मम, जै, आगा!

नत्तू पांड़े की भाषा में शब्द कम हैं, कारक-विशेषण-सर्वनाम पिद्दी पिद्दी से हैं। क्रियायें तो वैसी हैं जैसे ऊन बुचेड़ ली गयी भेड़ हों।  पर अभिव्यक्ति बहुत है। पूरा शरीर अभिव्यक्ति का माध्यम है।

उन्हे हम गंगा किनारे ले कर गये। घर से पैदल गये नत्तू पांड़े। पहले हनूमान जी के मन्दिर पर रुके। श्रद्धा से घण्टा बजाया और मत्था टेका। टेकने के बाद जय बोली – जय जय मंकी!


रीता पाण्डेय। आज विण्टर सोल्स्टिस है। रीता का जन्मदिन।

आज दिसम्बर सोल्स्टिस है। वर्ष का सबसे छोटा दिन। सूर्य मकर चक्र के ऊपर रहता है।

आज मेरी पत्नीजी का जन्मदिन है।

उन्हे बधाई! 


हनूमान जी वानर हैं। हनूमान कहना नहीं आता तो क्या, उनकी जैकार जय जय मंकी से सम्प्रेषित हो जाती है। आप समझें, न समझें। हनूमान जी समझते हैं – शब्द भी, भावना भी।

नत्तू की भाषा में दो मुख्य देव हैं – मंकी भगवान (हनूमान जी) और बटर भगवान (कृष्ण जी)। दोनो ने अपने प्रति किये गये शब्दप्रयोग पर आपत्ति नहीं की है।

हनूमान मन्दिर से आगे चल कर शिवकुटी घाट की सीढ़ियां थोड़ी सहायता से उतरे नत्तू पांड़े – अपने गोलमटोल शरीर के कारण। और सीढ़ियों की ऊचाई इतनी है कि बड़ों को भी आसान नहीं लगती उनकी चढ़ाई/उतराई। इसी लिये वहां एक रैम्प बन रहा है। सीढ़ियां उतरने के बाद गंगा की धारा लगभग 400-500 मीटर दूर है। उतना पैदल चले माननीय भावी प्रधानमंत्री जी। रास्ते में एक ओर लोगों द्वारा फेंकी पुरानी मूर्तियां थीं। वहां वे अपनी माँ की उंगली छुड़ा कर मत्था टेकने लगे – जय गन्नू!

गन्नू यानी गणेश जी। विवस्वान पाण्डेय (नत्तू) को अपनी कायानुकूल देव अच्छे लगते हैं। हनूमान जी भी और गणेश जी भी! क्या हुआ जो गणेश से गन्नू बन गये नत्तू की भाषा में। नाती से वे भी तो नत्तू बन गये हैं। 😆

गंगा तीर पर तो नत्तू अभिभूत से दिख रहे थे। अहा के भाव में बोले – मम! जै! आगा!

इसका हिन्दी अनुवाद नत्तू की माई ने किया। मम यानी पानी यानी गंगाजी। जै कहने में गंगाजी की स्तुति का भाव। आगा का अर्थ है – मैं आ गया!

अर्थात हे गंगा माई, तुम्हारी जय हो! मैं तुम्हारे पास आ गया हूं!

मम, जै, आगा!

हमारे साहित्यकार गंगाजी के प्रति श्रद्धाभाव दर्शाने को गज भर का लेख ठेल बैठेंगे। फिर भी वह भाव न आयेगा जो इस वाक्य में आया – मम, जै, आगा!

वापसी के लिये तैयार नहीं हो रहे थे नत्तू गंगा तट से। घसीट कर लाये गये। आधे रास्ते से नारा लगाने लगे – मामा, थक! अर्थात मां, थक गया हूं, पैदल नहीं चलूंगा, गोदी उठा लो!

मैं जानता था कि नत्तू एक तरफ तो चले जायेंगे, वापसी में अंगद सिण्ड्रॉम (अंगद कहइ जाउँ मैं पारा, जियँ संसय कछु फिरती बाराका प्रदर्शन करेंगे। खैर, कभी पौधे, कभी पिग, कभी बकरी, कभी भगवान के नाम पर बहला कर उनसे वापसी पैदल करवा ही ली गयी। घाट की सीढ़ियों की बजाय वे रैम्प से ऊपर चढ़े। कोटेश्वर महादेव के मन्दिर में घण्टा भी बजाया और शिव जी की परिक्रमा भी की।

एक छोटे से पिलवा को घर ले चलने की जिद भी करने लगे। किसी तरह घर लौटे तो थकने के कारण तीन घण्टा सोये।

अब, जब मैं यह लिख रहा हूं, वे उठ कर घर के लोगों के पुराण जैसा कुछ बखान रहे हैं।

मम, जै, आगा!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

27 thoughts on “मम, जै, आगा!

  1. मौलाना रूम ने अपनी मसनवी शुरू की थी तो पहली पंक्तियों का भावार्थ यह था कि ’उसके नाम से शुरू करता हूँ जिसका कोई नाम नहीं, लेकिन जिसे किसी भी नाम से पुकारा जाये तो वह समझता है।’ मंकी भगवान कहें या जय गन्नू, भक्त और भगवान के बीच की बात है, भाषा के मुकाबले भाव ज्यादा भारी होते हैं।
    मिसेज़ पाण्डेय के जन्मदिन पर आप सबको बधाई।

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  2. दिल छू लिया इस लेख ने।
    नत्तु को हमारा आशीष।
    रीताजी को बधाई
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  3. मम, जै, आगा!
    अर्थात हे गंगा माई, तुम्हारी जय हो! मैं तुम्हारे पास आ गया हूं!

    नत्‍तू पांडेय जब प्रधान मंत्री बनेगा तो लंबे लंबे भाषण देना होगा .. इसलिए अभी छोटे वाक्‍यों में बात समाप्‍त करता है .. समझा कीजिए !!
    नत्‍तू पांडेय जी की नानी जी को जन्‍म दिन की शुभकामनाएं !!

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  4. मम् जै। आगा से आप अनुमान लगा सकते हैं कि विकसित होते मानव की भाषा जरूर इस सोपान से गुजरी होगी।
    भाभी जी के जन्म दिन की भाभी जी और आप को बधाई!

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