मैं जॉर्ज फर्नाण्डिस को मेवरिक नेता मानता हूं. और लगभग वैसा मत ममता बैनर्जी के विषय में भी है. एक ट्रेन के उद्घाटन के सिलसिले में नवम्बर 1999 में बतौर रेल मंत्री उनका मेरे मण्डल पर आगमन हुआ था. जैसा रेल मंत्री के साथ होता है – कार्यक्रम बहुत व्यस्त था. ट्रेन को रवाना कर रेजिडेंसी में वे बहुत से लोगों से मिलीं और मीडिया को समय दिया. सारे काम में देर रात हो गयी थी. लगभग अर्ध रात्रि में उन्होने भोजन किया होगा. अगले दिन सवेरे वायुयान से हम उन्हे रवाना कर लौटे.
उस समय मेरे स्टाफ ने बताया कि ममता जी ने रात में बहुत सादा भोजन किया था. सर्विस देने वाले वेटर से उसका हालचाल पूछा था और धन्यवाद देते हुये 500/- अपने व्यक्तिगत पैसे में से दिये थे. वह वेटर बता रहा था कि आज तक किसी बड़े नेता ने ऐसा हाल नहीं पूछा और न किसी ने टिप दी.
वैसा ही ममता बैनर्जी ने कार के ड्राइवर से भी किया. ड्राइवर का हाल पूछा और व्यक्तिगत टिप दी. सामान्यत: रेल मंत्री लोग तो ईनाम घोषित करते हैं जो सरकारी तरीके से मिलता है – बाद में. उसमें सरकारी पन झलकता है – व्यक्तिगत समझ की ऊष्मा नही.
ये दोनो साधारण तबके के लोग तो ममता दी के मुरीद हो गये थे. इनके साथ ममता जी का व्यवहार तो उनके व्यक्तित्व का अंग ही रहा होगा – कोई राजनैतिक कदम नहीं. वे देश के उस भाग/शहर में कभी वोट मांगने आने से रहीं! और वे दोनो कभी उनके या उनके दल के लिये वोट देने का अवसर भी पाने वाले नहीं रहे होंगे.
मैं इस घटना को भूल चुका था; पर कल अपनी स्क्रैप-बुक देखते हुये फ्री-प्रेस में छपे इस आशय के पत्र की कतरन मुझे मिल गयी. वह पत्र मैने उस अखबार में छपे लेख – “ब्राण्ड पोजिशनिंग – ममता बैनर्जी इज लाइकली टु अपील टु द अण्डरडॉग्स” अर्थात “ब्राण्ड का बनना – ममता बैनर्जी निचले तबके को पसन्द आ सकती हैं” के विषय में प्रतिक्रिया देते हुये लिखा था. इस पत्र में मैने उक्त दोनो व्यक्तियों – वेटर और ड्राइवर का विवरण दिया था.
ममता बैनर्जी बंगाल में आजकल जैसी राजनीति कर रही हैं – उसमें मुझे समग्र जन का लाभ नजर नहीं आता. वे वाम मोर्चे के गढ़ को भेदने में बार-बार विफल रही हैं. पर यहां तो मैं उनकी एक मानवीय अच्छाई का उल्लेख भर कर रहा हूं. मुझे उनका प्रशंसक या फॉलोअर न समझ लिया जाये.
मैं अभी तन से अस्वस्थ महसूस कर रहा हूं, अत: किसी नये विषय पर सोच कर लिखने की मनस्थिति में स्वयम को नहीं पाता. पर ममता बैनर्जी का उक्त सरल व्यवहार मुझे लिखने में बिल्कुल सटीक लगा – जिसपर बिना किसी राग-द्वेष के लिखा जा सकता है. व्यवहार में अच्छाई, अच्छाई है – किसी राजनेता में हो या आपके पड़ोस में.

सच का सामना क्यों नहीं करना चाहते कुछ लोग…’निचले तबके’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए जब कुछ लोग पन्ने रंग देते हैं, तब उन्हें इस बात का ख़्याल नहीं रहता? क्यों भइया, ‘निचले तबके’ जैसे शब्दों पर क्या केवल कुछ लोगों का कॉपी राईट है?…कोई दूसरा इन शब्दों का प्रयोग करता है इतना कष्ट क्यों होता है लोगों को? शायद ऐसे लोग ‘क्रोधित’ हो जाते हैं जब उनके अलावा कोई और ऐसे विषयों पर लिखता है…ये तो किसी ‘खतम’ इंसान की मानसिकता लगती है की तुलसी तेरे थे, और रैदास हमारे….(ऐसा हुआ है, इसलिए कह रहा हूँ)जो ‘पोलिटिकली करेक्ट’ होते हैं, क्या इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते?…मेरे ख़्याल से इस्तेमाल करते हैं, इसीलिये ‘पोलिटिकली करेक्ट’ हैं…
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@ आलोक पुराणिक – ममता जी की कैल्कुलेशन काफी गलत निकल गयीं, पर सही है – भविष्य किसने देखा है. @ अनूप, संजीत, यूनुस, विष्णु बैरागी – आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
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@ रमेश जट्ट पटेल क्रोधी जी – मैने फ्री-प्रेस के लेख “ब्राण्ड पोजिशनिंग – ममता बैनर्जी इज लाइकली टु अपील टु द अण्डरडॉग्स” के अण्डरडॉग्स का अनुवाद मात्र करने का प्रयास किया है. तबके पर मुझे ज्यादा विश्वास नहीं है – वह भी तब जब कि मैं स्वयम उसी का हूं. आपके पास बेहतर शब्दानुवाद हो तो कृपया बतायें, मैं सहर्ष शब्द बदल दूंगा.
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आप जल्दी स्वस्थ हो जाये ऐसी कामना करते है।वैसे आप जब भी किसी नेता के बारे मे लिखते है तो मुझे उनका प्रशंसक या फॉलोअर न समझ लिया जाये ,ये लिखना नही भूलते है। :)
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राज नेताओं के जीवन में सतरंगी इन्द्रधनुष सदैव मौजूद रहता है । अपवादों को छोड दें तो सामान्यत: प्रत्येक राजनेता भला ही है । लेकिन अपने-अपने इलाके में, अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने के लिए उन्हें कई सारे खराब काम भी करने पडते हैं । अपने इलाके में लोकप्रिय बने रहना उनकी राजनीतिक आवश्यकता है । इतर क्षेत्रों में तो वे अपने मूल स्वभावानुसार ही आचरण करते हैं ।बहरहाल आपने ममताजी के व्यक्तित्व का अत्यधिक उजला मानवीय पक्ष सार्वजनिक कर भलमनसाहत को पुष्ट किया है । शुक्रिया ।हां, आपको बीमार होने की न तो सुविधा है और न ही छूट । स्वस्थ, प्रसन्न, सकुशल और सक्रिय बने रहना आपके लिए हम सबकी ओर से अनिवार्यता है । हमें आपसे निरन्तर ऐसी प्रेरक पोस्टें जो चाहिए ।
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ये निचला तबका क्या होता है गुरु? ’lower class’ ?क्या ये लोग किसी और ब्रीड के होते हैं?इन्सान भी होते हैं या नहीं?क्या बात है प्यारे लाल, आपके दिमाग में ये higher – lower class इतना क्यों भरा हैं?गरीब लोग क्या ’निचले’ तबके के होते हैं?अमीर लोग क्या ’ऊंचे’ तबके के होते हैं?शब्दों की अपनी एक सेन्स्टेविटि होती है, लेकिन दोस्त, आप न तो politically correct हैं, और लगता है आपको अपने ’तबके’ पर कुछ ज्यादा ही विश्चास है.भाई, जरा लिखें तो सोच के शब्दों का चयन करें… मन में चाहे कुछ सोंचे हमें ज़रा खबर नास्ति
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आप अस्वंस्था कैसे महसूस कर सकते हैं ज्ञान जी । अरे हमारी ज्ञानबिड़ी का क्याथ होगा, आप तो जानते हैं कि लत लग गई तो छुड़ाए नहीं छूटती । जो भी हो हनुमान जी का नाम लीजिये और जुट जाईये ज्ञानगंगा बहाने में । ऐसे नहीं चलेगा सर ।
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आलोक जी से सहमत!!ज्ञान जी , फ़टाफ़ट अच्छे हो जाइये और खालिस “ज्ञान” पोस्ट लिखिए!!
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अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़कर। जल्दी से चकाचक हो जाइये और लिखिये धांसू पोस्टें।
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कुछ बात है ममताजी में। कुछ गलत राजनीतिक कैलकुलेशन उन्हे डूबे। पर राजनीति में पूरा कोई कभी नहीं डूबता, जब तक टें ही ना बोल जाये। ममताजी फिर आयेंगी, ऐसी उम्मीद तो की ही जा सकती है। एक सबसे बड़ी बात उनके हक में है कि व उस तरह से भ्रष्ट नहीं हैं, जैसे कि अधिकांश नेता हैं।
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