महीना भर हिन्दी में लिखने की साध पूरी कर ली. रूटीन काम के अलावा रात में ट्रेन ऑपरेशन से जुड़ी़ समस्याओं के फोन सुनना; कभी-कभी ट्रेन दुर्घटना के कारण गाडि़यों को रास्ता बदल कर चलाने की कवायद करना; और फिर मजे के लिये दो उंगली से हिन्दी टाइप कर ब्लॉग बनाना – थोडा़ ज्यादा ही हो गया. यह चिठेरी इतनी ज्यादा चल नहीं सकती, अगर आपका प्रोफेशन आपसे एक्सीलेन्स की डिमाण्ड रखता हो.
मैं यूं ही चिठ्ठे पर हाइबरनेशन में जा सकता था. पर शायद नहीं. आपको अगर खैनी खाने की लत लग जाये तो उसे छोड़ने का तरीका यही है कि आप एनाउंस करदें कि अब से नहीं खायेंगे. मैने कभी तम्बाकू का सेवन नहीं किया है, पर चिठेरी छोड़ने को वही तकनीक अपनानी होगी. वर्ना एक पोस्ट से दूसरी पर चलते जायेंगे.
मैं यह लिख कर लत छोड़ने का एनाउन्समेंट कर रहा हूं.
नारद की रेटिंग में २-३-४ ग्रेड तक गुंजाइश है. उतना तो मेन्टेन कर ही लेंगे. ब्रेन-इन्जरी पर लिखना है. कई भाइयों ने सहायता का आश्वासन दिया है. तो अपने को तैयार करना ही है.
अभयजी (मैं अभय से अभयजी पर उतर रहा हूं – उनसे पंगे रिजाल्व जो नहीं हो पाये) से विशेष राम-राम कहनी है.
ब्लॉग में लिखने का अनुभव कुछ वैसा था – जैसे रेलवे के अपने कैरिज से निकल कर ट्रेन में गुमनाम सफर करते दोस्त बना रहा होऊं. रेलवे के कम्पार्टमेण्टलाइज्ड जीवन में वह मजा नहीं है. यहां तो ऊर्ध्वाकार सेट-अप में या तो आप अफसर हैं, या आपके ऊपर कोई अफसर है.
अच्छा मित्रों, राम-राम!
अप्रैल फ़ूल बनाए है क्या??
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यहां अभी ठीक से गर्मी शुरु भी नहीं हुई और आप छतरी खोजने निकल लिये..?
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दुखद है.. पर निर्णय आपका है..
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जाओगे कहाँ जी फिर आना तो यहीं पड़ेगा। इस दुनिया में जो एकबार आया (पूरी तरह)छोड़कर न जा सका।हम इंतजार करेंगे। 🙂
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“…नारद की रेटिंग में २-३-४ ग्रेड तक गुंजाइश है. उतना तो मेन्टेन कर ही लेंगे…”तब तो ठीक है, राम राम, जै राम जी की 🙂
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