सवेरे साइकिल सैर के दौरान मुझे आठ दस बाल्टा वाले दिखते थे। घर घर जा कर दूध खरीदते, बेंचते। बचा दूध ले कर अपनी मोटर साइकिल में बाल्टे लटका कर बनारस दे आते थे। उनकी संख्या कम होती गयी। अब तो कोई दिखता ही नहीं। यह बड़ा परिवर्तन है।
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
सवेरे साइकिल सैर के दौरान मुझे आठ दस बाल्टा वाले दिखते थे। घर घर जा कर दूध खरीदते, बेंचते। बचा दूध ले कर अपनी मोटर साइकिल में बाल्टे लटका कर बनारस दे आते थे। उनकी संख्या कम होती गयी। अब तो कोई दिखता ही नहीं। यह बड़ा परिवर्तन है।