गोविंद पटेल ने लॉकडाउन में सीखा मछली पकड़ना #गांवकाचिठ्ठा

कोलाहलपुर तारी और द्वारिकापुर – दोनो गांवों में गंगा घाट हैं। दोनो घाटों के बीच सवा-डेढ़ किलोमीटर की दूरी होगी। गंगा कोलाहलपुर से द्वारिकापुर की ओर बहती हैं। इन दोनो घाटों के बीच दिखते हैं मछली मारने के लिये कंटिया फंसाये साधनारत लोग।

गोविंद पटेल

मुझे गोविंद पटेल मिले। उन्हें पहले से नहीं जानता था। बातचीत में उन्होने बताया कि बाबूसराय (चार किलोमीटर दूर) के हैं वे और मुझे आसपास घूमते देखा है। उनसे जब मैं मिला तो पौने छ बजे थे। गंगा करार पर मेरी साइकिल ने चलने से इंकार कर दिया था और लगभग आधा किलोमीटर बटोही (साइकिल का नाम) को धकेलता, पसीने से तर, मैं वहां पंहुचा था। गोविंद पटेल अपनी मोटर साइकिल पर अपने साथी के साथ पांच बजे आ कर डटे थे मछली साधना में। एक लाल रंग के लम्बे झोले में कुछ मछलियां थीं, जो उन्होने पकड़ी थीं। झोले का मुंह एक पत्थर से दबाया हुआ था और सारा हिस्सा पानी में था। पकड़ी मछलियों को पानी मिल रहा था। वे कैद में थीं पर जिंदा थीं।

गोविंद पटेल का मछली रखने का लाल थैला

गोविंद ने बताया कि वे एक पिक अप गाड़ी के ड्राइवर हैं। पूर्वांचल-बिहार में पिकअप चलाते हैं/थे। लॉकडाउन डिक्लेयर होने पर ड्राइवरी का काम बंद हो गया। तब उनके पास समय भी था और जरूरत भी। एक मित्र ने उन्हे मछली पकड़ना सिखाया। उनका यह हुनर लॉकडाउन काल की ही देन है। सवेरे चार बजे उठ कर, मछली पकड़ने का कांटा-डोरी दुरुस्त करते हैं, आटे का चारा बनाते हैं और ले कर घर से निकल पड़ते हैं। नौ बजे तक यहां रहेंगे।

मछलियां मिल ही जाती हैं – जैसा भाग्य हो। किसी दिन एक किलो, किसी दिन तीन-चार किलो। खाने भर का काम चल जाता है।

लॉकडाउन काल में, जब लोग आजीविका के व्यवधान के कारण दाल और तरकारी के मद में जबरदस्त कटौती कर रहे हैं; तब रोज चार घण्टा गंगा किनारे 2-4 किलो मछली पकड़ लेना बहुत सही स्ट्रेटेजी है लॉकडाउन की कठिनाई से पार पाने की। गांवदेहात में गंगा किनारे कोई पुलीस वाला भी नहीं होता जो गंगा किनारे आने और मछली पकड़ने को कानून का उलंघन बताये और ताडना दे।

गोविंद पटेल जैसे कई अन्य भी दिखते हैं जो गंगामाई की कृपा से कठिन समय में मछली पकड़ जीवन निर्वहन कर रहे हैं।

“अब तो लॉकडाउन खुल रहा है। अब तो यहां आने की जरूरत नहीं पड़ेगी?” मैंने पूछा।

“नहीं। अभी सब ठीक नहीं हुआ है। रास्ते में खाने की किल्लत है। काम भी उतना नहीं मिल रहा। माहौल ठीक होने में समय लगेगा।”

“इतनी दिक्कत हो गयी। लॉकडाउन में काम मिलना बंद हो गया। घर में बैठे रहना पड़ रहा है। मोदी ने यह जो कर दिया, उसके बारे में क्या सोचते हो?” मैंने राजनैतिक नब्ज टटोली।

“अब मोदी तो ठीक ही कर रहे हैं। किसी का बुरा थोड़े कर रहे हैं। समाज सेवा ही कर रहे हैं।” गोविंद के उत्तर से मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ। यह व्यक्ति, जो अपनी आजीविका पर हुये आघात से परेशान है। भोजन की समस्या दूर करने के दूसरे उपाय तलाश रहा है। उसके लिये सबसे सरल होता राजनैतिक नेतृत्व को बुरा भला कहना। पर वह मोदी को समाज सेवी बता रहा है। मुख्य बात यही है कि घोर कठिनायी झेलने के बावजूद देश की एक बड़ी आबादी, अधिकांश जनसंख्या मोदी की साफ नीयत पर यकीन करती है। … शायद वह इस लिये है कि लोग समझते हैं मोदी ने अपना घर नहीं भरा। अपनी पत्नी, अपने रिश्तेदारों को (जनता को कष्ट में डाल कर) कोई लाभ नहीं दिलवाया। जो कुछ किया, उसमें गलती भले हो, बदनीयती नहीं है।

गोविंद और उनके मित्र ने मिल कर मछली को साधा

इस बीच गोविंद पटेल के कंटिये की डोरी खिंची। जितने बल से वह खिंच रही थी और पानी में जितनी खलबलाहट हो रही थी, उससे लग रहा था कि कोई बड़ी मछली फंसी है। गोविंद ने चालीस कदम दूर कंटिया फंसाये अपने मित्र को आवाज दे कर बुलाया। दोनो ने मिल कर गोविंद की कंटिया को साधा। मछली जो बाहर उछल कर गिरी, वह करीब सवा सेर की रही होगी। उन्होने नाम बताया – करोच।

गोविंद वास्तव में भाग्यशाली निकले आज।

“मछलियां इसी समय ज्यादा मिलती हैं। जैसे जैसे नहाने वाले बढ़ते हैं और गोरू चराने वाले पानी पिलाने आते हैं अपने गाय-भैसों-भेड़ों-बकरियों को, मछलियां गहरे पानी में चली जाती हैं।”

गोविंद के हाथ में करोच मछली।

उस लाल झोले में मछली सहेज कर रखी गोविंद ने और कंटिया पर नया आटे का चारा फंसाने लगे। मैंने भी उन्हे नमस्कार कर विदा ली। अपने बटोही को फिर वापस धकेलना-खींचना प्रारम्भ किया। आज गोविंद पटेल से मुलाकात ने बहुत जानकारी दी मुझे। लॉकडाउन और आम आदमी को समझने का एक नया दृष्टिकोण भी दिया।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “गोविंद पटेल ने लॉकडाउन में सीखा मछली पकड़ना #गांवकाचिठ्ठा

  1. बहुत बढ़िया लिखते हैं विप्रवर। मैं स्वयं एक वर्ष पूर्व भारतीय वायु सेना से सेवानिवृत्त होकर पैतृक गांव में स्थापित हो चुका हूँ। दोनो पुत्र MBA की पढ़ाई के पश्चात विदेश निवास कर रहे हैं। हमारे Ballia जिले का ग्राम्य जीवन अक्षरतः आपकी कथाओं से मिलता है।

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    1. धन्यवाद, ठाकुर साहब! अपने रेल जीवन में बलिया अंचल से कई बार गुजरा हूं। रुका भी हूं। मेरी पटरी के आसपास की वहां की बहुत स्मृतियाँ हैं। अच्छा लगा जानकर कि आप भी रीवर्स माइग्रेट कर गांव का अनुभव कर रहे हैं। आपको बहुत शुभकामनायें!

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  2. बहुत ही अच्छा लिखा हुआ होता है कभी कभी आप लमही के लेखक जैसा लिखते है।

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