सवेरे की चाय पर टुन्नू (शैलेंद्र) पण्डित

टुन्नू पण्डित – शैलेंद्र दुबे – मेरे साले साहब हैं। उन्हीं के चक्कर में पड़ कर हम गांव में अपना घरबार शिफ्टिया लिये रिटायरमेण्ट के बाद। कभी कभी सवेरे की चाय पर आ जाते हैं। वह बहुत कम होता है – ज्यादातर उनके चेला लोग सवेरे से उन्हें घेर लेते हैं। आजकल जिल्ला भाजपा के पदाधिकारी वगैरह बनवा रहे हैं। भलण्टियर की तैनाती का रोड-मैप बन रहा है। उसमें बहुत समय लगता है उनका।

शैलेंद्र दुबे कभी कभी सवेरे चाय पर आ जाते हैंं।

आज चाय पर आये सवेरे। प्रेमसागर जी का हालचाल पूछ रहे थे। वे भी मेरी पोस्टें खंगाल लेते हैं। बात प्रेमसागर जी से हट कर भाजपा के स्टार प्रचारक राहुल गांधी जी पर आ गयी। आज कोई वीडियो चल रहा है जिसमें राहुल जी कहते हैं – “बापू के आसपास चार पांच महिलायें रहती थीं, मोहन भागवत जी के पास किसी महिला को देखा है?”

गदगद थे वे राहुल जी से। बोले कि मोहन भागवत जी माथा पकड़ कर बैठ गये होंगे। खाकी पैण्ट वालों के बीच महिला कहां से लायेंगे बेचारे। … जब तक राहुल जी हैं, तब तक भाजपा अजेय है!

“अब देख लीजिये बहनों का बड़ा रोल है आदि काल से। हिरण्यकश्यपु के लिये होलिका, रावण के लिये सूपर्णखा, कंस के लिये पूतना और राहुल जी के लिये प्रियंका … ये सब उनकी सहायता के लिये आयी थीं। और उनके बण्टाधारीकरण में उनका कितना महान योगदान है। वे न होतीं तो भारतवर्ष का नक्शा ही अलग होता।” – शैलेंद्र जब फार्म में आ गये तो उस दौरान यह प्रवचन दिये। पता नहीं यह उनका ओरीजिनल था या ह्वाट्सैप विश्वविद्यालय की किसी थीसिस का अंश। पर सामान्यत: वे ओरीजिनल कण्टेण्ट ही ज्यादा देते हैं!

इसको सुन कर मैं निरीह कभी उनकी ओर और कभी अपनी पत्नीजी (उनकी बड़ी बहन) की ओर देखने लगा! :lol:

मैं निरीह कभी उनकी ओर और कभी अपनी पत्नीजी (उनकी बड़ी बहन) की ओर देखने लगा! :lol:

शैलेंद्र आउटस्टेण्डिंग व्यक्ति हैं। उनमें राजनीति कि समझ खूब है। बहुत से ऐसे कोण, जिनकी आप कल्पना नहीं कर सकते, उस आधार पर देखने का नया नजरिया देते हैं। बाकी साले साहब हैं और उम्र में मुझसे दस साल छोटे तो ‘घर की मुरगी दाल बराबर’ समझने वाला मामला है; वर्ना इस इलाके में उनकी अहमियत जबरदस्त है। उनका पोलिटिकल डिस्कोर्स जानदार होता है। बस वह भाजपा और संघ के पक्ष में घनघोर बायस्ड रहता है। उन लोगों को कष्ट हो सकता है जिनको दक्षिणपंथ के नाम से कब्ज हो जाती हो; पर मेरे जैसे के लिये उनके साथ घण्टा दो घण्टा बिताना बहुत रोचक होता है।

मेरा रोल उस समय भाजपा और जोगी सरकार की गलतियां कमियां निकालना होता है, जिससे टुन्नू पण्डित फॉर्म में बने रहें और अपना राजनैतिक डिस्कोर्स देने में कृपणता न करने लगें। यह सब मेरा डेविल्स एडवोकेट वाला रोल होता है। सामान्यत: … और जो डिस्कशन होता है उसे पॉडकास्ट कर दिया जाये तो तीन तालियों की टक्कर की चीज बने। उसे सुन कर पाणिनि पण्डित तो लजा जायें। शायद हाजमोला तलाशने लगें। अभी तो धर्म और ईश्वर की परिकल्पना करने वालों पर अपनी मधुर आवाज में गरिया कर निकल लेते हैं, तब देखें कि कौन पार पाता है – कार्ल मास्क या बाबा विश्वनाथ! काशीनाथ सिंह भी देशज ‘पारिवारिक सम्बंधों वाले सम्बोधनों’ के नवीन प्रयोग के लिये कागज कलम तलाशने लगें – नोट्स लेने के लिये। :lol:

वैसे असल तीन ताल तो वाम और दक्षिण की जुगलबंदी से ही बन सकता है। शालीन और जोरदार जुगलबंदी से।

हफ्ते में एक रोज तीन ताल आता है। हफ्ते में कम से कम एक रोज टुन्नू पण्डित आने चाहियें सवेरे चाय पर! जय हो!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “सवेरे की चाय पर टुन्नू (शैलेंद्र) पण्डित

  1. चाचा टुन्नू पंडित जी के साथ बहुत बार चाय पीए है और राजनीतिक एवं सामाजिक चर्चा भी हुआ है चाचा जी से मिलने के बाद बहुत अच्छा लगता है एक बार आप से मिलने की इच्छा जागृत हो रहा है

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  2. टुन्नूजी की चाय तो हमने भी पी है, सभवतः कुछ गुण हममें भी आ जायें। आप वहाँ अल्पमत में हैं, अपने व्हिप की बात ही मानियेगा।

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    1. हाहाहा! ह्विप जी को पटा रखा है मैंने। आजकल सौहार्दपूर्ण चल रहा है! :-)

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  3. हमको तो अब लग रहा है आप की घर की एक यात्रा कर ही लेनी चाहिए, आपसे मिलने से ज्यादा एक और सॉलिड बजे मुझे मिल गई है, वह है टुन्नू पंडित से मिलना, मुझे लग रहा है आपसे ज्यादा हमारे विचार उनसे मिलेंगे 🙏🙏

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