मैं रोज सवेरे शाम दफ्तर आते जाते अनेक पशु-पक्षियों को देखता हूं। लोहे की जाली में या पगहे में बन्धे। उन सबका लोगों की मांग या इच्छा पर वध होना है। आज या कल। उन्होने जब जन्म लिया तो नेचुरल डेथ तक उनका जीने का अधिकार है – या नहीं? अगर है तो उनके साथContinue reading “नेचुरल जस्टिस – माई फुट!µ”
Monthly Archives: Apr 2008
विकास में भी वृक्षों को जीने का मौका मिलना चाहिये
मैने हैं कहीं बोधिसत्त्व में बात की थी वन के पशु-पक्षियों पर करुणा के विषय में। श्री पंकज अवधिया अपनी बुधवासरीय पोस्ट में आज बात कर रहे हैं लगभग उसी प्रकार की सोच वृक्षों के विषय में रखने के लिये। इसमें एक तर्क और भी है – वृक्ष कितने कीमती हैं। उन्हे बचाने के लियेContinue reading “विकास में भी वृक्षों को जीने का मौका मिलना चाहिये”
रेगुलरहा सुकुल ने दिया फेयरवेल
एक लम्बी कद-काठी के साठ वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति को गोरखपुर की रेलवे कॉलोनी में रोज सवेरे शाम घूमते देखता था। एक ही चाल से। हर मौसम में। कड़ाके की ठण्ड में भी। कोहरा इतना घना होता था कि तीन चार मीटर से ज्यादा दिखाई न दे। मैं अपने गोलू पाण्डेय (मेरा दिवंगतContinue reading “रेगुलरहा सुकुल ने दिया फेयरवेल”
