स्वर्ण प्राशन – आयुर्वेदिक वैक्सीनेशन पद्धति और तिवारी दंपति का अभियान


वे दोनों डाक्टर हैं. एक एलोपैथी के – डा. संतोष तिवारी. बच्चों के डाक्टर हैं और सूर्या ट्रॉमा सेंटर में वरिष्ठ कंसल्टेंट हैं. उनकी पत्नी हैं डा. शर्मिला तिवारी. वे आयुर्वेद की डाक्टर हैं – बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी. दोनों में प्रोफेशनल तरीके से छत्तीस का आंकड़ा होना चाहिए. मैंने पहले किसी एलोपैथी वाले और आयुर्वेदिक डाक्टर में हार्मोनी नहीं देखी. ताराशंकर बंद्योपाध्याय का उपन्यास “आरोग्य निकेतन” इन दोनों चिकित्सा पद्धतियों के झगड़े की पृष्टभूमि में लिखी गई कालजयी रचना है.

पर इस दम्पति ने यह अलग विधाओं का झगड़ा मिटा दिया है. और उसमें आयुर्वेद विनर है. दोनों पति पत्नी स्वर्ण प्राशन नामक आयुर्वेदिक इम्यूनोलॉजिकल सिस्टम की उपयोगिता पर न केवल सहमत हैं वरन उसके प्रचार प्रसार के लिए अपनी बहुत सी ऊर्जा लगा रहे हैं.

डा. संतोष से मैं सूर्या ट्रॉमा सेंटर (जहां आजकल अपने पिताजी के इलाज के सन्दर्भ में हूँ) में मिला. वे स्वर्ण प्राशन के कॉन्सेप्ट से परिचित थे पर आयुर्वेदिक पद्धति का होने के कारण उस पर ध्यान नहीं दिया था. जब अपनी बिरादरी के डाक्टरों की एक कांफ्रेंस में इसकी एक सज्जन ने चर्चा की तो इस भारतीय विरासत की ओर उनका रुझान बना.

काफी जांच परख के बाद संतुष्ट होकर, संतोष और शर्मिला जी ने वाराणसी में अपने सूर्या चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के माध्यम से, इस इम्यूनोलॉजिकल प्रणाली को बतौर अभियान अपनाने का निश्चय किया.

डा. संतोष और शर्मिला तिवारी. उनका वाराणसी स्थित चिल्ड्रन अस्पताल

स्वर्ण प्राशन के बारे में मैंने अपने उज्जैन के आयुर्वेद के पीएचडी मित्र डा. प्रज्ञान त्रिपाठी से भी पता किया. उन्होंने भी सहमति व्यक्त की कि यह प्राचीन पद्धति है. मनुष्य के 16 संस्कारों में इसे स्थान दिया गया है. आयुर्वेद के अनुसार राजा का यह कर्तव्य होता था कि वह राज वैद्य की देख रेख में स्वर्ण भस्म का उत्पादन कराये. राज वैद्य राज्य के 16 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को पुष्य नक्षत्र के दिन (27 दिन में एक बार आने वाला दिन) यह भस्म चटाया करते थे. 16 वर्ष की उम्र तक 24 खुराक हर बच्चे को देने का विधान था. इसके दिए जाने पर बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती थी और उसकी मेधा शक्ति का विकास होता था.

डा. संतोष और शर्मिला तिवारी ने 2017 में अपने अस्पताल में इस भस्म को बच्चों को देने का कार्यक्रम प्रारंभ किया. 13 जनवरी 2017 के दिन 100 के लगभग बच्चे पंजीकृत थे यह दवा देने के लिए, पर आए 173. उनको स्वर्ण भस्म घी में मिश्रित कर चटाई गई. बच्चों की संख्या बढ़ती गयी और तिवारी दंपति का उत्साहवर्धन भी होता गया इस अभियान में. आज इस दवा के लिए 1600 बच्चे पंजीकृत हैं. ये मुख्यतः उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग और बिहार के बच्चे हैं.

शुरू में अभियान के प्रचार प्रसार के लिए इन्होंने विज्ञापन का भी सहारा लिया. कालांतर में दवा की उपयोगिता लोगों को स्वयं समझ में आने लगी.

डा. संतोष तिवारी ने मुझे बताया कि यह दवा धूतपापेश्वर नामक आयुर्वेदिक कम्पनी बनाती है. वेब सर्च में पता चलता है कि यह ऑनलाइन भी उपलब्ध है. पर इस दवा को बच्चे को देने का भी एक विधान है. यह घी में मिश्रित कर चटाई जाती है पुष्य नक्षत्र के दिन.

तिवारी दंपति स्वर्ण भस्म धूतपापेश्वर से लेते हैं और ब्राह्मीघृत नागार्जुन औषधालय से. पुष्य नक्षत्र के दिन जितने बच्चे आने वाले हों, उनके अनुपात में इन दोनों दवाओं का मिश्रण कर टाइट्रेशन किया जाता है. उससे प्राप्त औषधि 1 से 4 मिलीलीटर मात्रा में प्रत्येक बच्चे को चटाई जाती है.

आप डा. शर्मिला तिवारी के एक वीडियो 👇 को देखने का कष्ट करें.



यह अभियान कितना कारगर है?

डा. संतोष ने बताया कि बहुत कारगर पाया है उन्होंने इसको अपने प्रयोगों में. जौनपुर की एक महिला जो अपने सभी बच्चों को इस इम्यूनाईजेशन के लिए लायी थी ने 6 खुराक के बाद बताया कि उसके बच्चे जो महीने में 26 दिन बीमार रहते थे अब दवा के लिए बीमार दशा में नहीं, पिकनिक मनाने आते हैं. कई बच्चों की इनहेलर की दरकार खत्म हो गई. इस दवा के द्वारा इम्यून हुए 1 हजार बच्चों में केवल 5 ही डेंगू ज्वर से पीड़ित हुए और उनमें से किसी को भी अस्पताल नहीं भर्ती करना पड़ा. स्वॉइन फ्लू के कोई मामले नहीं आए इस दवा से इम्यून किए बच्चों में.

और असल फायदा तो तराई के इलाके में हुआ. गोरखपुर और उसके आसपास, जहां एनसेफलाइटिस के कारण बहुत से बच्चों की अकाल मृत्यु हुई थी, के स्वर्ण प्राशन दवा से इम्यून हुए बच्चों में एनसेफलाइटिस का एक भी मामला नहीं पाया गया.

इम्यूनिटी के लाभों के अलावा बच्चे की मेधा, एकाग्रता, जिज्ञासा और ग्रहण की बेहतर क्षमता की बातें उनके अभिभावकों ने बताई हैं. डिस्लेक्सिया ग्रस्त बच्चों का रिस्पॉन्स भी बेहतर हुआ है.

तिवारी दंपति का सूर्या चिल्ड्रन अस्पताल. गुब्बारे और छोटा भीम चिकित्सा का अंग हैं. 😊 चित्र नेट से कॉपी किया गया

डा. संतोष के चेहरे पर अपने इस जुनूनी अभियान की सफ़लता को लेकर आत्म संतोष था. उनके चेहरे की चमक ही बता रही थी कि बच्चों के ये डाक्टर इस दवा को बच्चों के लिए कितना कारगर पा रहे थे.

अन्यथा, कोई एलोपैथिक डाक्टर किसी आयुर्वैदिक चिकित्सा की प्रशंसा करने का पाप तो कभी नहीं करता. 😁


डा. प्रज्ञान ने मुझे बताया कि मध्यप्रदेश में स्वर्ण प्राशन संस्कार का टीकाकरण व्यापक हो रहा है.

डा. संतोष भी कहते हैं कि योगी सरकार भी रुचि ले रही है. उत्तर प्रदेश में भी इसे सरकारी स्वास्थ कार्यक्रम में शमिल करने की संभावनाएं हैं….

वैसे भी, यह विधा भाजपा के राजनैतिक दर्शन और सामजिक सोच के साथ पटरी खाती है.

भविष्य में इस विधा पर ज्यादा सुनने को मिलेगा, यह संभावना है.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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