उच्च-मध्य वर्ग की अभद्र रुक्षता


तेज ब्रेक लगाने से मेरा वाहन रुक गया. हमारे ड्राइवर ने देखा कि ट्रैफिक सिगनल अचानक लाल हो गया है. वाहन स्टॉप-लाइन से तीन-चार कदम आगे चला गया था. ड्राइवर ने वाहन धीरे से बैक करना प्रारम्भ कर दिया. तब तक पीछे एक कार रुक चुकी थी. कार वाले ड्राइवर ने जोर से हॉर्न दिया. हमारे ड्राइवर ने रोका पर रोकते-रोकते वाहन पीछे की कार से थोड़ा सा छू गया.

पीछे की कार में भद्र महिला थीं. वे जोर-जोर से अभद्र भाषा में मेरे ड्राइवर पर चीखने लगीं. पहले मेरे ड्राइवर ने उत्तर देने का प्रयास किया. पर उन महिला के शब्द इतने कर्कश थे कि मुझे नीचे उतरना पड़ा. मैने देखा कि गाड़ियां छू भर गयी थीं. कोई नुक्सान नहीं हुआ था उनकी कार का. पैण्ट पेण्ट तक नहीं उखड़ा था. पर भद्र महिला कार में बैठे-बैठे बोलते हुये रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. अनवरत बोलती जा रही थीं – “अन्धेरदर्दी नहीं चलेगी. अन्धे हो कर गाड़ी चलाता हैं. सूअर कहीं का.”

मुझे देख कर बोलीं – “ऐसे नहीं छोड़ देंगे. हम ऑनेस्ट टैक्सपेयर हैं.”

बस, मुझे ऐसे ही किसी वाक्य की प्रतीक्षा थी. हर टैक्स देने वाला ऑनेस्ट (ईमानदार) होता है. मैने विनम्रता से (अंग्रेजी में) पूछा – “मैडम, आप अपना पैन नम्बर बतायेंगी? आपके पास पैन नम्बर है?”

एक दशक पहले की बात है यह. तब पैन नम्बर का चलन शुरू ही हुआ था. मुझे भी अपना पैन कार्ड हफ्ता भर पहले ही मिला था. तीर काम कर गया. महिला अचकचा गयीं. बोलीं – “अप्लाई कर रखा है.”

मैने कहा – “कोई बात नहीं जी, आपके पास आईटीसीसी तो होगा? मैं आपकी सहूलियत के लिये कह रहा हूं. ले के चला कीजिये. लोगों को दिखा देंगी तो आप की बात में वजन लगेगा.”

यह पैतरा तो मैने महिला को उनकी सत्यनारायण की कथा रोकने को चला था. मुझे क्या लेना-देना था उनके इनकम टैक्स से – वे इनकम टैक्स देती हैं या उनके शौहर! पर तरीका काम कर गया. महिला ने जोर से बोलने की जगह अपने को बुदबुदाने पर सीमित कर लिया. तब तक ट्रैफिक पुलीस वाला भी डण्डा फटकारता आ गया था. उसने भी महिला से पूछा – “आप ट्रैफिक क्यों रोक रही हैं?” अब जितनी विनम्रता से मैं महिला से बोल रहा था, उतनी विनम्र वे पुलीस वाले से हो रही थीं. बात खतम हो गयी. हम लोग अपने अपने रास्ते चले गये.

इति सत्यनारायण कथा पंचमोध्याय:
अब जरा तत्व-बोध की बात हो जाये.

1. सुझाव – आप झाम में फंसें तो वार्ता को असम्बद्ध विषय (मसलन पैन नम्बर, आईटीसीसी) की तरफ ले जायें. वार्ता स्टीफेंस वाली (अवधी-भोजपुरी उच्चारण वाली नहीं) अंग्रेजी में कर सकें तो अत्युत्तम! उससे उच्च-मध्य वर्ग पर आपके अभिजात्य वाला प्रभाव पड़ता है.
2. भारत का उच्च-मध्य वर्ग का समाज अपने से नीचे के तबके से ज्यादातर चिल्लाकर, अभद्रता से ही बात करता है. आजादी के 60 साल बाद भी यह रुक्ष लोगों का देश है.
3. यह उच्च-मध्य वर्ग; पुलीस के सिपाही, सरकारी दफ्तर के चपरासी और बाबू, बिजली के लाइनमैन, डाकिया, ट्रेन के कण्डक्टर और अटेण्डेण्ट आदि से बड़ी शराफत से पेश आता है. ये लोग इस उच्च-मध्य वर्ग की नजरे इनायत पर जिन्दा नहीं हैं. वे सभी जो इस वर्ग को हल्की भी असुविधा का झटका दे सकते हैं, उनसे यह अभिजात्य वर्ग पूरी विनम्रता दिखाता है.
4. आर्थिक विकास और राजनैतिक प्रक्रिया ने बहुत परिवर्तन किये हैं. अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रति व्यवहार में बहुत सुधार आया है. पर अभी भी बहुत कुछ व्यवहारगत सुधार जरूरी हैं.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

17 thoughts on “उच्च-मध्य वर्ग की अभद्र रुक्षता

  1. दादा ये तो सामान्य सामाजिक बाते है.. इस तरह मे मामले मे ये तो आपके वाहन चालक की गलती थी वरना तो लोग गलती अपनी होते हुये जोर जोर से चिल्ला कर और अगर इलाका अपना हुआ तो भाइ आप पैसे भी देते नजर आयेगे..इसी उच्च वर्ग को .कभी अगर आपको दिल्ली के उच्च वर्ग के मुह्ल्ले जैसे फ़्रेंडस कालोनी,ग्रेटर कैलाश,जैसी जगह मे जाने का अवसर मिले और वक्त शाम का हो तो आप पार्किंग के लिये आपस मे भिडते इस वर्ग को देखे आपकी गालियो की जानकारी मे आमूल चूल परिवर्तन हो जायेगा..

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  2. जे बात तो सई हे दद्दा पन लोचा तो एकीच है। वो जे कि अपन को अंग्रेज्जी बोलना नई आता। फ़ेर का करा जाए।तो फ़ेर हम जाएं पहले कौनो “अंग्रेजी बोलना सिखावन का क्लास” ढूंढें।इस एक तकनीकी पेंच को हटा दूं तो एक एक बात सही लिखी आपने। यूं ही नही कहा जाता है कि उमर अनुभव देता है। सिखाते रहिए हुजुर अपने अनुभवों से हम बालकों को ऐसे ही!!

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  3. सभ्य: तरीक़े आपने बता ही दिये । हम ठेठ जबलपुरिया नहीं हैं, लेकिन जबलपुर में एक बात प्रचलित है आपको बताए देते हैं । कहते हैं कि अगर कहीं गाड़ी किसी से टकरा जाये तो इससे पहले कि वो आप पर सवार हो आप उस पर सवार हो जाएं, जनता भी आप ही का साथ देगी । और जबलपुरिया भाषा में कहें तो जो पहले मारे, वो सुल्ताiन । जनता भी सुनती है उसका फरमान । टीप—हम कभी ऐसा नहीं करते ।

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  4. तत्व बोध पूरा एग्रियेबल है खास कर कि अभी भी बहुत कुछ व्यवहारगत सुधार जरूरी हैं. जबरदस्त रहा यह आलेख. बधाई ले लें आज तो.

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  5. सुझाव अनुकरणीय है, पोटली बांध लिये हैं । गलती से यदि गाडी टकराये या भीड भाड में शरीर से धक्‍का लग जाये दोनों स्थिति से निपटने का तरीका यही है ।

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  6. महाशक्ति> “…क्‍या जो गाड़ी दिख रही है आपकी ही है? अगर है तो सरकारी नही होगी। :)” यह तो भद्र महिला के दो प्रतीक मैने उतारे हैं – लक्जरी कार और लेदर पर्स. मेरे पास तो साइकल भी नहीं है. बैटरी वाली साइकल खरीदने का मन बनाया था, पर बाद में लगा कि उसकी विशेष उपयोगिता नहीं होगी. सरकारी वाहन तो काम चलाऊ होता है. उससे कोई मोह भी नहीं है.

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  7. आपके लेख से कई बात सामने आ रही है- क्‍या जो गाड़ी दिख रही है आपकी ही है? अगर है तो सरकारी नही होगी। :) आपकी बात से मै सहमत हूँ और मेरी राय है कि समाज में आज जितना असभ्‍य सभ्‍य समाज है, उतना असभ्‍य नही। अपनी इन्‍टरनेट की दुनिया को ही ले लीजिऐ, गाली देने वाले भी इसी सभ्‍य शिक्षित समाज का हिस्‍सा होते है, किसी ब्‍लागर को अपशब्‍द कहने किसी झुग्‍गी छोपड़ी से कोई नही आता है। आपकी चारों बात एकदम सही है। अच्‍छा विषय चुना है।

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  8. वाह ज्ञानदत्तजी,आपने बढिया प्रजेन्स आफ़ माइन्ड दिखाया या फ़िर दूसरे शब्दों में चांस पे डांस किया । हम भी आपकी सलाह को ध्यान में रखेंगे ।

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  9. तत्वबोध धांसू हैं। बात भी जानदार। वैसे हम एक और डायलाग मार लें अगर बुरा न लगे- गले का भरपूर उपयोग वे ही लोग करते हैं जिनके गले के ऊपर वाली मंजिल खाली होती है। :)

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