सीताराम #गांवकेचरित्र #गांवकाचिठ्ठा

मई 29, 2020, विक्रमपुर, भदोही।

सवेरे पांच बजे घर से निकल लेता हूं और सवा पांच – साढ़े पांच बजे के बीच द्वारिकापुर के गंगा तट पर होता हूं। वहां जाने के दो तीन कारण हैं। एक तो यह कि रास्ते में लोग कम मिलते हैं। कोरोनावायरस के संक्रमण काल में जितने कम लोगों से टकराना हो, उतना ही अच्छा। दूसरे, गंगा तट पर पंद्रह-बीस मिनट गुजारना, वह भी जब सूर्योदय का समय हो, जो आनंद देता है, उसकी तुलना किसी और स्थान के अनुभव से नहीं की जा सकती। वहां के चित्र, अनाड़ी तरीके से लिये गये चित्र भी जानदार होते हैं।

सीताराम की नाव और गंगा तट का दृष्य

करीब आधा दर्जन बड़ी नावें होती हैं वहां। सभी में डीजल इंजन फिट होता है। सब में स्टीयरिंग हैण्डल है। सब में बालू ढोने के लिये चौड़ा प्लेटफार्म है। पर उनमें से एक ही नाव है, जिसमें रहने के लिये एक ओर एक कमरा सा बना है। उस नाव पर दो लोग दिखते हैं। उनमें से एक, शायद जूनियर हो, भोजन बनाता नजर आता है। उस नाव, उसपर कण्डे की आग में चढ़ी डेगची, सब्जी काटता वह व्यक्ति – बहुत अलग सा दृष्य होता है। मेरे मोबाइल कैमरे को बहुत पसंद आता है वह दृष्य।

बहुत कम बर्तन हैं उनके पास। मैं दूर से देखता हूं। शायद चाय बनी है उनकी शिकारा नुमा नाव पर। दोनो व्यक्ति चाय पी रहे हैं। एक के पास चाय का स्टील का ग्लास है। दूसरा व्यक्ति थाली में ही चाय ले कर पी रहा है। बहुत ही फ्र्यूगल जीवन।

एक व्यक्ति (चंद्रमोहन) के पास ग्लास है। दूसरा (सीताराम) थाली में ही चाय पी चुका है।

कण्डे का स्टोव और भोजन बनाने का स्थान बदलते रहते हैं नाव पर। पर व्यक्ति वही होते हैं। आज फोटो लेते लेते मैंने उस भोजन बनाते व्यक्ति से बातचीत की।

उनका नाम है सीताराम। करीब एक सप्ताह से अपनी नाव के साथ वे यहां हैं। बालू ढ़ोने के काम में लगे हैं। वे यहां के स्थानीय नहीं हैं। चंदौली में घर है और वहीं से अपनी नाव के साथ आये हैं। वे नाव पर ही रहते हैं। बहुत कम उतर कर घूमते हैं। गंगा इस पार से उसपार – यही आना जाना होता है। अभी रहेंगे यहां। बारिश जब शुरू होगी, तब शायद काम भी खत्म होगा और तभी वापस अपने गांव जायेंगे। सीताराम ने बताया कि मानसून के मौसम में वे घर पर ही रहेंगे। वहां खेतीबाड़ी में हाथ बंटायेंगे।

नाव पर सब्जी काटते सीताराम । उनका चूल्हा बड़ा रोचक लगता है।

दो बच्चे हैं सीताराम के। बड़े हो गये हैं। अपनी उम्र भी सीताराम ने बताई – उनचास साल। लड़की बड़ी है और उसकी शादी कर दी है। चण्डीगढ़ में लड़की की ससुराल है। सीताराम की बहन चण्डीगढ़ में है, उसका वहां अपना घर है। बहन के ही माध्यम से विवाह हुआ। सीताराम का लड़का बीए में पढ़ रहा है।

नाव पर ही जिंदगी गुजरती है? कभी औरों की तरह कमाने बम्बई नहीं गये? – मैं बात करने के ध्येय से पूछता हूं।

“गया था। बहुत पहले। तब जब बम्बई का किराया 113रुपया था। इग्यारह साल रहा। गांव से पांच सात और लोगों को साथ ले कर गया था। वहां अच्छा चल रहा था। जमीन भी खरीद ली थी। तब शादी नहीं हुई थी। मां-बाप ने वापस बुलाया शादी के लिये। उसके बाद बम्बई जाना नहीं हुआ। बम्बई देखा है, पूना देखा है। वही नहीं पूरा देस घूमा हूं।” – सीताराम का यह बताना मेरे लिये बड़ी खबर थी। सामने नाव पर बैठा व्यक्ति पूरा देश देख चुका है। परदेश जाने की पुन: सम्भावना थी या है अब भी।

पर शायद सीताराम को अपना घर, अपना परिवार, अपना इलाका ज्यादा प्रिय है। मैं उनसे पूछता हूं, कितने बजे उठते हो?

पूर्वांचल में प्रवासी आये हैं बड़ी संख्या में साइकिल/ऑटो/ट्रकों से। उनके साथ आया है वायरस भी, बिना टिकट। यहां गांव में भी संक्रमण के मामले परिचित लोगों में सुनाई पड़ने लगे हैं। इस बढ़ी हलचल पर नियमित ब्लॉग लेखन है – गांवकाचिठ्ठा
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गांवकाचिठ्ठा

“सवेरे चार बजे।” सवेरे और शाम भोजन बनाते हैं। उसके अलावा गंगा उस पार से बालू ढोने का काम होता है। साढ़े पांच बजे उनका भोजन बनाने, खाने और काम के लिये तैयार होने का समय है।   

मैं कहता हूं कि आगे कुछ और जल्दी आऊंगा और उनसे उनकी जिंदगी, उनके देश भर के अनुभवों पर बात करूंगा। लगा कि यह बातचीत सीताराम से कुछ आत्मीय सूत्र बिठा पायी। बोले – कल आईयेगा, तब बातचीत होगी। यह कह कर सीताराम ने अपने बन रहे भोजन पर ध्यान दिया। दाल बन गयी थी। थाली में चावल निकाला उन्होने एक बोरी से। चावल बीनने का कार्य प्रारम्भ किया।

मैंने पूछा – मछली भी पकड़ लेते हैं?

“नहीं, नहीं। वह सब नहीं। शुद्ध शाकाहारी हैं हम।”

यह भी अजीब था मेरे लिये। नाव ले कर चलने, रहने वाले लोग। नदी में इफरात है मछली की और वह उनका भोज्य नहीं है। सीताराम मुझे अलग प्रकार के प्राणी लगे। बहुत कुछ मेरे अपने जैसे। गंगा तट पर उतना ही समय होता है व्यतीत करने के लिये। मैं सीताराम से नमस्कार कर चला; यह कहते हुये कि आगे जल्दी आ कर उनसे बातचीत करूंगा।      

नाव पर रसोई।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “सीताराम #गांवकेचरित्र #गांवकाचिठ्ठा

  1. बहुत अच्छा प्रस्तुति करण है। मुंशी प्रेमचंद की कहानियां याद आने लगीं।

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