पूर्णिया से डगरुआ


सत्यम के घर का मिट्टी का दो बर्तन वाला चूल्हा बड़ा आकर्षक लग रहा है। रात में फोटो बहुत साफ नहीं है, पर एक चित्र बहुत बोलता है बिहार की गांव की जिंदगी के बारे में।

सुकुआर हो गये हैं लोग। कुल्ला करने भी मोटर साइकिल से जाते हैं।


सुकुआर (नाजुक) हो गये हैं लोग। अब मेहनत नहीं करते। अब यह हाल है कि कुल्ला करने (खेत में हगने) भी मोटर साइकिल से जाने लगे हैं। ट्रेक्टर से खेती करते हैं। वह भी आलस से।

बाबा, हमें भी इबादत करने दो न!


शाम के समय प्रेमसागर का मैसेज था। एक टेम्पू वाला साइड से उन्हें धक्का मारते चला गया था। धक्का लगा तो गिर गये। चोटें आईं। खुद उठने का प्रयास करते तब तक बगल की दुकान से एक नौजवान दौड़ कर आये। उन्होने उठाया।

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