महेश चन्द्र जी मेरे घर के पास नारायणी आश्रम में रहते हैं। वे इण्डियन टेलीफोन इण्डस्ट्री (आई टी आई) नैनी/मानिकपुर के डायरेक्टर पद से रिटायर हुये। कुछ समय बाद यहां आश्रम में साधक के रूप में आ गये। सम्भवत अपनी पत्नी के निधन के बाद।
उन्हे काम के रूप में अन्य जिम्मेदारियों के अलावा आश्रम के अस्पताल का प्रबन्धन मिला हुआ है। मेरी उनसे जान पहचान अस्पताल के प्रबन्धक के रूप में ही हुई थी। पहचान बहुत जल्दी प्रगाढ़ हो कर आत्मीयता में तब्दील हो गयी।
मेरी मां जब बीमार हुईं तो मुझे महेश जी की याद आयी। पर महेश जी ने फोन उठा कर जब यह कहा कि उनकी एन्जियोप्लास्टी हुयी है और वे स्वयं दिल्ली में अस्पताल में हैं तो मुझे धक्का सा लगा था।
अभी २६ जनवरी को मैं अस्पताल में अपनी अम्मा जी की रिपोर्ट लेने गया तो महेश जी वहां दिखे। हम बड़ी आत्मीयता से गले मिले। महेश जी बहुत दुबले हो गये थे। इस चित्र में जैसे लगते हैं उससे कहीं ज्यादा। मैं उनका हाल पूछ रहा था और वे मेरा-मेरे परिवार का। फिर वे अपनी आगे की योजनाओं के बारे में बताने लगे। उन्होंने कहा कि एन्जियोप्लास्टी एक सिगनल है संसार से वाइण्ड-अप का। पर वाइण्ड-अप का मतलब नैराश्य नहीं, शेष जीवन का नियोजित उपयोग करना है।
उन्होंने कहा कि उन्हे चिकित्सा के बाद कमजोरी है पर ऊर्जा की ऐसी कमी भी नहीं है। वे बताने लगे कि कितनी ऊर्जा है। ट्रेन से वापसी में उनके पास ऊपर की बर्थ थी। नीचे की बर्थ पर एक नौजवान था। उन्होने नौजवान से अनुरोध किया कि उनकी एन्जियोप्लास्टी हुई है, अत वे उनकी सहायता कर बर्थ बदल लें तो कृपा हो। नौजवान ने उत्तर दिया – “नो, आई एम फाइन हियर”। महेश जी ने बताया कि उन्हे यह सुन कर लगा कि उनमें ऊर्जा की ऐसी भी कमी नहीं है। साइड में पैर टेक कर वे ऊपर चढ़ गये अपनी बर्थ पर।
वे नौजवान के एटीट्यूड पर नहीं अपनी ऊर्जा पर बता रहे थे मुझसे। पर मुझे लगा कि कुछ लोगों को इस देश में क्या हो गया है? एक हृदय रोग के आपरेशन के बाद लौट रहे एक वृद्ध के प्रति इतनी भी सहानुभूति नहीं होती!
महेश जी सवेरे ६ बजे लोगों को प्राणायाम और आसन सिखाया करते थे। उन्हे भी हृदय रोग से दो-चार होना पड़ा। कुछ लोग बड़ी आसानी से कह सकते हैं कि यह प्राणायाम आदि व्यर्थ है – अगर उसके बाद भी ऐसी व्याधियां हो सकती हैं।
पर गले का केंसर रामकृष्ण परमहंस को भी हुआ था।
फिर हृदय रोग से उबरने पर व्यक्ति महेश जी जैसा रहे जिसकी नसें थक कर हार न मान चुकी हों – उसका श्रेय व्यवस्थित जीवन को दिया जाये या नहीं?
शायद कठिन हो उत्तर देना। पर महेश जी जैसा व्यक्तित्व प्रिय लगता है।
महेष जी के स्वास्थ्य के लिए मंगलकामनाएँ, अपनी माता जी का ख्याल रखें, बाकी आज कल के नौजवानो के बारे मे क्या कहा जाए ,कब कया कहे और कब क्या…… भाभी जी को मेरा प्रणाम ।
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अफसोस है उस युवा साथी पर जिसने बर्थ बदलने से इनकार किया!!महेश जी के लिए शुभकामनाएं
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ज्ञान जी उपयोगी पोस्ट है आज आपकी….. अपने पिता जी को दिखाऊंगा…..उन्हें सेवानिवृत्त हुए 3-4 साल हुए है तब से उन्होंने अपने आप को अत्यधिक बूढा और बीमार घोषित कर लिया है. जानकारी की लिए बता दूँ उन्हें सिर्फ़ ब्लड प्रेशर रहता है. महेश जी को हमारा प्रणाम !
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महेश जी को ब्लाग पढने आमंत्रित करिये। लिखने नही क्योकि यदि उन्होने कुछ निश्चल भाव से लिखा दिया तो सवाल खडे हो जायेंगे, सब टूट पडेंगे। और उन्हे फिर से दिल्ली जाना होगा। 🙂
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महेश जी के परिचय के लिये आभार.जिस युवा ने उन को बर्थ बदल के नहीं दी, उसकी अकेले की गलती नहीं है. व्यक्ति का आचारण काफी कुछ मांबाप द्वारा दी गई तालीम पर भी निर्भर करता है.
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असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है ये।महेश जी की ऊर्जा के लिये नमन।
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जिजीविषा ही जीवन को आगे ले जाती है। महेशजी को शुभकामनाएं कहें। और उनसे यह ज्ञान भी लें कि क्या वर्तमान भाव करीब चालीस से पचास रुपये के भावों पर आईटीआई में निवेश बहुत बुरा तो नहीं है। जोखिम तो है, पर फुल डुबाऊ तो नहीं है।
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Society is a conglomation of Good and Evil. Us human’s have to live our lives as best as we can.Motivation keeps us going to face each day in midst of Society this is our human saga.
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जो पैदा हुआ है, वह मरेगा। यह रुप अपने अंत की चेतावनियाँ तो देगा। जो समझ ले, समझ ले। शेष समय का उपयोग कर ले। अन्तर्वस्तु (अविनाशी) का तो काम ही है प्रत्येक रुप का उत्तम इस्तेमाल। जो करना चाहे कर ले। अमानुषीकरण प्राचीन सामाजिक रोग है। इस के दर्शन प्रेमचंद ने ‘कफन’में कराए थे। युगीन परिस्थितियों ने इस रोग को विस्तार ही दिया है।
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मुझे तो लगता है एनर्जी का संबंध आदमी के एटीट्यूड से होता है उसकी सेहत से बिलकुल नहीं महेशजी जैसे लोग प्रेरणा देते हैं…..
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