प्लास्टिक फेरीवालोंं के समूह


कई समूह इस इलाके में प्लास्टिक की डेली-यूज की सस्ती वस्तुओं को बेचने के लगे हैं। वे मोबाइल, ऑनलाइन और मोटर साइकिल तथा हाईवे जैसी सुविधाओं का सही सही दोहन कर ग्रामीण जनता को सुविधा भी दे रहे हैं और अपना पेट भी पाल रहे हैं।

कन्हैयालाल और फेरीवालों का डेरा


वे सब कानपुर के पास एक ही क्षेत्र से हैं। सामुहिक रूप से एक दूसरे के सुख दुख में साथ रहते हैं। शाम को भोजन सामुहिक बनता है। उसके बाद बोल-बतकही होती है। कुछ मनोरंजन होता है। फिर जिसको जहां जगह मिले, वहां वह सो जाता है।

शाम 7 बजे ‘बोधई’ का बाटी चोखा


कुल मिला कर पूरी सेल्समैनी चाइना छाप माल बेचने में पारंगत है। सेल्समैन के गुणों के मोहजाल में स्वदेशी और राष्ट्रवाद से ओतप्रोत ग्राहक कड़क से मुलायम बनते हुये अंतत: चाइनीज पर टूटता है! आत्मनिर्भरता तेल लेने चली जाती है!

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