गंगा के शिवकुटी के तट पर बहती धारा में वह अधेड़ जलकुम्भी उखाड़-उखाड़ कर बहा रहा था। घुटनो के ऊपर तक पानी में था और नेकर भर पहने था। जलकुम्भी बहा कर कहता था – जा, दारागंज जा! बीच बीच में नारा लगाता था – बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम कीContinue reading “दारागंज का पण्डा”
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कतरासगढ़
यह जानने के बाद कि कतरासगढ़ क्षेत्र की कोयला खदानों से साइकल पर चोरी करने वाले कोयला ले का बोकारो तक चलते हैं, मेरा मन कतरासगढ़ देखने को था। और वह अवसर मिल गया। मैं कतरासगढ़ रेलवे स्टेशन पर पंहुचा तो छोटी सी स्टेशन बिल्डिंग मेरे सामने थी। यह आभास नहीं हो सकता था किContinue reading “कतरासगढ़”
हुन्दै ले लो हुन्दै!
हुन्दै वालों ने तम्बू तान लिया है हमारे दफ्तर के बाहर। दो ठो कार भी खड़ी कर ली हैं। हमारे दफ्तर के बाबूगण कार खरीदने में जुट गये हैं। ई.एम.आई. है तीन हजार सात सौ रुपये महीना। सड़क का ये हाल है कि हाईकोर्ट के पास जाम लगा है। आधा घण्टा अंगूठा चूस कर दफ्तरContinue reading “हुन्दै ले लो हुन्दै!”
