महाकाल आरती के समय डमरू बजाने वाले – जीतू, शुभम और लकी – प्रेमसागर से मिलना चाहते थे। पर जब पता चला कि वे इंदौर के लिये निकल चुके हैं तो वे लोग पीछे दुपहिया वाहन पर आये और रास्ते में प्रेमसागर से मिले।
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देवास से उज्जैन और उज्जैन में
पहले प्रतीक्षा में एक घण्टा बैठना पड़ा। फिर चार से पांच बजे के बीच महाकाल का सिंगार हुआ और उसके बाद एक घण्टा भस्म आरती। श्मसान की भस्म की आरती। छ बजे बाहर निकल कर उन्होने अपनी एक सेल्फी ली; यादगार के रूप में।
श्यामलाल; और वे भी खूब पदयात्रा करते हैं
गेरुआ वस्त्र पहने थे। कुरता धोती (तहमद की तरह), सिर पर सफेद गमछा लपेटा था। पीछे लपेट कर कम्बल जैसा कुछ लिया था। बांये हाथ में एक झोला। कोई लाठी नहींं थी हाथ में। चाल तेज थी। नंगे पांव, छरहरे और फुर्तीले थे वे।
