छुट्टी: चिठ्ठे पढ़ने का बकाया निपटाया जाये!


पहले कानपुर में रेल दुर्घटना हुई. फिर लोगों ने उसपर बहुत से सवाल पूछे. लोगों को जवाब देते बड़ा अच्छा लग रहा था, यद्यपि शरीर थका था. कल भी दफ्तर में निर्णय के लिये फाइलों का ढ़ेर और डाक बक्सा भरा था. रोज की ब्लॉग पोस्ट लिखने का स्व निर्धारित नियम पालन करने के जुनून ने और थका दिया. नींद की गोलियां और मां की डांट भी करगर न रही. कल सुकुल जी ने टोक भी दिया कि लगता है आज नागा कर गये मिस्टर ज्ञानदत्त.
सो, सप्ताहांत की आकस्मिक छुट्टी ले रहा हूं आप सब से. थकान पूरी कर गूगल रीडर पर ब्लॉग रीडिंग का बकाया पूरा करूंगा. लोगों के ब्लॉग पर पढ़ कर टिप्पणियां भी करनी हैं – वर्ना हम नॉन-एलाइण्ड ब्लॉगर की पोस्ट पर कौन आयेगा!
नमस्कार.
(हो सके तो इस मुन्नी पोस्ट पर भी कुछ शब्द टिपेर दीजियेगा!)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “छुट्टी: चिठ्ठे पढ़ने का बकाया निपटाया जाये!

  1. सब लोगों ने छुट्टी मंजूर कर ली तो हम कौन होते है मना करने वाले। :)छुट्टी मुबारक!

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  2. इस बार छुट्टी मंजूर की जाती है!विशेष नोट:- अगली बार छुट्टी पर जाने से पहले अपनी वैकल्पिक व्यवस्था कर के जाएं अर्थात शिवकुमार मिश्रा जी से एकाध पोस्ट ज्यादा ठेलने कह कर जाएं!! :)

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  3. जे भी सई हे । अब जरा एक कविता सुन लीजिये— इस दौड़धूप में क्‍या रखा आराम करो आराम करो आराम जिंदगी की कुंजी है जिससे ना तपेदिक होता है आराम शब्‍द में राम छिपा जो भवबंधन को खोता है इसलिये तुम्‍हें बताता हूं मेरे अनुभव से काम करो इस दौड़धूप में क्‍या रखा आराम करो आराम करो ।। याददाश्‍त के आधार पर लिखी हैं ये पंक्तियां, थोड़ा बहुत हेरफेर संभव है ।

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  4. आईये लौट कर अब तबहि पढ़ियेगा बकिया. हम तो आदेशानुसार टिपिया रहे हैं. :) काफी मसाला है पढ़ने पढ़ाने जबबियाने को. :)

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  5. सरजीबहुत पहले मेरे लेखन पर बोलते हुए एक विद्वान ने कुछ यूं कहा – आलोक पुराणिक ने व्यंग्य लेखन की बहुत सेवा की है। आलोक पुराणिक ने उम्र के शुरु के तीस साल व्यंग्य नहीं लिखा। फिर व्यंग्य लिखना शुरु किया। मेरे हिसाब से उन्होने लेखन की सेवा दो तरह से की है-एक तीस सालों तक न लिख कर, दूसरे दस सालों से लिखकर। और उन्होने घनघोर तरीके से रेखांकित किया कि आलोक ने ना लिखकर जो सेवा की ।थी, वो ज्यादा सार्थक और सराहनीय है। पर यह बात हुई हमारी। पर आप तो लिखकर जो सेवा कर रहे हैं, वही सार्थक है। आराम वाराम कर लें, फिर लौटें। रेल चार-पांच दिन लेट हो जाये, या कहीं लेटी रहे, सो माफ होता है। जो रुल रेल के लिए है, वही रुल रेलवालों के लिए है।

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  6. सुकुल जी नें छुट्टी पास कर दी है संजय तिवारी जी से कुछ योगा का टिप ले लेवें ये नीद की गोली वोली आपके लिए ठीक नहीं है । व्‍यस्‍तता एवं दायित्‍वों के बावजूद आपने पोस्‍ट लिखा, धन्‍यवाद ।

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