काशीनाथ पाठक का मुरब्बा व्यवसाय – पुरानी पोस्ट


यह एक तीन साल पुरानी पोस्ट है। 27 मई 2017 को फेसबुक नोट्स के रूप में लिखी ।

आज काशीनाथ पाठक पुन: आये थे। आते ही रहते हैं; पर लॉकडाउन के समय नहीं आये या नहीं बुलाये गये।

काशीनाथ पूर्वांचल के ग्रामीण जीवन की सफल उद्यमिता के प्रमाण हैं। पूर्वांचल उत्तरप्रदेश का वह हिस्सा मान सकते हैं जहां शहर में कोई व्यवसाय करना कठिन है; गांव की कौन बिसात। पर काशीनाथ ने वह कर दिखाया है जो सबसे अनूठा है।

आज आने पर लॉकडाउन के दौरान चले अपने व्यवसाय के बारे में उन्होने बताया। उसका विवरण लिखने के लिये जरूरी है कि काशीनाथ का पुराना जुड़ाव आपको पता चले। इस लिये फेसबुक नोट्स से निकाल कर पुरानी पोस्ट पुन: प्रस्तुत है –


मई 27, 2017, विक्रमपुर, भदोही।

गुन्नीलाल पांडेय पानी पिलाने के साथ ऑफर करते हैं आंवले का लड्डू। या आंवले का मुरब्बा। बताते हैं कि एक सज्जन हैं कपसेटी के आगे के एक गांव से। वे अपनी मोटर साइकिल पर ले कर आते हैं ये उत्पाद।

काशीनाथ पाठक

उस दिन मैं अपनी पत्नीजी के साथ गुन्नीलाल जी के घर गया था शाम को तब ये सज्जन आये। नाम बताया – काशीनाथ पाठक। बताया कि एक शादी में जाना था पास के गांव में तो उस निमित्त आना था और साथ में अपने उत्पाद भी लेते आये। आंवले का लड्डू, मुरब्बा, करौंदे का मुरब्बा। इसके अलावा कई अन्य उत्पाद वे लाते हैं – आंवले का अचार, कैण्डी, बेल और आम के कई आईटम।

कहां से लाते हैं? प्रतापगढ़ से?

“नहीं। मेरे अपने घर में बनते हैं। घर और गांव की कई स्त्रियां इस काम में लगती हैं। … असल में पढ़ाई करने के बाद जब कोई आजीविका नहीं मिली तो मैने फूड प्रॉसेसिंग की ट्रेनिंग ली। उसके बाद अपने घर पर उत्पादन शुरू किया। दुकानदारों तक जब इस उत्पाद को पंहुचाया तो पता चला कि दुकानदार अपना बड़ा कमीशन मांगते हैं। मैने दुकानदारों का लिंक ही खत्म कर दिया। अपने ग्राहकों तक खुद ही उत्पाद पंहुचाता हूं। ग्राहकों को सस्ता मिलता है और मुझे उनसे सीधा संपर्क करने का मौका भी। मेहनत है, पर इस सब काम से मैं उतना कमा लेता हूं, जितना नौकरी कर कमाता।”

मेरे सामने ठोस और सफ़ल ग्रामीण उद्यमिता का उदाहरण उपस्थित था! इण्डिया अन-इन्कार्पोरेटेड! भारत की हजारों साल की रस्टिक उद्यमिता का प्रमाण। एक बेरोजगार व्यक्ति न केवल स्वयं की आजीविका कमा रहा है, वरन गांव की कई महिलाओं को रोजगार भी दे रहा है। कोई कार्पोरेट बैकिंग, कोई बैंक फिनांसिंग, कोई ब्राण्डिंग, कोई ऑर्गेनाइज्ड मार्केट सर्वे, कोई सम्पन्न कस्टमर बेस नहीं। पूर्वी उत्तर प्रदेश (बीमारू प्रान्त के बीमारुतम हिस्से) की उद्यमिता! जय हो!

आंवला कहां से लेते हैं?

“आंवला तो एक ठाकुर साहब के बगीचे से लेता हूं। कुल 35 पेड़ हैं उनके पास आंवला के। करौंदा, बेल आदि तो आसपास की जगहों से तलाशता-लेता हूं।”

“मुझे असली सफलता की खुशी किसी को अपना उत्पाद बेच कर नहीं होती। असली सफ़लता तब महसूस होती है, जब वे दूसरी बार मुझे बुलाते हैं मेरे उत्पादों को खरीदने के लिये।”

काशी नाथ पाठक का मोबाइल नम्बर मैने लिया। लगभग 500 रुपये का उनका उत्पाद खरीदा। खा कर देखा – वास्तव में उत्तम क्वालिटी का।

यह तय है कि काशीनाथ पाठक को मैं दूसरी बार आने के लिये कहने जा रहा हूं। और बहुत जल्दी। उनका आंवले का लड्डू और करौंदे का मुरब्बा लाजवाब है। पैकेजिंग बहुत साधारण है – कोई ब्राण्ड नहीं। पर उत्पाद की गुणवत्ता आपको बांधती है।


काशीनाथ पाठक 2017 साल से अब तक बराबर आते रहे हैं हमारे घर। उनके उत्पाद हमारे घर में और जान पहचान वालों में बहुत से लोगों द्वारा पसंद किये जाते हैं। लॉकडाउन के दौरान कैसे चला उनका व्यवसाय और क्या रहे उनके अनुभव, उसपर आज शाम को ब्लॉग पर लिखूंगा।


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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