गा कर धन्यवाद दे गयी मैना

सवेरे चाय की ट्रे ले कर मैं दरवाजा खोल पोर्टिको में निकला। ट्रे में चाय के दो मग, ग्रीन चाय की केतली, चम्मच, चाय की छन्नी, चिड़ियों के लिये नमकीन और रोटी के टुकड़े आदि थे। मेरा मोबाइल भी रखा था।

सवेरे पोर्टिको में चाय पीते हुये चिड़ियों को नमकीन-रोटी का चारा डाल कर उन्हें निहारना एक अनुष्ठान बन गया है। चिड़ियां सवेरे छ बजे हमारा इंतजार करती रहती हैं, आसपास।

ट्रे ले कर निकलते हुये शायद मोबाइल का कोई बटन दब गया था और गूगल असिस्टेण्ट ऑन हो गया था। चिड़ियों की भारी संख्या देख कर पीछे आती पत्नीजी को मैंने कहा – “आ गयी, आगयी हैं सब!”

पत्नीजी ने सुना या नहीं, पर गूगल देवी ने सुन लिया। मोबाइल से उनकी आवाज आई – “मैं तो आपके पास ही हूं।”

गूगल देवी ने सुन लिया। मोबाइल से उनकी आवाज आई – “मैं तो आपके पास ही हूं।”

बड़ा ही अटपटा और रोचक था एक अपरिचित महिला की आवाज में सुनना – मैं तो आपके पास ही हूं!

थोड़ी सी नमकीन फर्श पर बिखेरते ही चरखियों, मैनाओं, बुलबुलोंं,कौव्वों और गिलहरियों ने धावा बोल दिया। कुछ सेकेण्ड ही लगे होंगे वह नमकीन साफ करने में। फिर सारा नमकीन और रोटी फर्श पर डाल दी गयी। पहले तो सब ने गबर गबर खाया। एक राउण्ड खाने के बाद आपस में नोक झोंक, लड़ाई, बातचीत करने लगे वे सभी जीव। उसके बाद धीरे धीरे आने, खाने और उड़ कर इधर उधर का चक्कर लगाने की क्रिया चली।

थोड़ी सी नमकीन फर्श पर बिखेरते ही चरखियों, मैनाओं, बुलबुलोंं,कौव्वों और गिलहरियों ने धावा बोल दिया। कुछ सेकेण्ड ही लगे होंगे वह नमकीन साफ करने में।

चाय पीने का अनुष्ठान करीब बीस मिनट का होता है। उतने में पूरा फर्श वैसा ही साफ हो जाता है, जैसे वहां कुछ बिखेरा ही न गया हो। सारे जीव जा चुके थे। मेरी पत्नीजी भी पूजा के फूल चुनने के लिये थाली ले कर उठ गयी थीं। आजकल पारिजात खूब झर रहा है। चमेली भी बेशुमार है। अलमाण्डा और गुड़हल तो है ही। लाल गुड़हल समाप्तप्राय है, पर सफेद और पीला गुड़हल अभी मिल रहा है।

पत्नीजी को ज्यादा ही समय देना होता है फूल चुनने में।

मैं भी ट्रे सम्भाल कर वापस कमरे में जाने वाला था कि अचानक एक मैना आयी। अकेली। उसने मधुर गाना सुनाया, अपनी चोंच उठा कर ऊपर ताकते हुये। कुछ इस प्रकार से कि नमकीन और रोटी के लिये धन्यवाद ज्ञापन कर रही हो। अकेली मैना कुछ समय गा कर चली गयी। लगा कि इतने सारे पक्षी और गिलहरियां थे; जो खा कर सटक लिये थे। केवल एक अकेली मैना में शिष्टाचार था धन्यवाद देने का। इस जन्म में वह मैना है। जरूर पूर्व जन्म में उत्कृष्ट मानवी रही होगी। शायद कोई ऋषि!

अचानक एक मैना आयी। अकेली। उसने मधुर गाना सुनाया, अपनी चोंच उठा कर ऊपर ताकते हुये। कुछ इस प्रकार से कि नमकीन और रोटी के लिये धन्यवाद ज्ञापन कर रही हो।

मैं सोच रहा था – आज का चाय-अनुष्ठान रोचक भी था और जीवन दर्शन से ओतप्रोत भी। इस तरह के अनुभव इस ग्रामीण अरण्यक जीवन को तृप्त करते हैं। जय हो!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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