रात आते ही – शाम सात सवा सात बजे झींगुर गायन शुरू कर देते हैं। और यह आवाज रात भर चलती है। गांव के सन्नाटे का संगीत है यह। पितृपक्ष लग गया है जो कोई अन्य आवाज – कोई डीजे या जै मातादी जागरण या अखंड मानस पाठ आदि नहीं हो रहा। आजकल झींगुरचरितमानस काContinue reading “रात ढलते ही झींगुर गायन”
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तुर्री – कमोडानुशासन से बिडेटानुभव तक
बचपन से शुरू करता हूं। सन 1958 रहा होगा। तीन साल का ज्ञानदत्त। खेलते कूदते अचानक दबाव बना तो दौड़ लगाई घर के सामने के दूसरे खेत में। नेकर का नाड़ा नहीं खुला तो पेट सिकोड़ कर किसी तरह उसे नीचे किया। निपटान में एक मिनट लगा होगा बमुश्किल। पानी की बोतल का प्रचलन नहींContinue reading “तुर्री – कमोडानुशासन से बिडेटानुभव तक”
भुआलिन या मिलीपीड्स
बारिश के इस कीड़े से तंग हो गये हैं हम। सैंकड़ों की संख्या में जन्म लेती हैं। पहले एक झुंड में धीरे धीरे चलती हैं। जैसे भेड़ें एक झुंड में चल रही हों। कौन उनमें लीडर है? कौन किसके पीछे चल रहा है – पता नहीं चलता। पर जैसे जैसे इनका आकार बढ़ता है, इनकाContinue reading “भुआलिन या मिलीपीड्स”
