. सुधीर पाण्डेय @sudheer1964
    जी की ट्विटर पर टिप्पणी –
    I feel jealous with this shiv bhakat Pandey Kavaria, if u please share his mob no so I may help in Trayambakeshawar Maharastra and Somnath in Gujarat , Jyotitling journey.if he is using bank ATM Pl share his account no .if possible also share your mob no also sir.

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  5. ट्विटर हैण्डल “बदनाम शायर” @BadnamShayar1 जी की टिप्पणी –
    अद्भुत ! अगर कहीं अब भी ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा वाला निश्छल प्रेम बचा हुआ है तो अब वो शायद इन्ही लोगों के पास बचा हुआ है,
    हम लोगों को माया ने अपने सभी आयामों से बांध रखा है। इन पर ईश्वरीय कृपा ही है कि ये अपने सांसारिक दायित्वों से भी समुचित रूप से मुक्त हो रहे।

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  6. ट्विटर हैण्डल @33kVA की ट्वीट में टिप्पणी –
    आज धर्मकार्य या तीर्थाटन जहाँ स्टेटस सिंबल या पर्यटन के पर्याय बन गए हैं, इस दौर में भी आदरणीय प्रेम पाण्डेय जी जैसे भक्त हैं जिनके बारे में जानने मात्र से ही हजारों की आँखें खुल जाएँगी।
    प्रणाम है उनको।

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  7. इस पोस्ट पर प्रख्यात कवि दिनेश कुमार शुक्ल जी की फेसबुक पर टिप्पणी – होता ही यह कि आप सच्चे भाव को देखें और आपका सारा पर-भाव तिरोहित हो जाय और और उस सहजता-सरलता में आप भी लीन हो जांय। बाबा कह ही गये हैं – सो जानउ सतसंग प्रभाऊ लोकहुं बेद न आन उपाऊ। यही सत्संग है।जय गोविंदा।

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  8. हम बड़े चमरोधे जूते हैं इसलिए पालिश ज़्यादा लगती है। मंदिर में भी स्वीकार्य काष्ठ की खड़ाऊँ सा है इन तीर्थ यात्री का जीवन। केवल लक्ष्य की ओर ध्यान। फालतू टीम टाम को स्थान कहां?

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