राजमणि राय और उम्र का एकाकीपन

वे कहते हैं कि नब्बे के आसपास होंगे। इलाके में बूढ़ों की उम्र ज्यादा बताने का फैशन है। जितना कहा जाता है उसमें 8-10 साल तक मजे से घटाया जा सकता है और तब भी आपका आकलन गलत होने की सम्भावना नहीं होती।

मैं पास के गांव भगवानपुर तक साइकिल चला रहा था। कई चक्कर लगा चुका था। तभी वे लाठी टेकते भगवान पुर की ओर जाते दिखे। मैंने पीछे से उनका चित्र लिया नोकिया के 3111 मोबाइल से; और उनसे आगे निकल गया। मेरे वापस लौटने तक वे कुछ ही कदम चले होंगे। सामने से उनका चित्र लेते समय उन्होने मुझे रोक लिया।

वे लाठी टेकते भगवान पुर की ओर जाते दिखे। मैंने पीछे से उनका चित्र लिया नोकिया के 3111 मोबाइल से; और उनसे आगे निकल गया।

वे सज्जन मुझे जानते थे। मैंने भी पहले देख रखा था। नाम नहीं जानता था। यह भी नहीं जानता था कि वे भगवानपुर के मिसिर हैं या राय। पर अपरिचय नहीं जताया और उनका नाम भी नहीं पूछा। वह तो बातचीत में निकला कि वे राजमणि राय हैं। उम्र उन्होने बताई – नब्बे होये। (नब्बे के आसपास होगी)।

नब्बे साल का व्यक्ति एक किलोमीटर चल कर सब्जी ले कर लौट रहा हो – यह तो बड़ी बात थी! पर जब उन्होने बात बात में बताया कि मेरे श्वसुर जी उनसे उम्र में कुछ बड़े रहे होंगे तो लग गया कि उनकी बताई उम्र में दस साल आसानी से घटाया जा सकता है। मेरे श्वसुर जी की पैदाइश 1938 की होगी। अत: वे अस्सी साल के आसपास होंगे। पर अस्सी भी कोई कम उम्र नहीं होती!

राजमणि राय।

मैंने उनसे पूछा कि उनके पास कोई मोबाइल है, जिससे बाद में बात कर उनसे मिलने उनके घर जाया जा सके। अस्सी साल के आदमी से उनके संस्मरण सुनना भी अच्छी खासी ‘मानसिक हलचल’ खुदबुदाता सकता है। बुढापे के बावजूद उनकी आवाज स्पष्ट थी और लगता था कि उन्हें डिमेंशिया जैसा कुछ भी नहीं है। सिवाय एक पतली सी लाठी ले कर चलने के, उनमें कोई शारीरिक अक्षमता भी नहीं लगती थी। थोड़ा ऊंचा सुनते लगते थे, पर इतना भी नहीं कि बातचीत न की जा सके।

फिर भी उन्होने कहा – “अब शरीर में जोर नहीं है। कमजोर हो गया है। फिर भी इस उम्र में मुझे ही अपना खाना बनाना होता है। घर में कोई नहीं है। बड़ा घर है। सब सुविधा है। पानी का नल भी लगा है। पर हूं मैं अकेला।”

राजमणि कि पत्नी का देहावसान हो चुका है। उनके बच्चे काम के चक्कर में महानगरों में हैं और उनके परिवार भी उनके साथ हैं। वे अकेले यहां बड़े मकान में जमीन जायजाद अगोर रहे हैं। अपना सारा काम – भोजन बनाना भी – खुद करते हैं।

मोबाइल है उनके पास। जेब में रखा था पर उसका पैसा खत्म हो गया था। उन्होने कहा कि कभी महराजगंज जायेंगे और रीचार्ज करायेंगे, तब चालू होगा।

मैंने पूछा – मोबाइल का नम्बर मालुम है?

उनकी स्मृति ठीक ठाक थी। अन्यथा उनकी उम्र के लोग अपना मोबाइल नम्बर याद नहीं रखते। उन्होने मोबाइल नम्बर बताया और मैंने साइकिल पर बैठे बैठे उनका रीचार्ज कर दिया – सौ रुपये खर्च हुये मेरे। उनके मोबाइल पर चार्ज होने के बाद मैंने घण्टी दे कर सुनिश्चित भी कर लिया कि सही मोबाइल का रीचार्ज हुआ है।

उन्हें बिना कोई उद्यम किये, खड़े-खड़े तुरंत मोबाइल चालू होने पर आश्चर्य हुआ। इस काम के लिये वे लाठी टेकते कस्बे के बाजार जाते! उन्होने कहा कि अभी उनके पास पैसे नहीं हैं। मैंने यह भी नहीं कहा कि आप बाद में दे दीजियेगा। यह मान कर चल रहा हूं कि सौ रुपये उनसे मुलाकात पर खर्च कर दिये।

राजमणि कि पत्नी का देहावसान हो चुका है। उनके बच्चे काम के चक्कर में महानगरों में हैं और अपने बीवी-बच्चे अपने साथ ले गये हैं। वे अकेले यहां बड़े मकान में जमीन जायजाद अगोर रहे हैं। अपना सारा काम – भोजन बनाना भी – खुद करते हैं।

उनकी बातों से लगा कि वे मेरी सिम्पैथी चाहते हैं पर अकेले जीने में बहुत बेचारगी का भाव भी जताना नहीं चाहते। राजमणि ने अकेले जिंदगी गुजारने के कुछ सार्थक सूत्र जरूर खोज-बुन लिये होंगे। इन सज्जन से भविष्य में मिलना कुछ न कुछ सीखने को देगा। वे बोलते बहुत हैं। कुछ ज्यादा सुनना पड़ेगा; पर जानकारी लेने के लिये उतना झेला जा सकता है।

वे रास्ते में खड़े खड़े और भी बातें करने के मूड में थे। हाथ में सब्जी की दो प्लास्टिक की थैलियाँ लिये थे। शाम ढलने को थी। पर उन्हें घर पंहुचने, भोजन बनाने की जल्दी नहीं थी। मेरे दिवंगत श्वसुर जी की याद में उनकी ब्लॉक प्रमुखी की कथायें सुना रहे थे। लगता था कि थोड़ी नमक-मिर्च लगा कर रोचक बनाते सुना रहे हैं। उनके समय की बातें मुझे सुननी जरूर हैं। पर गांव की सड़क रोक कर उसके बीचोंबीच खड़े हो कर नहीं। मैंने उनसे विदा ली यह कह कर कि उनसे जल्दी ही मिलूंगा। उन्होने भी कहा कि वे मेरे घर आयेंगे।

अस्सी साल का अकेला आदमी, अपना भोजन खुद बनाता हुआ। ब्लॉग के लिये बहुत सही पात्र हैं राजमणि राय। उनसे मिलूंगा जरूर। इस गांव के पिछले तीन दशक को ब्लॉग पर उतारना है। करीब 100 पोस्टें उसपर लिखनी हैं। करीब एक लाख शब्द। इस संकल्प के लिये राजमणि बहुत उपयोगी होंगे। सौ रुपये का उनका मोबाइल रीचार्ज उन सौ पोस्टों के लिये मेरा एक छोटा इनवेस्टमेण्ट है! :lol:


ज्ञानदत्त पाण्डेय – मैं भदोही, उत्तरप्रदेश के एक गांव विक्रमपुर में अपनी पत्नी रीता के साथ रहता हूं। आधे बीघे के घर-परिसर में बगीचा हमारे माली रामसेवक और मेरी पत्नीजी ने लगाया है और मैं केवल चित्र भर खींचता हूं। मुझे इस ब्लॉग के अलावा निम्न पतों पर पाया जा सकता है।
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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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