गिरीश केसरी का शोरूम


गिरीश जी के शोरूम से लौटते समय दो चीजें मेरे मन में छायी रहीं – एक तो गिरीश जी की विनम्रता और सज्जनता (कोई शक नहीं कि वे सफल व्यवसायी हैं), और दूसरे मध्यवर्ग के बारे में मेरा अपना बदला नजरिया।

शादियों का मौसम और लड्डू-खाझा की झांपियाँ


शादियों का मौसम है। गांवों में पहले लोग तिलक, गोद भराई और शादी की झांपियों के लिये हलवाई लगाते थे जो लड्डू, खाझा और हैसियत अनुसार अन्य मिठाई बनाता था। झांपी बांस की टोकरियों को कहा जाता है; जिन्हें मंगल कार्य अनुसार लाल-पीला रंग में रंग दिया जाता था। तिलक और गोद भराई में फलContinue reading “शादियों का मौसम और लड्डू-खाझा की झांपियाँ”

महराजगंज के कस्बाई बाजार पर फुटकर सोच


यह पास का कस्बा – महराजगंज कैसे पनपा? कैसे इसका बाजार इस आकार में आया? यहां रहने वाले पहले के लोग कहां गये? बाजार ने कौन से लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया। यातायात के साधन बाजार को किस तरह विकसित करते गये? … ये सवाल मेरे मन में आजकल उठ रहे हैं।

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