आज की सुबह

दूध लाना होता है। अखबार लाना होता है। यह काम न भी करूं तो चल सकता है। वाहन चालक अशोक नौ बजे आता है। उससे दूध मंगाया जा सकता है। अखबार तो दर्जनो मिलते हैं मेग्जटर पर। पर नहीं, सवेरे पौने पांच बजे उठ कर घण्टे भर में साइकिल निकाल दूध की डेयरी जाना है। साइकिल चलाने का व्यायाम तो करना ही है।

कल परिवार चला गया है प्रयागराज। तो दूध कम लेना है। दो ही आदमी हैं अब हम। एक लीटर बहुत होगा। आगे बढ़ कर अखबार खरीदना है। वह एप्प से पेमेण्ट नहीं लेता। सो गिन कर सात रुपये एक पॉकेट में रखता हूं। लौकी का जूस पीना सवेरे शुरू किया था, अब उसे दिन में दो बार पीने की सोची है। इसलिये दो लौकी भी खरीदनी है।

दूध का डोलू, थैला और मोबाइल सहेज लिये हैं। चलते रास्ते कोई ढंग का दृश्य, जो लेखन को उद्वेलित करे, खींचने के लिये चुटपुटिया मोबाइल भी रख लिया है। पूरी तैयारी से निकलता हूं।

औरते सवेरे सवेरे अपना अपना हंसिया और एक थैला जैसा कुछ लिये जाती दीखती हैं।

बाकी फसल निपट गयी है। आजकल गेंहूं की कटाई और थ्रेशिंग चल रही है। औरते सवेरे सवेरे अपना अपना हंसिया और एक थैला जैसा कुछ लिये जाती दीखती हैं। आजकल देखा है कि पूरी तरह मुंह ढंक कर कटाई करती हैं। कोरोना का खतरा तो नहीं है, कटाई से उड़ने वाली धूल ज्यादा कष्ट देती है। इन सब के अपने खेत नहीं हैं। सब मजूरी करती हैं। औरते हैंं तो मैं इनसे बातचीत करने रुकता भी नहीं और सामने से चित्र खींचने से भी परहेज करता हूं। अन्यथा सब के पास कथायें हैं। सबके पास कहने को बहुत कुछ है। अपने ब्लॉग लेखन में आंचलिकता का पैनापन लाया जा सकता है। पर आड़े आते हैं मेरी देशज भाषा समझने में तंगी और पत्नीजी का साथ में न होना। वे अगर साइकिल चलाना जानती होतीं तो हम दोनो कहीं ज्यादा देखने-बोलते-बतियाते-लिखते!

मडैयाँ डेयरी पर मैं कुर्सी पर बैठा इंतजार करता हूं कि पिण्टू भैंस के दूध का फैट चेक करे लेक्टो-स्कैनर से और बताये कि वह छ परसेण्ट से ज्यादा है। इंतजार करते पास के सज्जन मुझसे बात करते हैं। मैं उन्हें नहीं पहचानता। वो खुद ही बताते हैं – मिश्री पाल हैं। मेरी ट्यूबलाइट जल जाती है। मिश्री पाल गांव में आने के शुरुआती दौर में आये थे मेरे ब्लॉग पर। उस समय उनके पास डेढ़ सौ भेड़ें थी। दिन भर आसपास चराते थे। पास के गांव पठखौली के हैं। उनको भेड़ों के साथ देखता हूं तो डेयरी पर पहचान न पाया! मिश्री पाल को जब शुरू शुरू में देखा था तो पॉल कोहेलो की पुस्तक अल-केमिस्ट (कीमियागर) का हीरो सेंतीयागो याद आया था। मिश्री पाल पर भी एक किताब लिखी जा सकती है।

इंतजार करते पास के सज्जन मुझसे बात करते हैं। मैं उन्हें नहीं पहचानता। वो खुद ही बताते हैं – मिश्री पाल हैं।

आसपास इतने सारे पात्र हैं, इतने दृश्य, क्या क्या करोगे जीडी?! और तुम्हारे पास आलसीपन है। यह रोना भी है कि हिंदी को पढ़ने वाले ही नहीं हैं! सो तुम देखते-लिखते ही नहीं।

अखबार खरीदता हूं आगे बढ़ महराजगंज में। आज मंगल प्रसाद नहीं हैं अपने ठिकाने पर। बच्चा है। बोलता है – पापा पेपर बांटने गये हैं। लगता है मंगल प्रसाद सवेरे जल्दी निकल गये आज। बच्चा छोटा है पर हुशियार है। मुझे अखबार दे कर, सही चेंज वापस कर दन्न से अखबार के बगल में जमीन पर बिछे बिस्तर पर लेट जाता है और लेटे लेटे ही बात करता है। भगवान करें मंगल प्रसाद से ज्यादा कामयाब निकले। वैसे पूर्वांचल का यह कस्बा कामयाबी के कितने अवसर दे सकता है?

बच्चा छोटा है पर हुशियार है। मुझे अखबार दे कर, सही चेंज वापस कर दन्न से अखबार के बगल में जमीन पर बिछे बिस्तर पर लेट जाता है और लेटे लेटे ही बात करता है। भगवान करें मंगल प्रसाद से ज्यादा कामयाब निकले।

घर पर आते आते थक जाता हूं मैं। एक कप चाय की तलब है। पत्नीजी डिजाइनर कुल्हड़ में आज चाय देती हैं। लम्बोतरा, ग्लास जैसा कुल्हड़ पर उसमें 70 मिली लीटर से ज्यादा नहीं आती होगी चाय। दो तीन बार ढालनी पड़ती है। कुम्हार की बीवी आती है कुल्हड़ देने। उसे कहना होगा कि बड़े साइज के दिया करे। कम से कम 150मिली की केपेसिटी तो हो! पर वह भी क्या करे? बाजार में बिकते तो ये चुकुई (छोटे आकार वाले) वाले कुल्हड़ ही हैं।

चुकुई वाले कुल्हड़

घुटने दर्द कर रहे हैं। पीयूष जी का मालिश का तेल तो थोड़ा देर से लगाया जायेगा, अभी पत्नीजी घुटनों को हल्का सा सहला देती हैं। फिर उठ कर मैं यह पोस्ट लिखने लग जाता हूं। इसे दर्ज कर देता हूं – इससे पहले कि यह स्मृति से गायब हो जाये। … ऐसी सैकड़ों, हजारों पोस्टें बिना लिखे मर चुकी हैं! :-(


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started