जोगी बाबा – सिद्धिनाथ मन्दिर का साधू और अनाथ गौवंश को पालनेवाला

नाम है राजकुमारनाथ योगी। लोग जोगी बाबा कहते हैं। कुछ वैसा ही जैसे मुख्य मन्त्री जी हैं आदित्यनाथ योगी।

आदित्यनाथ की तरह राजकुमार नाथ भी नाथपन्थी साधू है। सारंगी बजा कर भिक्षा मांगने वाला।

आदित्यनाथ की तरह यह साधू भी लगभग 45-46 साल का है।

यह पोस्ट 27.12.2017 के दिन फेसबुक नोट्स पर मैने लिखी थी। अब महराजगंज के डा. ओम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि और व्यवस्थित हो गई है जोगीबाबा की गौशाला। अब वहां शेड है। पच्चीस पशु हैं। उस जगह को पुन: देखने का मन है। मैं एक दो दिन में वहां फिर जाऊंगा। उससे पहले यह पोस्ट दे रहा हूं ब्लॉग पर।

और भी समानता है आदित्यनाथ योगी से। फक्कड़ है। दुनियां से नाता है और नहीं भी। अपने बूते पर अपनी आर्थिक-सामाजिक दशा से कहीं अधिक और कहीं विलक्षण कृत्य करने वाला। ग्रेट अचीवर!

पिछले दो साल से इस इलाके में साइकिल से घूम रहा हूं मैं, पर राजकुमारनाथ (जोगी बाबा) जैसा विलक्षण व्यक्ति नहीं पाया मैने।

राजकुमारनाथ योगी।

पुराना है सिद्धिनाथ मन्दिर। शिव मन्दिर। गंगाजी के किनारे गगरांव (जिला मिर्जापुर) नामक गांव में। औसत आकार का गांव और उसके किनारे टीले पर बना मन्दिर। पहले वृक्षों से ढंका रहा होगा। अब कुछ कम हो गये हैं पेड़, पर फिर भी बहुत हैं। गंगा तट से करीब 100-150 कदम दूर। मन्दिर के नीचे ढलान है। बरसात में नीचे का सारा इलाका डूब में आ जाता होगा गंगा के पानी में।

सिद्धिनाथ मन्दिर।

सिद्धिनाथ मन्दिर में पहले कोई साधू टिक कर रहा नहीं। करीब सात साल पहले ये जोगी बाबा आये और यहीं रह गये। इन्होने शिव मन्दिर के सामने उसी परिसर में रामजानकी मन्दिर बनवाया।

यद्यपि राजकुमारनाथ की बड़ी भूमिका रही होगी 3-4 साल पहले यह रामजानकी मन्दिर बनवाने में; पर उनका निरपेक्ष भाव सी कहना है – रामजानकी मन्दिर की सोच तो यहां बहुत पहले से थी। बस, मेरे समय में लोगों ने सहयोग दिया और अपने आप बन गया मन्दिर। सहयोग देने वाले लोगों के नाम भी बताते हैं जोगी बाबा – लल्ला दुबे, कृष्णकान्त दुबे… डा. ओमप्रकाश त्रिपाठी।

रामजानकी मन्दिर।

मन्दिर बनने के बाद शायद अन्तर्मन में प्रेरणा आयी होगी अनाथ गायों/बछड़ों को पालने की। अकेले दम बाबा ने वह प्रारम्भ किया। मुझे दिखाया एक गाय को – यह पहली गाय है इस गौशाला की।

बाबा जोगी ने बताया कि उस गाय के मालिक ने उसे कसाई को बेच दिया था। “फिर जाने क्या उसके मन में आया कि मुझे आ कर बता दिया ’लेने वाले ने पैसे तो दे दिये हैं पर एक दो दिन में ले जायेगा। लगता है कटने को जायेगी यह गाय’”

बाबा जोगी उस गाय को बचा लाये सिद्धिनाथ परिसर में। बेचने वाले ने पैसे भी वापस कर दिये खरीददार को। अब यह गाय दो बार ब्या चुकी है। इसका बछड़ा है – गंगा। इस गाय के बाद मानो रास्ता खुल गया। कई गायें बचा कर लाई गयीं। कई बीमार थीं। उनका दवा-दारू भी हुआ। छ सात तो बच नहीं पायीं। कुछ बच गईं। अब सोलह गाय-बछड़े हैं यहां। लोग आ कर खबर देते हैं कि कहां गाय अनाथ है या कहां कसाई को जाने वाली है। कई बार समझाने से और कई बार दबाव देने से गाय/बछड़े कसाई के पास जाने से बचा लिये गये।

मन्दिर की ढलान वाली जमीन पर रखी गायें।


आस पास के लोग गौशाला में सहयोग देते हैं। इस मौसम में चारा (पुआल) बहुत मिल गया है। करीब 15-20 ट्रॉली मिल गया। समस्या लाने की होती है। देने वाला चारा तो दे देता है पर उसे लाने की व्यवस्था के लिये तो पैसे चाहियें। कुछ लोग पैसे से भी सहायता करते हैं। पर बाबा से बात कर लगा कि पैसे देने में उतना मुक्तहस्त नहीं है यह ग्रामीण इलाका। पैसे की जरूरत बीमार पशुओं की दवा-चिकित्सा में भी होती है। महराजगंज के पास के एक पशु चिकित्सक अच्छे हैं। “लोग उन्हें मारुति के नाम से पुकारते हैं। असल नाम कुछ और होगा।” बुलाने पर चले आते हैं। अपनी फीस भी बहुत कम कर लेते हैं। पर दवाओं की कीमत तो लगती ही है। इसके अलावा बाबा को लगता है कि चारा तो मिल जाता है दान में, पर पौष्टिक आहार – चूनी-चोकर आदि के लिये तो पैसा चाहिये। कम से कम गाभिन या दुधारू गायों को तो उसकी जरूरत है। वह इन्तजाम पैसे की तंगी में नहीं हो पाता।

कसाई से बचाई गई पहली गाय।


राजकुमारनाथ जी मुझे सभी गाय-गोरुओं के पास ले जाते हैं। कोई विधिवत बनाई गयी गौशाला नहीं है। डूब क्षेत्र की ढलवां जमीन पर पेड़ों की छाया में रखे हैं पशु। सर्दी से बचने के लिये कुछ हिस्से में पतला तिरपाल सा बांध दिया है। हर एक पशु की अपनी कहानी है। कोई बहेतू घूम रहा था, कोई पीट पीट कर गड्ढे में धकेला मिला। कोई बहुत बीमार था… कई तो लाये, पांच सात सौ की दवाई भी की पर सेवा के बावजूद चल बसे। पर जो हैं, वो अच्छी दशा में दिखे। यह साफ लग रहा था कि उनकी प्रेम से देखभाल की जाती है।

बाबा की कुटिया में गंगा, जुम्मन और महाबली।

जो पशु छोटे हैं या यहीं जन्मे, उनके नाम भी रखे हैं बाबा जोगी ने – गंगा, जुम्मन, मंगरू, डमरू, रामलाल, श्यामलाल। नाम पुकारने पर वे समझते हैं और प्रतिक्रिया देते हैं। एक कुत्ता है, उसका नाम रखा है महाबली। महाबली बुलाने पर दूर से दौड़ा चला आता है दुम हिलाता।

व्यवस्थित गौशाला के विषय में परिकल्पना है बाबा के मन में – चारे/भूसे का घर; गायों के लिये शेड; पानी – भोजन की व्यवस्था… अभी तो मन्दिर के चांपाकल से करीब 50 बाल्टी पानी बाबा को ले कर रोज जाना होता है ढलान पर पशुओं को पिलाने के लिये।

आसपास जब तक लोगों के खेत में फसल है, चरने के लिये छोड़ा नहीं जा सकता गायों को। अत: मेहनत ज्यादा करनी होती है उनके साथ।


राजकुमार नाथ योगी से उनके बारे में पूछता हूं। गाजीपुर में बद्धूपुर गांव के रहने वाले हैं। घर में साधू बन जाने की परम्परा रही। उनके बड़े पिताजी (ताऊजी) साधू हो गये थे। बचपन में ही राजकुमारनाथ भी घर से निकल गये। सलेमपुर (देवरिया के पास) एक नाथ पन्थी बाबा मिल गये| उन्होने शिष्य बना लिया। उनके साथ सारंगी बजाते मांगते खाते थे। करीब 12 साल रहे बाबा के साथ। मरते समय बाबा ने सारंगी इन्हे दे दी। इस इलाके में आने पर कई आश्रमों में रहे – जगतानन्द धाम में, कोलाहलपुर में…। तीन बार अपनी भिक्षा से भण्डारे किये – गाज़ीपुर, कमहरिया और कोलाहलपुर में। बताया “भण्डारा कर मैने नाथपन्थी जोगी का कोर्स पूरा कर लिया है।“

सात आठ साल से इस इलाके में हैं बाबा जोगी।

बाबा ने बताया कि सारंगी, ढोलक, हरमुनियां आदि सब सामान है भजन कीर्तन का उनके पास। सारंगी में थोड़ा रिपेयर कराना है। करीब हजार रुपया लगेगा। तांत और चमड़ा चूहों ने काट दिया है। जब ठीक करा लेंगे तो मुझे सारंगी के साथ गा कर बतायेंगे।…

मुझे लगा कि अगर पैसा हाथ लगा भी तो उनके मिशन – गौशाला के काम में लग जायेगा। सारंगी का नम्बर तो लगना कठिन है!


बाबा के पास आसपास के लोग आते हैं। सेवा में सहयोग देते हैं। मुझे लगा कि उनके लिये आकर्षण भी है यहां आने का। बाबा उन्हें चाय पिलाते हैं। एक दो गायें दूध देने वाली हैं। उनसे उतना ही दूध दुहते हैं, जितना चाय के लिये चाहिये, बाकी बछड़े/बछिया को पीने देते हैं।

मैं तीन बार वहां गया हूं। तीनों बार मुझे चाय पिलाई बाबा ने।

यह लकड़ी की धूनी हमेशा जलती है। भगौने में मेरे लिये चाय बनाते बाबा जोगी।

चाय के अलावा लोगों के आने-जुटने का दूसरा आकर्षण है चिलम! गांजे का एक दो कश ही पर्याप्त हैं लोगों को सेवावृत्ति से जोड़ने के लिये। … मैं बाबा की चिलम की वृत्ति को अनदेखा करता हूं। मन में याद करता हूं शेगांव के गजानन महराज की चिलम से धुआं निकालती तस्वीर की। भोलेनाथ का प्रसाद है यह!


राजकुमार योगी मेरे साथ अकेले हैं। अब मैं उनसे पूछता हूं – कभी इस सब काम से ऊब नहीं होती?

बाबा जवाब देते हैं – नहीं, ऊब काहे होगी?

फिर कुछ सोच कर बोलते हैं – रात में यहां कोई नहीं रहता। अकेले में; अंधेरे में कभी कभी सोचता हूं। अपनी ताकत समझ नहीं आती। जाने कहां से आती है ये ताकत! बस यह लगता है कि और गायें हों। कितनी और गायों को बचा पाऊं। देखभाल कर पाऊं।

सीधा सरल साधू! कोई प्रपंच नहीं। कोई विद्वता झाड़ने का राग भी नहीं। गौवंश की सेवा का मिशन। बहुत प्रिय लगते हैं राजकुमारनाथ योगी मुझे। मैं उन्हे कुछ पैसा देता हूं गायों के लिये और मन में विचार करता हूं कि आगे क्या कर सकता हूं…

बाबा भी मेरी मनस्थिति समझते हैं – आप ऐसे ही आते रहा करें।


फरवरी 2019 का अपडेट – सवा साल से उस स्थान पर जाना नहीं हुआ। मौसम और फिर मेरे घुटनों का दर्द। इसके अलावा अन्य रोचक स्थान आसपास मिलते रहे। अगियाबीर में पुरातत्व खुदाई को देखने से अपने को जोड़ लिया… बीच में कई बार मन हुआ कि जोगीबाबा की गौशाला हो कर आया जाये; पर फिर यह सोचा कि जब इलेक्ट्रिक साइकिल खरीद लूंगा, तब वहां तक का चक्कर लगाया करूंगा। वह साइकिल खरीदना बना नहीं।

अब सोच रहा हूं कि एक दो दिन में वहां हो आऊं। जोगीबाबा अपने काम में दृढ़ता से जुटे हैं और वहां विस्तार भी हुआ है – ऐसा ओमप्रकाश त्रिपाठी जी ने बताया। वह सब आंखों देखूंगा।



Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “जोगी बाबा – सिद्धिनाथ मन्दिर का साधू और अनाथ गौवंश को पालनेवाला

    1. I couldn’t contact him. My fault. Will try meeting and asking him about it. He definitely needs help. He is short of hands. Gets adequate चारा in charity but doesn’t have money for cartage and other items..

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  1. मैं ग्रामीण परिवेश को बहुत पसन्द करता हूं । भाइयों में जमीन और संम्पत्ति बटवारे के बाद मेरे िहस्से मे शहर की सम्पत्ति मिली , इस कारण अपना गांव तो छूट गया, लेकिन मैं अब अपनें दोस्तों के गांवों में जाता हंू । वहां ऐसे ही नजारे देखकर बहुत मन रमता है ।

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