पूरे एक साल पहले उनसे मिला था। उनसे मिलने की पोस्ट चार मई 2022 की है – मिश्रीलाल सोनकर, सतयुग वाले।
आज फिर उस तरफ से गुजरा तो वे उसी कुर्सी पर बैठे दिखे जिसपर पिछ्ली साल बैठे थे। उनसे मैंने सब्जी खरीदी – परवल और नेनुआं। उनका नाम याद नहीं रहा था। पूछ्ने पर जब उन्होने बताया तो उनकी पोस्ट मोबाइल पर तलाशी और उन्हें दिखा कर पूरी सुनाई।

पचासी साल का आदमी, अपने बारे में लिखा देख और सुन कर कितना प्रसन्न होता है, वह अहसास मुझे हुआ। उनकी वाणी मुखर हो गयी। बताया कि अपनी जवानी में वे मुगदर भांजा करते थे। “सामने क लोग मसड़ (मच्छर) अस लागत रहें तब।”
पचासी की उम्र के हिसाब से अब भी वे फिट हैं। ऊंचा सुनते हैं, पर इतना भी नहीं कि उनके साथ सम्प्रेषण में कठिनाई हो। मोटा अनाज खाना और शरीर का व्यायाम – ये दो बातें स्वास्थ्य के बारे में उनसे मिल कर समझ आयी।

उन्होने मेरा परिचय पूछा। मैं बाभन हूं यह जान कर उन्होने झुक कर प्रणाम करने की कोशिश की। मैंने कहा – “अरे, उम्र आपकी ज्यादा है। बड़े तो आप हैं।”
यह पता चलने पर कि मैं रेलवे से रिटायर हुआ हूं; उन्होने पूछने में देर नहीं लगाई कि पेंशन कितनी मिलती होगी? मैंने उन्हें काउण्टर प्रश्न किया – “आपके हिसाब से कितनी मिलती होगी?”
मिश्रीलाल जी ने मेरा वेश और मेरी साइकिल देखी; फिर कहा – “पचास-साठ हजार होये। नाहीं?”
मैं कोई संख्या अपनी ओर से बोलने से बच गया। कहा – “हां, इतनी तो है।”
चलते चलते मिश्रीलाल जी ने मुझे रोका। अपनी ओर से दो खीरे उठा कर मेरे थैले में डाल दिये – “ई हमरी तरफ से।” पिछली साल जब पोस्ट लिखी थी तो उसका ट्रिगर था कि उन्होने अपनी तरफ से एक खीरा मुझे दिया था। आज दो मिले।
मुझे लगा कि अपनी पोस्ट लिखने का मेहनताना मिल गया!
जय हो! भगवान करें सौ साल जियें मिश्रीलाल सोनकर!
