टुन्नू पण्डित के साथ सवेरे की चाय

शैलेंद्र दुबे – टुन्नू पण्डित – मेरे पड़ोसी हैं। मेरे साले साहब हैं और भाजपा के नेता हैं। हम दोनों में कॉमनालिटी कम ही है। मेरी मानसिक ड्रिल नौकरशाह की है। टुन्नू पण्डित की नेता वाली। मैं एकाकी हूं। मेरे जानपहचान के लोग इक्कादुक्का हैं। टुन्नू पण्डित के यहां सवेरे से लोग आने जाने लगते हैं। मैं साइकिल से चलना पसंद करता हूं; टुन्नू पण्डित साइकिल से चल ही नहीं सकते। कोई भाजपाई साइकिल से चलेगा ही नहीं। वर्ना समाजवादी पार्टी का विज्ञापन हो जायेगा।

वैसे, जैसे वल्लभभाई पटेल और सुभाषचंद्र बोस के आइकॉन मोदी जी ने भाजपा में झटक लिये हैं; उसी तरह एक दिन अगर साइकिल चला कर उसे लोगों के स्वास्थ्य और गरीब के सम्मान के साथ जोड़ दें तो समाजवादियों की साइकिल पंक्चर हो जाये। एक स्टार्ट-अप कम्पनी कमल ब्राण्ड साइकिल भी मार्केट में उतार दे तो मजा आ जाये! 😆

वैसे, जैसे वल्लभभाई पटेल और सुभाषचंद्र बोस के आइकॉन मोदी जी ने भाजपा में झटक लिये हैं; उसी तरह एक दिन अगर साइकिल चला कर उसे लोगों के स्वास्थ्य और गरीब के सम्मान के साथ जोड़ दें तो समाजवादियों की साइकिल पंक्चर हो जाये।

पर टुन्नू पण्डित की गांवदेहात के बारे में इनसाइट और उसकी आगे विकास के बारे में विचार – दोनो सशक्त हैं। उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी टॉपक्लास है। घर के आसपास का विधान सभा का इलाका अनुसूचित जाति के लिये रिजर्व है, वर्ना वे यहां के लिये दमदार उम्मीदवार होते भाजपा के लिये। वैसे भी पड़ोस की भदोही सीट के लिये उनकी दावेदारी है। आगे देखें क्या होता है। अभी तो उनके लिये इंतजार का समय है। पार्टी जो तय करे।

इंतजार का समय कुछ वैसा होता है; जैसे मुझे हाईस्कूल की परीक्षा परिणाम की प्रतीक्षा में हुआ था। मैं तो उसमें मैरिट में स्थान पाया था, पर दुस्वप्न यह भी आते थे कि फेल हो गया हूं! टुन्नू पण्डित शायद वैसी अवस्था में झूल रहे हों! शायद अनेकानेक नेता लोग वैसा ही महसूस कर रहे हों आजकल। चुनाव में स्टेक्स हाई-स्कूल इण्टरमीडियेट की परीक्षा से कहीं ज्यादा होते हैं। मेरे समधी और मेरे साले साहब – दोनो राजनीति में हैं; इसलिये मैं इस तनाव को बड़े करीब से देख चुका हूं।

टुन्नू पण्डित। पूरे सामान्य व्यवहार और हास्य-विनोद के बीच इंतजार का तनाव भी चेहरे पर नजर आता है!

आज सवेरे मौसम खराब था। बादल हैं और धुंध भी। सर्दी, बादल, धुंध के कारण कोई चेला भी बैठकी के लिये नहीं आया था। मैंने उन्हें कहा कि साथ बैठ कर चाय पिया जाये। सवेरे की चाय एक नेता और एक रिटायर्ड के साथ कम ही होती है। आज मेरा सौभाग्य था कि टुन्नू पण्डित चाय पर हमारे यहां थे।

तरह तरह की बात हुई। उन्होने बताया कि गंगाजी के पांच किलोमीटर दोनो ओर का कॉरीडोर ऑर्गेनिक खेती के लिये डिल्केयर होने की सम्भावना है। वह अगर होता है तो मृदा की सेहत और खेती के पैटर्न के लिये बहुत कुछ सरकारी इनपुट्स मिलेंगे। शायद धान-गेंहू की खेती की मोनोकल्चर खत्म हो कर और कुछ उगाने पर और गाय-गोरू पालने पर जोर हो। मेरा पूरा गांव उस ऑर्गेनिक कॉरीडोर में आ जायेगा। बहुत बढ़िया बात होगी वह।

हम जिस भाग में रहते हैं, वह पासी-बिंद और जाटव लोगों का है। ये लोग खेती किसानी में सवर्णों की सहायता करते रहे हैं। टुन्नू पण्डित का कहना है कि बावजूद इसके कि जीवन स्तर बेहतर हुआ है इन लोगोंं का; इनकी मेहनत करने की क्षमता कम हुई है। पहले खाने में मोटा अनाज बहुतायत से प्रयोग होता था। बाजरा, ज्वार, अरहर, उड़द और सरसों की खेती में कोई यूरिया-पोटास नहीं पड़ता था। उस अनाज में स्वाद हो न हो; ताकत बहुत थी। अब गेंहू चावल की खेती होती है और यूरिया के बल पर होती है। ऑर्गेनिक खेती होने पर लोगों का स्वास्थ्य सुधरेगा और मेहनत करने की क्षमता भी बेहतर होगी।


और यहां एक काबीना मंत्री संसद में साइकिल पर आते देखे गये! श्री मनसुख माण्डविया!

टुन्नू पण्डित की इस बात में मुझे वजन नजर आया। मेरे पास जो थोड़ी जमीन है, उसमें उपयोग भर की ऑर्गेनिक खेती करा सकते हैं हम। अधियरा को – अगर ऑर्गेनिक फसल की मात्रा कम होती है तो – उसे वर्तमान फसल के मूल्य के अनुसार कम्पनसेट कर सकते हैं। टुन्नू पण्डित के साथ चाय पीते हुये यह ट्यूबलाइट जली!

चाय हमने बहुत खुशनुमा माहौल में पी। वैसे भी, टुन्नू पण्डित की बहन जी उनके आने पर बहुत ही खुश हो जाया करती हैं। टुन्नू पण्डित का हास्य और उनकी गांवदेहात के बारे में जानकारी जो उन्होने सामने रखी, मेरा दिन बना गयी!

टुन्नू पण्डित की जय हो!


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

4 thoughts on “टुन्नू पण्डित के साथ सवेरे की चाय

  1. वाह, सुबह की चाय की चुस्की ने शायद मिलने वाले टिकट की चिन्ताओं से थोड़ा राहत पहुँचाया होगा। औराई में एक सशक्त और कर्मठ नेता अवश्य होना चाहिये।मेरी शुभकामनाएँ 🙏

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  2. अकेला सबसे आला है, न जोरू है न साला है /
    अकेले की दिवाली है, दुकेले का दिवाला है //

    पांडे जी अब रिटायर हो गए है तो अब सामान्य जन की मानसिकता के स्तर पर बनने का प्रयास करे/अफ़सरी का भूत बहुत खराब होता है/मैंने तो उतार दिया है/

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    1. हाहाहा 😁 मैंने अपने पर चढ़ाया नहीं था. कभी कभी खुद कूद कर चढ़ जाता था. अब नहीं. 😊

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