हताशा के पांच महीने बाद


समय सबसे बड़ी दवा है. साथ के चित्र में जो बुजुर्ग दिख रहे हैं वे पिछ्ली मई में हैजे से मरणासन्न थे. अस्पताल में इलाज हुआ तो पता चला कि समय पर चिकित्सा न होने से किडनियों ने काम करना बंद कर दिया है. इन्टेंसिव केयर में हफ़्ते भर और तीन महीने गहन चिकित्सा से किडनियां सामान्य हो पाईं.

इधर किडनी ठीक हुयी तो इन बुजुर्ग ने बरसात से गीली जमीन पर पैर रखकर अपनी कूल्हे की हड्डी तोड ली. हड्डी का आपरेशन हुआ. डेढ महीने फ़िर बिस्तर पर रहे. अवसाद के गर्त में जा कर जीने की इच्छा शक्ति खो बैठे. फिर फिजियोथेरेपी ने कमाल किया. वाकर ले कर धीरे धीरे चलने लगे. कुछ मनोबल लौटा. महीने भर वाकर पर रहे. कुछ ताकत बढी तो छडी़ ले चलने लगे. दो महीने बाद छ्डी़ के बिना भी चलने लगे.

लेकिन इलाज की कहानी खत्म नही हुई. एक दिन घर के कुत्ते पर पैर रख दिया. कुत्ते ने काट खाया. डाक्टर की सलाह पर दो एन्टी रेबीज इन्जेक्शन लगे. कुत्ते पर पैर क्यों रखा; इसपर सोचा गया तो लगा कि आंख से शायद कम दिखता है. आंखों के चेक अप में निकला कि दोनो आंखों मे मोतियाबिन्द है. दो हफ़्ते पहले एक आंख का ऑपरेशन कराया गया. अब जब ठीक से दिखने लगा तो बुजुर्ग ने खुद कपडे़ के जूते खरीदे. उन्हे पहन कर सडक पर सवेरे की सैर को दो दिन से निकल रहे हैं. एहतियाद के लिये साथ में मेरा लड़का जाता है.

जी हां; ये सज्जन मेरे पिताजी हैं.

अवसाद, हताशा और खुश जिन्दगी में कितने महीनों का अंतर होता है?


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

10 thoughts on “हताशा के पांच महीने बाद

  1. आपकी पिछली सारी पोस्टें पढ़ने का बीड़ा उठाया है. सबसे पहली (या सबसे आखिरी?) पोस्ट से शुरू करते-करते पढ़ना तय किया है क्योंकि बेतरतीब पढने में दोहराव और छूटने का चांस है. आपके पिता और पुत्र का ज़िक्र यहाँ पहली बार देखा है.

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  2. जीवित रहने के लिए जिजीविषा ही सबसे पहली जरुरत है। इस बारे में इंग्लिश कहानी The Last Leaf ध्यान आती है।ईश्वर करे आपके पिताजी शीघ्र स्वस्थ हों।

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  3. आपके पिताजी हमारे लिये हमारे दादाजी स्वरूप हुए ।दादाजी को सबसे पहले चरणस्पर्श, और फ़िर ईश्वर से उनके अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना ।

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  4. आप के साथ रहकर कौन हताश हो सकता है? जब आप अपने साथ अधीनस्थ कर्मचारियों, सामान्य काम पर आने वालों के बारे में सोच कर लिख सकते हैं, तो अपने पिताजी का कितना ध्यान रकते होंगे?आपके बाबूजी सदैव खुश सानन्द रहें, इन्ही मनोकामना के साथ

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