गलियारा किसी मकान का नहीं, दफ्तर की इमारतों के कॉम्प्लेक्स का। जिसपर लोग पैदल तेजी से आते जाते हों। उसपर वाहन नहीं चलते। पर बहुत चहल पहल रहती है। एक बहुमंजिला बिल्डिंग से निकल कर दूसरी में घुसते लोग। किनारे खड़े हो कर अपनी सिगरेट खतम करते लोग। बाहर से आये लोग जो रास्ता पूछContinue reading “बीच गलियारे में सोता शिशु”
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दिहाड़ी मिलना कठिन है क्या इस समय?
मेरे पास बेरोजगारी के आंकड़े नहीं हैं। पर रोज दफ्तर जाते समय दिहाड़ी मजदूरी की प्रतीक्षारत लोगों को देखता हूं। इस बारे में फरवरी में एक पोस्ट भी लिखी थी मैने। तब जितने लोग प्रतीक्षारत देखता था उससे कहीं ज्यादा इस समय बारिश के मौसम में वहां प्रतीक्षारत दीखते हैं। क्या मजूरी मिलना कठिन होContinue reading “दिहाड़ी मिलना कठिन है क्या इस समय?”
सुपरलेटिव्स का गोरखधन्धा
सूपरलेटिव स्प्रिंकल्ड अखबार बहुत पहले मेरे जिम्मे रेल मण्डल स्तर पर मीडिया को सूचना देने का काम था। मैने पाया कि जबानी बात सही सही छपती नहीं थी। लिहाजा मैने ३०० शब्दों की प्रेस रिलीज स्वयं बनाने और खबर बनाने की समय सीमा के पहले अखबारों के दफ्तरों तक पंहुचवाने का इन्तजाम कर लियाContinue reading “सुपरलेटिव्स का गोरखधन्धा”
