गाँव में वैसी दशा नहीं है कि व्यक्ति एक फ्लैट में कैद हो कर रह जाये। मुझे तो सामान्य दिनों की तरह 10-12 किलोमीटर साइकिल चलाने को मिल ही जाता है। बहुत ज्यादा बहिर्मुखी नहीं हूं, तो आपस में आदान प्रदान की जो भी थोड़ी बहुत जरूरते हैं, आसानी से पूरी हो ही जाती हैं। पर घर के बाकी सदस्य शायद वह नहीं कर पा रहे। अपनी पुत्रवधू से बहुत ज्यादा बातचीत नहीं है इस विषय में, पर पत्नीजी को तो देखता हूं, गतिविधियों में परिवर्तन और अवरोध के कारण समस्या हो रही है। कुछ दिन पहले उनका रक्तचाप और धड़कन ज्यादा थी। उनसे रक्तचाप की दवा नियमित लेने को कहा। आज भी लगता है हाइपर टेंशन का उनका प्रबंधन उपयुक्त नहीं है। आज उन्हें डाक्टर को दिखाने की आवश्यकता महसूस हुई। उनकी उम्र 2019 में साठ साल की हो गयी है। रक्तचाप और मधुमेह का उनका प्रबंधन इस समय, जब कोरोना संक्रमण काल में उन्हें किसी भी अन्य व्याधि से मुक्त होना जरूरी है, पूरी तरह दुरुस्त होना चाहिये। इसलिये उन्हें डाक्टर के पास अस्पताल ले कर गया।

अस्पताल में सामान्य से कहीं कम मरीज थे। दरबान ने हमारे हाथ सेनिटाइज किये और एक अस्पताल कर्मी ने हमारा थर्मल स्केनिंग किया। डाक्टर साहब पूरी सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मेरी पत्नीजी से मिले। दस दिन की दवायें लिखी हैं और उसके बाद आवश्यकतानुसार टेस्ट कराये जायेंगे। एक कस्बाई अस्पताल (सूर्या ट्रॉमा सेण्टर एंड हॉस्पीटल, औराई) में भी इस प्रकार का प्रोटोकॉल – मुझे प्रभावी लगा। कोरोना विषाणु अपनी इतनी इज्जत देख कर वाकई प्रसन्न होगा। या कष्ट में होगा? पता नहीं। अस्पताल का वातावरण उसके प्रसार को रोकने में पूरी तरह प्रतिबद्ध नजर आया।
हमारा डिजिटल ब्लड प्रेशर नापने का यंत्र भी पुराना हो गया है। उसे भी बदलने की भी हमने सोची। ऑनलाइन उपकरण खरीदने में लॉकडाउन काल में आज तक समस्या रही है। अमेजन ने पुराने ऑर्डर अभी तक डिलिवर नहीं किये हैं। पर अब वह इस प्रकार के उपकरण दस दिन में सप्लाई की बात करने लगा है। पत्नीजी को डिजिटल रक्तचाप मापक से ज्यादा जरूरी एक प्रेशर कुकर लगता है। वह ऑर्डर किया। उन्हें एक पीतल की कढ़ाई भी चाहिये। अब वह तो शायद ठठेरे की दुकान पर ही अच्छी मिले।
अगर लॉकडाउन के मध्य का समय रहा होता तो पत्नीजी के रक्तचाप की समस्या पर या नया उपकरण या बर्तन खरीदने की बात पर हमारी प्रतिक्रिया अलग किस्म की होती। डाक्टर साहब ने कुछ विटामिन, कुछ रक्तचाप की दवा की मात्रा का हेर फेर और दस दिन बाद, अगर समस्या बनी रहती है, तब वापस आने और उसके बाद जांच कराने की बात कही। अपने से भी लगभग वही हम करते। भोजन, व्यायाम और ध्यान (meditation) आदि से व्यग्रता कम करने का प्रयास होता। वही अब भी किया जायेगा। उपकरण खरीदना बहुत जरूरी नहीं है। पुराना रक्तचाप मापने वाला काम कर हे रहा है। प्रेशर कुकर के बिना काम चल ही रहा है। … जो कुछ हमने किया, वह सिर्फ यह दर्शाता है कि लॉकडाउन से हम थक चुके हैं और कुछ परिवर्तन चाहते हैं।
लोग, कोविड-19 की ओर लापरवाही से लेकर उन्माद की सीमा तक के व्यवहार दिखाते मिलते हैं गांव में। कुछ तो गमछे से मुंह इस प्रकार ढ़ंके मिलते हैं कि केवल आखें भर दिखती हैं। कुछ मास्क पहने भी होते हैं, पर उसे बार बार सरका कर सुरती खाने और थूकने सी क्रिया भी सामान्य दिनों जैसी करते हैं। आपस में झुण्ड बना कर बैठने, बतियाने की प्रवृत्ति दिखती है बहुत से लोगों में। विशेषकर महिलाओं में।
पढ़ने में आ रहा है कि लोग कोविड के साथ जीने की आदत डाल लें। अपना सामान्य काम, जितना सामान्य हो सके, करे। पर वह होता नजर नहीं आता। लोग या तो कोरोना के भय में हैं, या लापरवाह हैं। सही सही व्यवहार नहीं दिखता। बहुत से मिथक चल रहे हैं जो लोगों के क्रियाकलाप को असर करते हैं। शहरों में भी ये मिथक चल रहे हैं और गांवों में भी।

मिथकों को दूर करने के लिये मुझे ह्वाट्सएप्प पर डाक्टर फहीम यूनुस के कहे पर आर्धारित एक लेख मिला। इसमें निम्न बातें कही गयी हैं –
- विषाणु गर्मियों में अपने प्रभाव में कमी नहीं लाने वाला है। ब्राजील और आर्जेण्टीना में गर्मी है, पर वहां यह तेजी से फैल रहा है। ज्यादा पानी पीने से भी यह फ्लश आउट नहीं होगा। आपको पेशाब करने ज्यादा जाना होगा, बस!
- बार बार हाथ धोने और 1.8मीटर की दूरी बनाये रखना ही सबसे अच्छा उपाय है। अगर आपके घर में कोविड19 की पैठ नहीं हुई है तो घर को (अतिरिक्त) डिस-इनफेक्ट करने की जरूरत नहीं है।
- कुरियर के आये पैकेट्स, पेट्रोल पम्प और एटीएम से संक्रमण नहीं होता है। अपने हाथ धोयें और जिंदगी यथावत जियें। कोविड19 भोजन का संक्रमण नहीं है।यह फ्लू की तरह संक्रमण की बूंदों से फैलने वाला रोग है। भोजन के ऑर्डर करने से इसके फैलने के कोई दस्तावेज नहीं हैं।
- गर्म पानी से स्नान से शरीर में घुसे विषाणु दूर नहीं हो सकते। सफाई अच्छी बात है, पर उन्माद (पेरानोईया) नहीं। यह बूंदों से फैलने वाला संक्रमण है जिसमें अत्यधिक पास में आने की दरकार होती है। अगर हवा साफ है तो आप मजे से बगीचे में टहल-घूम सकते हैं। बशर्ते आप औरों से पर्याप्त दूरी बनाये रखें।
- कोविड19 न तो धर्म का भेदभाव करता है, न जाति, वर्ण का। धनी गरीब दोनो को यह समान तरीके से प्रभावित करता है। जरूरी नहीं कि आप मंहगा साबुन इस्तेमाल करें। एण्टी-बैक्टीरियल साबुन की जरूरत नहीं। वैसे भी, यह विषाणु है, बेक्टीरिया (रोगाणु) नहीं।
- अपने भोजन को बाहर से ऑर्डर करने में घबराइये नहीं। मन हो तो उसे गरम कर लें। आपके जूते से आपके घर में कोविड19 के प्रवेश की उतनी ही सम्भावना है, जितनी एक व्यक्ति के ऊपर दिन में दो बार तडित बिजली गिरने से हो सकती है। मैं विषाणुओं पर बीस साल से काम कर रहा हूं और जानता हूं कि बूंदों से फैलने वाले संक्रमण ऐसे नहीं फैला करते।
- आपको विषाणु से बचाव सिरका, सुमेक, सोडा या अदरक से नहीं हो सकता। दस्ताने पहनना एक बेकार विचार है। वायरस दस्तानों पर जमा हो सकता है। दस्तानों से अगर आप अपने चेहरे को छूते हैं तो आसानी से वह संक्रमण फैला सकता है। बेहतर है कि अपने हाथों का प्रयोग करें और हाथों को धोते रहें।

कोरोना को लेकर बहुत सी भ्रांतियां डाक्टरों (हाँ, डाक्टरों ने भी!) ने, मीडिया ने और राजनेताओं/सेलीब्रिटीज ने फैलाई हैं। वे भ्रांतियां जितनी शहरों में हैं, उतनी गांवों में भी हैं। एक सज्जन सवेरे छ बजे अपना मुंह पूरी तरह गमछे से ढके गोबर फैंकने जाते दिखते हैं। रोज। मैंने उनसे पूछा कि यह मुंह ढंकने का कारण क्या है? कोरोना या कुछ और?
“कोरौनवईं, और काहे ढकेंगे। (कोरोना ही, और क्यों ढंकेगे।)”
पर आप तो अपने घर में ही हैं। आसपास कोई बाहरी व्यक्ति भी नहीं है। कोरोना तो नाक-मुंह से निकली बूंदों से फैलता है। आपके आसपास अगर 2मीटर तक दूसरा आदमी नहीं है तो मुंह ढंकने का क्या फायदा?
वे सज्जन (हीरालाल पाठक, गांव पठखौली) कुछ कनफ्यूज से हुये। बोले –”मुंह ढंकना ठीकई है। बहुत परदूशन है…।” जब तर्क नहीं बना तो वे सामान्य प्रदूषण की बात करने लगे। यही भ्रम, यही कंफ्यूजन व्यापक है गांवदेहात में। और कोरोना के बारे में ही नहीं, स्वास्थ्य के अन्य मुद्दों पर भी है।
कल, मेरे घर संजय मिश्र आये। दूर के रिश्ते में कुछ लगते हैं मेरी पत्नीजी को तरफ से। उन्होने कहा कि मधुमेह है उन्हे। पर परहेज से सब कण्ट्रोल कर लेते हैं। चीनी, आलू, चावल छूते नहीं। पर यह भी बताया कि अपनी रक्त शर्करा चेक कराये महीना से ऊपर हो गया। तीन महीने का चेक (एचबीएवनसी) भी कराये लम्बा अर्सा हो गया। चूंकि परहेज करते हैं, इस लिये मान कर चलते हैं कि सब नियंत्रण में है। मधुमेह और कोरोना – एक ही प्रकार से प्रतिक्रिया देते हैं लोग। मैंने संजय को सलाह दी कि वे अपना डायबीटीज अपनी सोच भर से नहीं, सतत चेक कराते हुये एक्टिव तरीके से नियंत्रित करें। कोरोना काल में किसी प्रकार की को-मॉर्बिडिटी खतरनाक हो सकती है।
पता नहीं संजय को कड़ी सलाह अच्छी लगी होगी या अशिष्ट। पर लोगों में भ्रांतियां, मिथक, भय और लापरवाही पर्याप्त है अपने स्वास्थ्य को ले कर।