हमारे प्रधानमंत्री देश के गौरव हैं. जैसे कलाम साहब के प्रति मन में इज्जत है, वैसे ही मनमोहन सिंह जी के प्रति भी है. जॉर्ज जी कह रहे हैं कि प्रधान मंत्री किसी और देश में होते तो उनका वध कर दिया जाता. जॉर्ज जी के प्रति भी मन में आदर है, पर वे मेवरिक राजनेता हैं और उनसे हमेशा सहमत नहीं हुआ जाता. मनमोहन जी स्वयम कह रहे हैं कि कुछ लोगों ने उनके लिये पंसेरी लुढ़काई है (अवधी में पंसेरी लुढ़काना का अर्थ मरने की इच्छा करना है) और अनुष्ठान कराया है. मनमोहन सिन्ह जी जैसे के लिये कोई यह कर सकता है – ठीक नहीं लगता. शायद उनकी सूचना सही न हो. पर शिखर पर बैठा व्यक्ति एकाकी होता है और अगर वह सूक्ष्म सम्वेदना का व्यक्ति हुआ तो उसके कष्ट का अन्दाजा बहुधा दूसरे नहीं लगा सकते. यह लोगों का कर्तव्य है कि सरकार के प्रति चाहे जो सोचें, मनमोहन सिन्ह जी के साथ व्यक्तिगत सॉलिडारिटी प्रकट करें.
ऐसा नहीं है कि मनमोहन सिन्ह जी की आलोचना पहली बार हो रही हो. बतौर वित्तमंत्री जब नरसिम्हाराव सरकार में उन्होने बजट पेश किये थे तो यह शोर मचा था कि वे देश को चौपट कर देंगे. पर अब देखिये कि अगर वे उस समय देश को नयी आर्थिक दिशा न देते तो शायद देश चौपट होता. सम्भव है कि इस समय नाभिकीय ऊर्जा के विषय में जो कहा जा रहा है, उस बारे में भी भविष्य में वैसा ही निकले.
जीतेन्द्र ने अपनी इस पोस्ट में नाभिकीय समझौते के दस्तावेज का लिंक दिया है. उसे आप डाउनलोड कर सकते हैं और चल रही बहस में अगर कुछ तथ्यपरक कहा जाये तो वैलिडेट कर सकते हैं. पर दुर्भाग्यवश मात्र राजनैतिक बयान हो रहे हैं. और समझौते में तो लेन-देन होता ही है, उसे मानते हुये व्यापक हित की बात खोजनी चाहिये.
खैर, नाभिकीय समझौता एक तरफ, मैं तो मनमोहन सिन्ह जी की बतौर एक सज्जन पुरुष बात कर रहा हूं. उनके समर्थन में खड़ा हुआ और कहा जाना चाहिये.