चौदह साल का वनवास। अंत वाले का तो कह नहीं सकते, पर तेरह रामनवमियाँ तो ठीकठाक बिताई होंगी सीताजी ने राम-लक्ष्मण जी के साथ। यूं तो यूपोरियन आदमी जन्मदिन टाइप आधुनिक चोंचले में ज्यादा यकीन नहीं करता, पर सीताजी राम जी के जन्मदिन पर कुछ तो विशेष बनाती ही रही होंगी?

चौदह साल में इग्यारह साल, इग्यारह महीने और इग्यारह दिन तो राम जी चित्रकूट में रहे। उसके बाद पंचवटी – नासिक को निकल गये थे। उसके बाद खर-दूषण-त्रिशिरा-सूपर्नखा-रावण आदि से जूझना हुआ होगा।
मोटे हिसाब से 11-12 जन्मदिन चित्रकूट में पड़े होंगे।
आज अष्टमी है। आठ दिन व्रत-फलाहार पर निकाले हैं मेरी पत्नीजी और मैंने। हम में चर्चा हुई है कि कल, रामनवमी के दिन क्या भोजन बनेगा। पत्नीजी का विचार था कि दुकान से मिठाई ली जाये। मेरा मत था कि जैसे सीताजी जंगल में बनाती रही होंगी कुछ वैसा बनना चाहिये। उनके समय में चित्रकूट के वन में कोई दुकान थोड़े होगी बर्फी खरीदने के लिये!
जंगल में क्या होता रहा होगा? मैं गड़ौली धाम जाते, अपनी सवेरे की साइकिल सैर के दौरान यह सोच रहा था। सोचते हुये अगियाबीर की महुआरी से गुजरा। टपकते महुआ की गंध और जमीन पर बिछे महुआ के फूल दिखे। चैत्र मास, रामनवमी और टपकता महुआ – यह तो ऋतुओं का आदिकालीन कॉम्बिनेशन रहा होगा। और चित्रकूट में राम जी की कुटी के आसपास महुआ के वृक्ष तो रहे ही होंगे (यद्यपि तुलसी बाबा ने महुआ जैसे देशज-लौकिक वृक्ष को काव्य में जगह नहीं दी)। महुआ का दोना पत्तल वनवासी बना कर देते ही रहे होंगे सीता माता को। वे ही उनके थाली कटोरा होते होंगे।

कृपया गड़ौली धाम के बारे में “मानसिक हलचल” ब्लॉग पर पोस्टों की सूची के लिये “गड़ौली धाम” पेज पर जायें। |
मेरी ट्यूबलाइट जली। रामनवमी के समय सीता जी को सबसे सुलभ तो टपकता महुआ ही होता होगा। महुआ के रस से बना ठोकवा। वही मीठा व्यंजन हुआ करता होगा राम जी के बर्थडे पर! … साइकिल चलाते अपनी कल्पना से मुझे रोमांच हुआ। अगियाबीर की गड़रिया बस्ती की बड़ी महुआरी में महुआ बीनती महिला के पास मैं रुका। बात शुरू उसने ही की – महुआ अब खतम हो रहा है।

मैंने उससे पूछा – इस महुआ का, इसी हाल में, बिना सुखाये क्या व्यंजन बन सकता है?
उसने मुझे बताया कि इन फूलोंंको गार (निचोड़) कर उनका रस उबाल लिया जाता है। उबलते रस में मुच्छी (आटे की गोल गोल पूरी हुई लोई) डाल कर देर तक गरम की जाती है। उससे हलवा बनता है।
गड़ौली धाम पंहुच कर वहां की महुआरी में महुआ बीनते बच्चों से मैंने पूछा – महुआ से क्या बन सकता है? उनके साथ एक बड़ा आदमी भी वहां था। शायद बच्चों का अभिभावक। उसने बताया कि फूल को खोल कर उसमें से पुंकेसर अलग कर दिये जाते हैं और रसीले फूल को बिना पानी डाले पका कर फूलोंं का हलवा बनता है। फूलों का रस पूरी तरह सुखाने पर बनता है यह हलवा।


गड़ौली धाम तक की साइकिल सैर में मुझे महुआ का हलुआ बनाने की दो रेसिपी तो मिल गयीं। सीता जी को ये तो मालुम होंगी ही। इसके अलावा, सीता माई तो पाकशास्त्र में सिद्धहस्त रही ही होंगी। उन्हें तो और भी बहुत आता होगा। आज के जमाने में वे होतीं तो उनका पाकशास्त्र का एक शानदार यूट्यूब चैनल जरूर होता। राम जी के वनवास के खर्च की सारी फण्डिंग उसी से हो जाती! 😀
घर पर मैंने पत्नीजी को यह रेसिपीज बताई तो उन्होने कोई दिलचस्पी न दिखाई। “देखो, अगर तुम्हें मिठाई नहीं खरीदनी तो घर पर आटे और गुड़ का हलवा बन जायेगा। पर महुआ जैसी बेकार की चीज का नाम न लो। मेरी अम्माजी (सास) को महुआ बिल्कुल पसंद नहीं था। वे ललही छठ का व्रत इसलिये नहीं करती थीं कि उसमें महुआ चढ़ाया जाता है।” – पत्नीजी ने मेरा आज का सारा अन्वेषण खारिज कर दिया। उनकी सोच में महुआ विपन्नता की निशानी है। उनके घर में कभी इस्तेमाल नहीं हुआ। “तुम जबरी गंवई, एथनिक बनने के चक्कर में महुआ महुआ करते रहते हो। यह कोई खाने की चीज नहीं है।” – उन्होने मेरी सोच पर फुलस्टॉप लगा दिया।
महुआ का हलवा नहीं बनेगा रामनवमी पर। बस। पीरियड।
खैर, मेरी पत्नीजी एक तरफ। चैत्र का महीना, रामनवमी, वातावरण में महुआ की गंध, टपकता महुआ और बीनती पूरी गांवदेहात की आबादी। मुझे पूरा यकीन है सीताजी, चित्रकूट के वनवास में 12 रामनवमियों पर महुआ का हलुआ जरूर बनाया होगा। और राम जी को बहुत पसंद रहा होगा वह मुच्छी वाला महुआ का हलवा। यह अलग बात है कि इसका जिक्र बाबा तुलसीदास ने रामचरित मानस में नहीं किया। उस मामले में अधूरा है मानस।

आजकल नवरात्रि में हम पति-पत्नी फलाहार पर हैं और नित्य बारी बारी से अपना अंश देते हुये रामचरितमानस का 9 दिवसीय पाठ कर रहे हैं। ये नौ दिन राममय हैं। पर जैसा ऊपर माता सीता के यूट्यूब चैनल की कल्पना है – यह पठन भक्त-भगवान के द्वैत भाव युक्त भले है पर उसमें सख्यभाव भी खूब है। तुलसी का काव्य अद्भुत है; पर जब तब हम उनके साथ भी चुटकी लेते रहते हैं। … उनकी पत्नी ने उनको जो लथेरा, उसके कारण बाबा (माता सीता के अलावा) किसी भी नारी को हीन बताने का मौका नहीं गंवाते। बाबा आज होते तो हमें अपनी लाठी से मार मार कर बाहर निकाल देते या बहुत प्रिय पात्र मान लेते – कहा नहीं जा सकता। पर बाबा के सीधे साट प्रशंसक के खांचे में हम न बैठ पाते।
माता सीता के यूट्यूब चैनल की कल्पना को ले कर सारी भगत मण्डली मुझे ट्रॉल करती जम कर। शायद करे भी। पर आज के जमाने में जो सूपर्नखीय सेलिब्रिटी लोग यूट्यूब-इंस्टाग्राम-फेसबुक के डोपेमाइन न्यूरोट्रांसमिटर उद्दीपन के बिजनेस में लगे हैं; उनके विकल्प की कल्पना होनी ही चाहिये। कचरा अच्छाई से कहीं ज्यादा है इन माध्यमों पर। कलियुग में ईश्वर का अवतार अगर होगा तो इन माध्यमों को आसुरिक उद्दीपन से मुक्त करने के लिये होगा। और यह उद्दीपन इतना विकराल होता जा रहा है कि भगवान को, मातृशक्ति के साथ “अंसन सहित लीन अवतारा” जैसा ही करना होगा।
नया युग है, नये यंत्र हैं, नये असुर हैं और अवतार भी नये रूप में ही होंगे। … नये बाबा तुलसीदास भी होंगे और नये रामचरित मानस भी।… हम जैसे नये काकभुशुण्डि भी होंगे। अपनी कर्कश कांव कांव में रामकथा कहते हुये।
जै जै सियाराम!
नमस्कार भाई सहिब, बहुत बढ़िया कल्पना है !
LikeLiked by 1 person