विक्षिप्त पप्पू

वह मुझे दार्शनिक सा लगता है जिसका मस्तिष्क हिल गया हो। शक्ल से वह कार्ल मार्क्स सा लगता है। कार्ल मार्क्स की दाढ़ी कुछ ज्यादा बढ़ी हो सकती है और मुंह में कुछ ज्यादा चमक। मार्क्स ने जो दर्शन दिया वह दुनियाँ को आज भी हिला रहा है, यद्यपि वह कहीं सफल नहीं दीखता – अगर लोगों की समग्र उन्नति का पैमाना सामने हो। पर यह व्यक्ति खुद ही हिला हुआ है।

इसकी बहन ने कुंये में कूद कर खुदकशी कर ली थी। उसके बाद यह मानसिक रूप से हिल गया। विक्षिप्त हो गया। अन्यथा, अपने बचपन की बात बताते हैं कि यह उस समय की सबसे अच्छी साइकिल पर चलता था और अंग्रेजी में बात करता था।

पूरे दिन वह महराजगंज कस्बे के बाजार में घूमता रहता है। चाय वाले उसे चाय दे देते हैं। कोई कुछ अन्य सामग्री – समोसा आदि भी दे देते हैं। वह चलता चलता कुछ बुदबुदाता रहता है। एक दो बार थक कर उसे किसी खाली पड़े ठेले पर लेट सुस्ताते भी देखा है। पर ज्यादातर वह चलता ही रहता है।

आज अरुण कुमार सेठ जी की दुकान पर सवेरे कुछ सामान ले रहा था तो वह सामने से गुजरा। मैंने उसके बारे में अरुण जी से पूछा तो उन्होने बताया कि उसका नाम पप्पू है। सम्पन्न घर का है। बाजार में, हाईवे पर उसका मकान भी है। वहीं घर के सामने गली में रात गुजारता है। पर सवेरे पांच बजे से ही उठ कर घूमना शुरू कर देता है।

उसके पिता जी सिंगरौली में अधिकारी थे। एक भाई का कटका पड़ाव पर मकान, परिवार है। ठीक ठाक लोग हैं। सम्पन्न और समाज में हैसियत वाले लोग। यही विक्षिप्त हो गया है। इसकी बहन ने कुंये में कूद कर खुदकशी कर ली थी। उसके बाद यह मानसिक रूप से हिल गया। विक्षिप्त हो गया। अन्यथा, अपने बचपन की बात बताते हैं कि यह उस समय की सबसे अच्छी साइकिल पर चलता था और अंग्रेजी में बात करता था। “पप्पू के बारे में मुझे बहुत अच्छे से याद है बचपन की बात। उस समय (और आज भी) अंग्रेजी में बात करने वाले और कहां थे?!” – अरुण सेठ ने बताया।

पप्पू से कोई बात करता हो, ऐसा नहीं देखा। वह आत्मन्येवात्मनातुष्ट: ही लगता है। हमेशा अपने से ही बात करता हुआ। दार्शनिक, सिद्ध और विक्षिप्त में, आउटवर्डली, बहुत अंतर नहीं होता। पता नहीं कभी उससे बात की जाये तो कोई गहन दर्शन की बात पता चले।

मुझे कुल्ला स्वामी की याद आती है। पॉण्डिच्चेरी में श्रीअरविंद के समय वह विक्षिप्त व्यक्ति (सिद्ध पुरुष?) था जो बहुधा श्री अरविंद के यहां आ जाया करता था। एक दिन वे अपने साथियों के साथ चर्चा में व्यस्त थे तो कुल्ला स्वामी आया और टेबल पर रखे कप को ध्यान से देखा। उसको उलट कर और फिर सीधा कर वैसे ही रख कर चला गया। श्री अरविंद ने कहा कि कुल्ला स्वामी बहुत गूढ़ बात बता कर गया है। कप की तरह अपने को खाली किये बिना उसमें सद्गुण भर ही नहीं सकते। You have to empty the cup before filling it with anything of substance.

सो, पप्पू भी कार्ल मार्क्स है या कुल्ला स्वामी। कभी बात हो उससे तो पता चले। उसके जीर्ण वस्त्रों और अस्वच्छ शरीर, और अपने में ही मगन होने के कारण कभी मैंने उससे बात नहीं की। कोई भी नहीं करता। शायद कभी मुझे रुक कर उससे बात करनी चाहिये।

पप्पू

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

11 thoughts on “विक्षिप्त पप्पू

    1. साइकिल सैर के समय मैं सब से मिलने और जानने के लिए जिज्ञासु रहता हूं. 😊

      Like

  1. पहले पता कर लें कि विक्षिप्‍त होने के साथ उग्र तो नहीं हैं, अगर कुछ उग्रता की जानकारी मिलती है तो किसी युवा को साथ लेकर ही मिलें। कई बार लंबे इलाज से भी इन लोगों का कुछ लाभ नहीं होता और कोई छोटी मोटी जड़ी या होम्‍योपैथी दवा लागू हो जाती है और ऐसे बंदे फिर ठीक हो जाते हैं।

    भले ही उसे ठीक करने के लिए न सही, लेकिन व्‍यक्तित्‍व को जानने के लिए बात करनी चाहिए। क्‍या पता सिद्ध ही हो…

    Liked by 1 person

  2. ऐसे लोगों को देखकर बड़ी तकलीफ़ होती है। क़रीब २५/३० साल पहले मेघीपुर औराई के भी ऐसे ही एक पंडित जी थे। घूमते रहते और रामचरितमानस की चौपाई को गालियों के रूप बदल कर गाते हुए सड़क पर घूमते रहते थे।

    Liked by 1 person

    1. तकलीफ तब होती है जब लोग उन्हें सहानुभूति देने की बजाय मजाक का पात्र मानते हैं या पागल-पागल कह चिढ़ाते हैं। :-(

      Like

  3. कार्ल मार्क्स को जर्मनी मे ही जर्मन लोगों ने दफन कर दिया है/कोई भी जर्मन कार्ल मार्क्स को पसंद नहीं करता और न उनकी विचारधारा का सपोर्ट या समर्थन/ मै जर्मनी मे ढाई साल रहा और कार्ल मार्क्स के शहर मे ही पूरे समय रहा,अस्थायी तौर पर तो कई जर्मन शहरों मे रहा/लेकिन सभी ने कार्ल मार्क्स को नकार दिया था/ मार्क्स की थ्योरी फेल हो गयी है क्योंकि यह आधुनिक संदर्भ मे किसी भी देश मे फिट नहीं बैठती /सारी दुनिया से यह नकार दी गयी है/केवल भारत मे ही यह मिल जाएगी इसका कारण यह है की यह बहुलता वादी और विविधित वादी इस बात को सँजोए रहते है/कार्ल मार्क्स की किताब Das CAPITAL ,डस कापिटाल, The Capital, हिन्दी मे “पूंजी” को ठीक से समझने के लिए जर्मन भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है तभी मार्क्स की भावना और लेखन को समझ सकेंगे/जर्मन और अंग्रेजी भाषा मे ग्रामर और ट्रांसलेशन पढ़ने मे बहुत अंतर लगता है

    Liked by 1 person

    1. कार्ल मार्क्स की सनसनी अब जाती रही। साम्यवादी देश भी अब पूंजी का महत्व समझते हैं। और हमारे यहां के साम्यवादी बुद्धिजीवी भी अपने बच्चे अमेरिका भेजने की जुगत में रहते हैं।

      Like

Leave a reply to राजकुमार उपाध्याय Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started