ज हां मैं रहता हूं , वह निम्न मध्यमवर्गीय मुहल्ला है। सम्बन्ध , सम्बन्धों का दिखावा , पैसा , पैसे की चाह , आदर्श , चिर्कुटई , पतन और अधपतन की जबरदस्त राग दरबारी है। कुछ दिनों से एक परिवार की आंतरिक कलह के प्रत्यक्षदर्शी हो रहे हैं हम। बात लाग – डांट से बढ़ कर सम्प्रेषण अवरोध के रास्ते होती हुई अंतत लाठी से सिर फोड़ने और अवसाद – उत्तेजना में पूर्णत अतार्किक कदमों पर चलने तक आ गयी है। अब यह तो नहीं होगा कि संस्मरणात्मक विवरण दे कर किसी घर की बात ( भले ही छद्म नाम से ) नेट पर लायें । पर बहुत समय इस सोच पर लगाया है कि यह सब से कैसे बचा जाये। उसे आपके साथ शेयर कर रहा हूं।
कुछ लोगों को यह लिखना प्रवचनात्मक आस्था चैनल लग सकता है। पर क्या किया जाये। ऐसी सोच में आस्था चैनल ही निकलेगा।
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अपनी कम , मध्यम और लम्बे समय की पैसे की जरूरतों का यथार्थपरक आकलन हमें कर लेना चाहिये।
इस आकलन को समय समय पर पुनरावलोकन से अपडेट करते रहना चाहिये। इस आकलन के आधार पर पैसे की जरूरत और उसकी उपलब्धता का कैश फ्लो स्पष्ट समझ लेना चाहिये। अगर उपलब्धता में कमी नजर आये तो आय के साधन बढ़ाने तथा आवश्यकतायें कम करने की पुख्ता योजना बनानी और लागू करनी चाहिये। जीवन में सबसे अधिक तनाव पैसे के कुप्रबन्धन से उपजते हैं।
- मितव्ययिता (फ्रूगेलिटी – frugality) न केवल बात करने के लिये अच्छा कॉंसेप्ट है वरन उसका पालन थ्रू एण्ड थ्रू होना चाहिये। हमारी आवश्यकतायें जितनी कम होंगी , हमारे तनाव और हमारे खर्च उतने ही कम होंगे। इस विषय पर तो सतत लिखा जा सकता है। फ्रूगेलिटी का अर्थ चिर्कुटई नहीं है। किसी भी प्रकार का निरर्थक खर्च उसकी परिधि में आता है।
- अपने बुजुर्गों का पूरा आदर – सम्मान करें। उनको , अगर आपको बड़े त्याग भी करने पड़ें , तो भी , समायोजित (accommodate) करने का यत्न करें। आपके त्याग में आपको जो कष्ट होगा , भगवान आपको अपनी अनुकम्पा से उसकी पूरी या कहीं अधिक भरपायी करेंगे।
- किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहें। पारिवारिक जीवन में बहुत से क्लेश किसी न किसी सदस्य की नशाखोरी की आदत से उपजते हैं। यह नशाखोरी विवेक का नाश करती है। आपकी सही निर्णय लेने की क्षमता समाप्त करती है। आपको पतन के गर्त में उतारती चली जाती है और आपको आभास भी नहीं होता।
तनाव और क्रोध दूर करने के लिये द्वन्द्व के मैनेजमेण्ट (conflict management) पर ध्यान दें। इस विषय पर मैने स्वामी बुधानन्द के लेखों से एक पावर प्वॉइण्ट शो बनाया था – क्रोध और द्वन्द्व पर विजय । आप उसे हाइपर लिंक पर या दाईं ओर के पहले स्लाइड के चित्र पर क्लिक कर डाउनलोड कर सकते हैं। यह आपको सोचने की खुराक प्रदान करेगा। इसमें स्वामी बुधानंद ने विभिन्न धर्मों की सोच का प्रयोग किया है अपने समाधान में। बाकी तो आपके अपने यत्नों पर निर्भर करता है।
बस। आज यही कहना था।
अनूप शुक्ल अभी अभी एक गम्भीर आरोप लगा कर गये हैं पिछली पोस्ट पर टिप्पणी में – “… आलोक पुराणिक हमारा कमेण्ट चुरा कर हमसे पहले चेंप देते हैं। इसकी शिकायत कहां करें?”
यह आलोक-अनूप का झगड़ा सीरियस (! :-)) लगता है। और उसके लिये अखाड़ा इस ब्लॉग को बना रहे हैं दोनो। ये ठीक बात नहीं है! :-)

पाण्डेय जी. मैं आप की तकरीबन हर पोस्ट पढता हूँ हालांकि आज तक कभी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. संभवतः आप की बातें मैं सिर्फ़ कुछ समझने-सीखने के लिए पढता हूँ…. आज पहली बार कुछ लिख रहा हूँ. ख़ुद को उपयुक्त ढंग से व्यक्त करने की कला से मैं बहुत हद तक वंचित रहा हूँ, लेकिन आज आप की बातें पढ़ कर मुझे ये दो बातें याद आ गयीं जो मेरे पिताजी मुझ से कहा करते थे :”सर्वशास्त्रपुरानेणेशु व्यासस्य वचनं ध्रुवम परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्”लेकिन फिर वे स्वयं ये भी कहते थे :”यथा खरश्चंदनभारवाही भारस्य वेत्ता न तु चंदनस्य” आप शायद समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ. मैं आज तक नहीं समझ पाया ….. कभी कभी लगता है समझने की कोशिश करना भी व्यर्थ है. लेकिन आप की पोस्ट पढ़ कर फिर सोच रहा हूँ. सादर.
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अच्छे और जरूरी सूत्र हैं। परिवार में संवाद बना रहे और विवाद सिर-फुटव्वल तक न पहुंच जाए, इसके लिए सबसे पहली शर्त है पति और पत्नी का एक दूसरे के प्रति सम्मान और समर्पण का भाव। बाकी तो दोनों ही सक्षम होते हैं कि आपसी मतभेदों को सुलझाने की सूरत निकाल लें।
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बहुत अच्छे सूत्र दिये स्वामी ज्ञानानन्द जी चौथे वाले को छोड़कर. :) आभार…काश, आस्था चैनल इसके कहीं आसपास भी होता तो देखना नहीं छोड़ना पड़ता.
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ये तो एक तरह से पारिवारिक कलह से बचने का संविधान बन गया है । चलिए इसे गली मुहल्लों में लागू कर दिया जाए । ओम शांति शांति शांति
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सभी प्रसन्न हों. सभी निरोग हों. सर्वे भवन्तु सुखं: सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्रानी पश्यन्तु …इसी की स्मृति हो आयी इसी की स्मृति हो आयी इसलिए पूछा रही हूँ -आपका अनुवाद, आलेख सटीक है
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इसे ही तो कहते हैंघर घर की कहानीहर दर की कहानीजिसमें है परेशानीढूंढ़ते सब आसानीसब कुछ है बेमानीमिलती है नादानी
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@ लावण्याजी – …क्या इसके लिए कोई संस्कृत श्लोक होगा ?मैं कह नहीं सकता। मैने तो स्वामी जी के लेख का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद किया है। लेख में श्लोक नहीं था। यह भी सम्भव हो कि मेरा अनुवाद बहुत सटीक न हो।
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” ओम , सर्वत्र गहन शांति व्याप्त हो. सभी विघ्न-बाधाओं से मुक्त हों. सभी अच्छाई को प्राप्त करें. सभी सद्विचारों से प्रेरित हों. सभी हर स्थान पर प्रफुल्लित रहें. सभी प्रसन्न हों. सभी निरोग हों. किसी को कोई दुख न हो. कुटिल व्यक्ति सदाचारी बनें. सदाचारी परमानन्द प्राप्त करें. परमानन्द उन्हें सभी बन्धनों से मुक्त कर दे. सभी मुक्त व्यक्ति दूसरों को मुक्त करें.”क्या इसके लिए कोई संस्कृत श्लोक होगा ? &” अपने उच्च और दोष रहित जीवन को दूसरों के साथ जीने से” यह वाक्य मुझे मेरे पापा जी का स्मरण करा गया धन्यवाद — बहुत अच्छी बातें बतलाने के लिए
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ये बड़ी अच्छी बाते हैं। पालन किया जाये। :)
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पांडेय जी, आप की पोस्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ….मेरा यह विश्वास और भी दृढ़ हुया कि सब कुछ चिकित्सकों के ही बस की बात नहीं है….there are so many social, cultural angles to a problem….जो कुछ भी आपने लिखा है ,अगर लोग ज़िंदगी में उतार लें तो जीवन का नक्शा ही बदल जाये।
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