<<< बेलपत्र वाले विजयशंकर >>> मेरे घर के बगल में ही रहता है बेलपत्र और दूब का कार्य करने वाला परिवार। आज सवेरे देखा विजयशंकर अपनी मॉपेड पर पानी से भीगे गट्ठर लाद रहा था। कुल आधा दर्जन गठरियां होंगी। काफी बड़े आकार की गठरियां। दो घर की लड़कियां उसके साथ लगी थीं गट्ठर मॉपेडContinue reading “बेलपत्र वाले विजयशंकर”
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मचान के देखुआर अनूप सुकुल
<<< मचान के देखुआर अनूप सुकुल >>> कल अनूप शुक्ल जी, सपत्नीक मिलने आये। हम लोग हिंदी ब्लॉगिंग के स्वर्णकाल (?) से मित्र हैं। मेरी उनसे मुलाकात सतरह साल पहले कानपुर रेलवे स्टेशन के एक रेस्ट हाउस में हुई थी। मैं उनके लेखन का मुरीद हूं। पता नहीं वे यह भाव रेसीप्रोकेट करते हैं याContinue reading “मचान के देखुआर अनूप सुकुल”
कल्पना में रेल कथा
<<< कल्पना में रेल कथा >>> मैं मचान पर बैठता हूं तो आधा किलोमीटर दूर रेलवे फाटक से गुजरती ट्रेने देख मेरे अतीत से प्रेरित; पॉपकॉर्न की तरह, कथायें फूटने लगती हैं। कुछ इस तरह लगता है कि मैं अर्धनिद्रा में चला गया हूं और केलिडोस्कोप में सीन-प्लॉट-पात्र-घटनायें बन बिगड़ रहे हैं। जमीन से सातContinue reading “कल्पना में रेल कथा”
