शारदा परसाद बिंद – चकरी कूटने वाला


गरीब आदमी शारदा। शायद उसे आठ दस हजार का माइक्रो फाइनांस मिले तो वह उपयुक्त औजार खरीद कर अपनी आमदनी बढ़ा सके। पर कोई भी कर्ज किसी काम के लिये लिया जाये, किसी न किसी और मद में खर्च हो ही जाता है।

गांव की सड़क पर बारिश के मौसम की शाम


मैं देर तक रुका नहीं; यद्यपि सांझ के गोल्डन ऑवर की सूरज की किरणों में वह जगह बहुत आकर्षित कर रही थी। मैंने अपने को दो – ढाई हजार साल के अतीत के टाइम फ्रेम से अपने को वर्तमान में धकेला और घर के लिये रवाना हो गया।

पार्वती मांझी


गांवदेहात की पार्वती न केवल खुद अपने पैरों पर खड़ी है, वरन अपने साथ 5-6 अन्य को भी रोजगार दिला रही है। क्या खूब बात है! हेलो प्रधानमंत्री जी; आर यू लिसनिंग!

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