आज का दिन गूगल सर्च की पोस्टों के नाम ही! बस, आपके झेलने के लिये यह आज की दूसरी और अंतिम पोस्ट है. और फिर गूगल सर्च की पोस्ट बन्द.
खबर सूंघने-जानने को मीडिया ही शेर नहीं है. ट्रैफिक पैटर्न – चाहे वह रेल का हो या टेलीफोन का, मीडिया से पहले खबर का ट्रिगर देता है.
आपको अमेरिका में पुल टूटने की खबर तो होगी ही. उस खबर को पहले मीडिया ने नहीं, मोबाइल कम्पनी ने सूंघा था. कुछ वैसी ही बात लिखी है शिकागो ट्रिब्यून की इस खबर में. मिनीसोटा के पुल गिरने की खबर आने से पहले ही मोबाइल कम्पनी T-mobile के इंजीनियरों को अन्दाज लग गया था कि कसीं कुछ जबरदस्त हुआ है. मोबाइल फोन की काल पैटर्न में बहुत ही स्पष्ट अंतर महसूस किया उन इंजीनियरों नें. ताबड़तोड़ तरीके से उन्होने पता किया कि क्या गुल खिला है और आनन-फानन में उन्होने पुल के पास दो सेलफोन के टावरों पर अतिरिक्त रेड़ियो उपकरण फिट कर दिये. उनको यह मालूम था कि अगर भीषण दुर्घटना होने पर संचार ठप हो जाये तो उपभोक्ता को और भी आशंका और झल्लाहट होती है.
भारत में भी यह बार-बार होता है, पर यहां शायद मोबाइल कम्पनियों में T-mobile जैसी तत्परता नहीं है. बहुधा लोग कहते पाये गये है कि सरकार ने मोबाइल/फोन जैमिंग कर दी है फलानी जगह बम-ब्लास्ट होने पर जिससे दंगा न हो. जबकि होता मात्र यह है कि संचार माध्यम अक्षम/विफल होते हैं अतिरिक्त यातायात डील करने में.
वैसे एक्सपर्ट सलाह है कि जब इमरजेंसी बने इस प्रकार की तो फोन की बजाय एसएमएस सेवा का प्रयोग करना चाहिये. उससे फोन यातायात की बाढ़ के कारण जैमिंग और “नेटवर्क व्यस्त है” की स्थिति से बचा जा सकता है.