सुरती, दारू की तरह बहुत सामाजिक टाइप की चीज है। अजनबी व्यक्ति भी सुरती फटकने वाले के पास खिंचा चला आता है। वह निसंकोच सुरती मांग लेता है और देने वाला सहर्ष देता भी है।
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गाँव देहात और गंगा तट का एकांत
सुबह शाम सूरज की किरणें, गंगा नदी का बहाव, बबूल के झुरमुट और उनके झाड़ों पर उखमज (पतिंगे) वैसे ही हैं, जैसे थे। किसी आयरस-वायरस का कोई प्रभाव नहीं।
कोविड19 का सामाजिक अलगाव, गांव और गंगा तट
गांव सामान्य सा दिखता है। पर गमछा मुंह पर बांधे है और सहमा हुआ है। आसपास के इलाके में अभी किसी के बीमार होने या मरने की खबर नहीं है, वह होने पर शायद गांव भी घरों में दुबक जाये।
