पुलियाबाज़ी की पुलिया गांव की नहीं है


कभी-कभी जीवन में ऐसा होता है कि कोई नई आवाज़ कानों में पड़ती है और लगता है—हाँ, यही तो सुनना चाह रहा था मैं! मेरे साथ यह अनुभव तब हुआ जब मैंने पहली बार, दो तीन साल पहले पुलियाबाज़ी पॉडकास्ट सुना। इसमें तीन लोग – प्रणय कोटस्थाने, सौरभ चंद्र और ख्याति पाठक – बतकही कीContinue reading “पुलियाबाज़ी की पुलिया गांव की नहीं है”

पाणिनि बाबा का आईना


वह तो एक स्नेहपूर्ण समीकरण बना लिया है पाणिनि पण्डित से कि पिन चुभाने में मजा आता है। वर्ना बाबा को सुनना और रामचंद्र गुहा को पढ़ना – वैचारिक मतभेद के बावजूद – मुझे प्रिय है।

सावन में तीन ताल का लाल तिरपाल


तीन ताल अपने आप में अनूठा पॉडकास्ट है। ये तीनों पॉडकास्टिये, जो अपना रूप-रंग फोटोजेनिक बनाने की बजाय अपनी आवाज के वजन और अपने परिवेश की सूक्ष्म जानकारी से आपको चमत्कृत करने की जबरदस्त क्षमता रखते हैं…

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