नत्तू पांड़े और प्रसन्नता

कचरे की टोकरी से कौतुक करते गोल-मटोल नत्तू पांड़े।

मेरी बिटिया और मेरा नाती विवस्वान (नत्तू पांड़े) यहां हमारे पास एक महीना रहे। वह महीना भर प्रसन्नता का दौर रहा। मेरी पत्नीजी को सामान्य से कहीं अधिक काम करना पड़ता था, पर मुझे कभी यह नहीं लगा कि वह उनको बोझ लग रहा था। मेरी बिटिया ने मेरे लड़के को उसके कमरे से बेदखल कर दिया था (उस कमरे में वह और नत्तू पांड़े जम गये थे!)। पर मेरे लड़के को कोई कष्ट नहीं था। विवस्वान मेरे लैपटॉप, प्रिण्टर, कागज, किताबें और  घर में बने मेरे होम-ऑफिस के कोने से छेड़ छाड़ करता था। पर वह मैं सहर्ष सह ले रहा था।

यह सब हो रहा था प्रसन्नता के साथ।

प्रसन्नता क्या होती है?

अन्य चीजें बराबर हों तो परिवार प्रसन्नता देता है। हां, वास्तव में।

मैने कहीं पढ़ा था कि इस समय जो पीढ़ी अधेड़ हो रही है, जो पर्याप्त आर्थिक स्वतंत्रता हासिल कर चुकी है, जिसने इतना जोड़ लिया है कि वह अपने वृद्धावस्था और स्वास्थ्य के लिये खर्च करने में सक्षम है, वह नहीं चाहती कि अपने नाती-पोतों को पाले जिससे कि उनके बेटा-बहू नौकरी कर सकें। शहरी अपर मिडिल क्लास में यह द्वन्द्व चल रहा है। बहू यह सोचती है कि सास ससुर उसके बच्चों को देखने का पारम्परिक धर्म नहीं निभा रहे। सास ससुर मान रहे हैं कि पूरी जिन्दगी मेहनत करने के बाद अब उनके पास अपना समय आया है जिसे वे अपने हिसाब से खर्च कर सकें – घूमने, फिरने, पुस्तकें पढ़ने या संगीत आदि में। वे एक और जेनरेशन पालने की ड्रज़री नहीं ओढ़ना चाहते।

पारिवारिक समीकरण बदल रहे हैं। पर इस बदलते समीकरण में न तो बहू-बेटा प्रसन्न रहेंगे, न नाती-पोते और न बाबा-दादी। आधुनिकता में प्रसन्नता केजुयेलिटी होगी/रही है।

परिवार टूट रहे हैं। लोग स्वतंत्रता अनुभव कर रहे हैं। भाई, बहन भतीजे, पड़ोसी, दूसरे शहर में काम करता रिश्तेदार या अमरीके में बसा सम्बन्धी अलग थलग होते जा रहे हैं। कई से तो हम कई दशकों से नहीं मिले। फोन आ जाता है तो दस बार “और क्या हालचाल है” पूछने के अलावा गर्मजोशी के शब्द नहीं होते हमारे पास।

हम पैराडाइज़ में अपनी न्यूक्लियर फैमिली के साथ दो-तीन हजार का लंच कर खुश हो लेते हैं। पर उसी दो-तीन हजार में एक्टेण्डेड फैमिली के साथ कम्पनीबाग में छोले-भटूरे खाने की प्रसन्नता खोते जा रहे हैं।

प्रसन्नता के घटकों में परिवार प्रमुख इकाई है। शायद हां। शायद नहीं।

कुछ और सोचा जाये। या आप बतायेंगे?


नत्तू पांड़े संवाद, जो कविता हो सकता है –

मामा बॉल
धपाक
माथा फूट
हम गिल
एते
चोट्ट
मामा पोंपों सुई
पैले

(मामा ने बॉल फेंकी, जो धपाक से मेरे माथे पर लगी। माथा फूट गया। मैं गिर पड़ा। ऐसे चोट लगी। मामा को उसकी तशरीफ पर सूई लगा दो बतौर पनिशमेण्ट, पहले! )



मेक्सिको और प्रसन्नता –

मेक्सिको की दशा भारत/पूर्वांचल/बिहार से मिलती जुलती है। पर वहां के लोग विश्व के प्रसन्नतम लोगों में हैं। नेशनल जियोग्राफिक की डान बटनर की लिखी पुस्तक का अंश में उद्धृत कर रहा हूं –

कोई मुगालता न रखें, मॉटेरे, मेक्सिको  में और आसपास गम्भीर समस्यायें हैं। बहुत से गांवों में बच्चे कुपोषण और शिक्षा की कमी से पीड़ित हैं। कुशल और प्रतिभावान आदमी और औरतें शराब  और जींस बनाने की फैक्टरी  में काम करने को अभिशप्त हैं। उनकी आकान्क्षायें और स्वप्न धूमिल हो रहे हैं। जो अधिक दुर्भाग्यशाली हैं, वे सोचते हैं कि परिवार छोड़ कर दूर सन्युक्त राज्य अमेरिका चले जायें काम धन्धे की तलाश में। तब भी, सारी बाधाओं – बढ़े हुये भ्रष्टाचार, कम विकास और सवालों के घेरे में आती शासन व्यवस्था – के बावजूद ये मेक्सिको वासी प्रसन्नता की सम्पदा का आशीर्वाद पाये हुये लोग हैं।

और कारण क्या हैं इनकी प्रसन्नता के? डान बटनर इस प्रसन्नता के कारण बताते हैं –

  1. सूर्य की रोशनी की बहुतायत।
  2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भावना।
  3. नैसर्गिक हास्य। अपने आप पर, बढ़े टेक्स पर और यहां तक कि मौत पर भी हंस लेने की वृत्ति। 
  4. बस कामचलाऊ पैसा। 
  5. धार्मिकता। 
  6. बहुत अधिक सामाजिकता। 
  7. परिवार को सबसे ज्यादा प्राथमिकता। और
  8. अपने आस पास की अच्छाई पर संतोष 

परोक्ष रूप से, और शायद सीधे सीधे भी, प्रसन्नता के मामले में बहुत कुछ कहे जाने की आवश्यकता/सम्भावना है।

Advertisement

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

28 thoughts on “नत्तू पांड़े और प्रसन्नता

  1. “प्रसन्नता” यह तो ‘अन्दर की बात’ है. उसे पारिभाषित करना कुछ कठिन सा है. आप प्रसन्न रहें. बुढ़ाती पीढ़ी आपसे अपेक्षाएं रखती है.

    Like

  2. प्रसन्नता के घटकों में परिवार प्रमुख इकाई है। शायद हां।

    पक्का हाँ, छोटे कस्बों में भी खुशियाँ भरपूर होती हीं.

    Like

  3. गंगा के चित्रों के साथ साथ हम नत्तू पांडे के चित्रों का भी आनंद उठाना चाहते है।
    कृपया आगे भी उसकी तसवीरें पोस्ट करते रहिए।

    हमारे यहाँ बेटी की शादी हुए दस साल हो गए हैं
    अपना नत्तू पांडे का अभी तक इन्तजार है।
    ईश्वर की मर्जी।
    बेटा केवल पच्चीस साल का है और अभी उसकी शादी तो दूर की बात रही।
    (आजकल Oxford में DPhil में व्यस्त है)

    देखते हैं हमारे भाग्य में क्या लिखा है।
    नत्तू पांडे के नियमित updates देते रहिएगा।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

    Like

    1. भगवान से कामना है कि आपका इंतजार जल्दी शुभ सूचना में बदले। शुभकामनायें।

      Like

  4. जहाँ से मनुष्य ने यात्रा आरंभ की वहाँ परिवार समाज ही नहीं दुनिया था। अतिरिक्त उत्पादन और विनिमय ने इसे तोड़ना आरंभ किया। वह टूटे जा रहा है। एकल परिवार की स्थितियाँ बन गई हैं। आगे वृद्ध वृद्धाश्रम में और बच्चे बोर्डिंग में जा रहे हैं। आगे मनुष्य क्या रूप लेगा? कल्पना कीजिए, कयास लगाइए। शायद फिर से कम्यून? जैसा वह आरंभ में था, उस से एक सीढ़ी ऊपर।
    मनुष्य प्रसन्नता के बिना जी नहीं सकता। वह नारकीय परिस्थितियों में भी प्रसन्नता तलाश लेता है। तब भी जब उसे फाँसी दी जा रही हो।

    Like

  5. नत्तू पाण्डेय की कविता में किसी ललित चित्र का सा आनन्द है। आप उनकी कविताओं में चित्र जोड़कर बाल-साहित्य की पुस्तक छपवा सकते हैं। (वैसे यदि कोई राजनीतिक घालमेल करना जानते होते तो “सबसे छोटे कवि” टाइप कोई सरकारी पुरस्कार भी दिलवा सकते हैं, लेकिन वहाँ शायद तक आप सरीखे सरल दिमाग़ पहुँच ही नहीं सकते – इसलिये इस खण्ड को सदन की कार्यवाही में शामिल न माना जाये। वैसे “इंडिया अगेंस्ट करप्शन” और “पुरस्कार की बधाई” टाइप टिप्पणियों के लिये हम भारतीय बड़े दिलदार हैं)

    कुछ समय के लिये बच्चे की ज़िम्मेदारी लेना और बात है और बेटे बहू द्वारा अपने माता-पिता को फ़ुल-टाइम बेबीसिटर मानकर अपनी नौकरी के अलावा सारी जैविक-सामाजिक विमोचन, किटी-पार्टियाँ आदि के लिये मुक्त हो जाना दूसरी ही बात है। इसमें मैं रिटायर्ड माता-पिता की ओर खड़ा हूँ। बच्चे आपके हैं तो पहली ज़िम्मेदारी भी आपकी ही है, यह समझने/कहने के लिये मैं दादा बनने तक इंतज़ार नहीं करूंगा। लेकिन बात फिर वही है, “इंडिया इज़ मोर अगेस्ट करप्शन दैन एनीथिंग एल्स – दैट्स ऑवर कैरेक्टर।” दूसरे शब्दों में, “आरक्षण अच्छा है यदि मुझे मिलता है, बुरा है यदि उसे मिलता है”

    एक प्रसिद्ध शैफ़ को कहते सुना था कि शाकाहारी लोग भोजन के स्वाद के एक बड़े भाग से वंचित हैं। कुछ साल बाद उसने भारत घूमा और तब आश्चर्य से बोला, शाकाहारी भोजन इतना स्वादिष्ट हो सकता है, मैं इस अब तक इस अहसास से ही वंचित रहा था। न जाने क्यों ऐसा लगता है कि बटनर ने भी अभी तक भारत, नेपाल, भूटान आदि की यात्रा नहीं की है!

    [बातें और भी हैं लेकिन टिप्पणी पहले ही काफ़ी लम्बी हो चुकी है और अभी मेरे पास भी कई डैडलाइंस हैं, सो फिर कभी]

    Like

    1. टिप्पणी की लंबाई से चिंतित न हो।
      हम यहाँ केवल ब्लॉग पढने नहीं आते, टिप्प्णियों का भी आनंद उठाने आते है।
      लंबी टिप्पणियाँ पढकर ऐसा लगता है हमने एक नहीं कई ब्लॉग पोस्टें पढीं।
      शुभकामनाएं
      जी विश्वनाथ

      Like

    2. बुढ़ाती पीढ़ी की जरूरतें और कर्तव्य पर बहुत कुछ लिखने का मेरा भी मन है। उसकी ओर अग्रसर जो हूं!

      आपकी विशद टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

      Like

  6. तोल्स्तोय ने लिखा है, “Happy families are all alike; every unhappy family is unhappy in its own way.”
    सुखी परिवारों पर यह बात सही उतरती है. समीकरणों का संतुलन में रहना ज़रूरी है.

    Like

  7. हम पैराडाइज़ में अपनी न्यूक्लियर फैमिली के साथ दो-तीन हजार का लंच कर खुश हो लेते हैं। पर उसी दो-तीन हजार में एक्टेण्डेड फैमिली के साथ कम्पनीबाग में छोले-भटूरे खाने की प्रसन्नता खोते जा रहे हैं।

    साथ बैठकर किया भोजन शारीरिक के साथ मानसिक स्वास्थ्य भी बढ़ाता है।

    बटनर जी के ८ सूत्रों पर सहमति, २-३ और जोड़ना चाहूँगा…

    Like

    1. बटनर ने मेक्सिको के अलावा डेनमार्क, सिंगापुर, सान लुई ओबिस्पो की यात्रा भी की है और वहां के मिले प्रसन्नता के सूत्र भिन्न हैं।
      कुल मिला कर जो निकलता है, वह ध्यान देने योग्य होगा।
      किताब के अंतिम पन्ने वह बतायेंगे।

      Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: